#NewsBytesExplainer: भारत और सऊदी अरब के संबंधों का इतिहास और ये कैसे मजबूत होते जा रहे?
क्या है खबर?
सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G-20 शिखर सम्मेलन के खत्म होने के बाद सोमवार को दिल्ली में द्विपक्षीय बैठक की।
दोनों नेताओं ने हैदराबाद हाउस में रणनीतिक साझेदारी परिषद की पहली बैठक में हिस्सा लिया, जिसमें दोनों देशों के बीच कई अहम मुद्दों पर सहमति बनी।
आइए जानते हैं कि भारत-सऊदी के बीच संबंधों का क्या इतिहास है और प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद यह कितने मजूबत हुए हैं।
रिश्ते
कब से हैं भारत और सऊदी अरब के बीच संंबंध?
भारत और सऊदी अरब के बीच कूटनीतिक संबंध काफी पुराने हैं। 1947 में राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से दोनों देशों के नेता एक दूसरे के यहां आते-जाते रहे हैं।
1955 में सऊदी के राजा सऊद बिन अब्दुलअजीज अल सऊद 17 दिनों की भारत यात्रा पर आए थे। इसके बाद 1956 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सऊदी की यात्रा की थी।
2014 में प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद से प्रधानमंत्री मोदी 2 बार सऊदी की यात्रा कर चुके हैं।
व्यापारिक
भारत-सऊदी के बीच कैसे हैं व्यापारिक संबंध?
भारत और सऊदी अरब के बीच सालाना 5,000 करोड़ डॉलर से ज्यादा का व्यापार होता है। भारत ने साल 2022-23 में सऊदी से करीब 4,000 करोड़ डॉलर का सामान आयात किया और करीब 1,000 करोड़ डॉलर का निर्यात किया।
पिछले 5 सालों में दोनों देशों के बीच व्यापार करीब दोगुना हो गया है। भारत की 700 से ज्यादा कंपनियां सऊदी अरब में काम कर रही हैं, जिन्होंने वहां करीब 200 करोड़ अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का निवेश किया हुआ है।
रणनीति
सऊदी अरब की विदेश नीति में क्यों बढ़ रही भारत की अहमियत?
सऊदी अरब ने बीते सालों में अपनी विदेश नीति में बदलाव किए हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि सऊदी अरब खुद को ग्लोबलाइज कर रहा है। वह अमेरिका के अधीन वाली छवि से दूर जा रहा है और चीन, रूस और भारत जैसे अन्य देशों के साथ हाथ मिला रहा है।
उनका कहना है कि सऊदी अरब तेल पर अपनी निर्भरता कम करते हुए अन्य देशों में दूसरे क्षेत्र में निवेश बढ़ाना चाहता है।
संबंंध
क्या पाकिस्तान के कारण संबंधों पर कोई असर पड़ता है?
भारत और सऊदी के संबंध सामरिक रूप से पेचीदा रहे हैं। सऊदी अरब दशकों से पाकिस्तान का मित्र देश रहा है और वह जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पाकिस्तान के रुख का समर्थन करता रहा है।
यह दोनों देश इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) के संस्थापक सदस्यों से हैं। 2019 में IOC ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने का विरोध किया था।
हालांकि, पाकिस्तान के दबाव के बावजूद सऊदी ने भारत सरकार की आलोचना से इनकार कर दिया था।
रिश्ते
क्या अभी भारत की तरफ झुक रहा सऊदी अरब?
प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद भारत-सऊदी के रिश्तों में काफी बदलाव देखने को मिला है। मोदी के नेतृत्व में 2019 में दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी परिषद का गठन हुआ।
विश्लेषकों का कहना है कि बिन सलमान के G-20 सम्मेलन से पहले पाकिस्तान जाने की खबर थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसे पाकिस्तान के लिए एक इशारा माना जा सकता है।
उन्होंने कहा कि सऊदी भारत और OIC के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में है।
बानगी
रणनीतिक इकोनॉमिक कॉरिडोर मजबूत होते संबंधों की बानगी
भारत -सऊदी के बीच मजबूत होते संबंधों की एक बानगी G-20 सम्मेलन के दौरान भारत-मध्य पूर्व-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर पर सहमति पेश करती है। इसमें दोनों देशों के अलावा अमेरिका, UAE, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ (EU) शामिल हैं।
यह कॉरिडोर भारत, मध्य-पूर्व देशों और यूरोप को जोड़ेगा और इसे चीन के 'वन बेल्ट, वन रोड' (OBOR) का जवाब माना जा रहा है।
इस कॉरिडोर से क्षेत्र के रणनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल सकते हैं।
निर्यात
कच्चे तेल के लिए सऊदी अरब पर कितना निर्भर है भारत?
यूक्रेन युद्ध से पहले तक भारत इराक के बाद सऊदी अरब से सबसे अधिक कच्चा तेल निर्यात करता था।
भारत अपनी कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 18 प्रतिशत और LPG आवश्यकता का लगभग 22 प्रतिशत सऊदी अरब से आयात करता है।
इसके अलावा सऊदी की कंपनी अरामको, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की एडनोक और भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों द्वारा महाराष्ट्र के रायगढ़ में दुनिया की सबसे बड़ी ग्रीनफील्ड रिफाइनरी की स्थापना के प्रयास किये जा रहे हैं।
दौरा
न्यूजबाइट्स प्लस
सबसे पहले 2014 में युवराज मोहम्मद बिन सलमान भारत की यात्रा पर आए थे। इसके बाद 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार सऊदी की यात्रा की। इस दौरान बिन सलमान के पिता ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा था।
2019 में फिर बिन सलमान ने भारत की यात्रा की और देश में 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निवेश के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
इसी दौरान भारत का हज कोटा भी बढ़ाया गया था।