दुनिया-जहां: सऊदी अरब और हूती विद्रोहियों के बीच तेज हुआ संघर्ष, इसकी शुरुआत कहां से हुई?
क्या है खबर?
बीते कुछ दिनों से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में यमन के हूती विद्रोहियों के हमले बढ़े हैं।
इसके जवाब में सऊदी अरब के नेतृत्व वाली गठबंधन ताकतों ने विद्रोहियों के खिलाफ अपने हमले तेज किए हैं और कई लड़ाकों को मार गिराया है।
अरब के सबसे गरीब देशों में गिने जाने वाले यमन में पिछले सालों पिछले कुछ सालों से संघर्ष चल रहा है।
आइये समझते हैं कि इस संघर्ष की शुरुआत कैसे हुई।
जानकारी
हूती विद्रोही कौन हैं?
हूती आंदोलन का नाम इससे जुड़े परिवारों के कारण आया है।
पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह को कई बार चुनौती देने के कारण इनका प्रभाव बढ़ा और 2014 तक इससे जुड़े विद्रोहियों ने यमन के उत्तरी क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी।
ईरान पर हथियारों और पैसों से विद्रोहियों की मदद के आरोप लगते रहे हैं। हूती विद्रोहियों की संख्या दो लाख के आसपास बताई जाती है और इनके पास कई आधुनिक हथियार हैं।
शुरुआत
यमन संघर्ष की शुरुआत कैसे हुई?
2011 में 'अरब स्प्रिंग' के दौरान 1978 से सत्ता पर कब्जा जमाए बैठे अब्दुल्लाह सालेह को हटाने की मांग होने लगी। उन्होंने उस वक्त सत्ता अबेदरब्बो मंसूर हादी को सौंप दी।
राष्ट्रपति के तौर पर हादी को जिहादियों के हमले, दक्षिण में अलगाववादी अभियान, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा और वो हालात के सामने कमजोर नजर आने लगे।
हूती आंदोलन ने राष्ट्रपति की इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए अपने पैर पसारने शुरू कर दिए।
घटनाक्रम
2015 में हादी देश छोड़कर भागे
2014 की शुरुआत में हूती विद्रोहियों ने सदा प्रांत पर अपना कब्जा कर लिया और दक्षिण की तरफ बढ़ने लगे।
इस दौरान यमन के आम लोगों ने उन्हें अपना समर्थन दिया। 2015 में विद्रोही आगे बढ़ते हुए राजधानी सना तक पहुंच गए।
बाद में विद्रोहियों को पूर्व राष्ट्रपति सालेह के वफादार सैनिकों का भी साथ मिला और इन्होंने पूरे देश पर नियंत्रण करने का प्रयास किया, जिसके बाद मार्च, 2015 में राष्ट्रपति हादी देश छोड़कर सऊदी अरब भाग गए।
यमन संकट
सऊदी अरब इस लड़ाई में क्यों आया?
कथित तौर पर ईरान और क्षेत्रीय शिया ताकतों की मदद से विद्रोहियों की बढ़ती ताकत ने सऊदी अरब और आठ दूसरे सुन्नी बहुल अरब देशों की चिंता बढ़ा दी।
सऊदी अरब इस संघर्ष में हादी सरकार के साथ आ गया और ईरान पर विद्रोहियों की मदद का आरोप लगाया।
दरअसल, ईरान और सऊदी अरब के रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं। सऊदी अरब का कहना है कि ईरान अरब क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहा है।
गठबंधन ताकत
सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल हुए ये देश
अपने पड़ोस में शिया की नुमाइंदगी करने वाले हूती विद्रोहियों का प्रभुत्व समाप्त करने के लिए सऊदी अरब ने कुवैत, कतर, UAE, बहरीन, जॉर्डन, मोरक्को, सूडान, मिस्र और सेनेगल आदि देशों के साथ मिलकर हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू कर दिए।
इस लड़ाई में सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन को अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों से हथियार और दूसरी मदद भी मिली।
दूसरी तरफ ईरान विद्रोहियों को मदद देने से इनकार करता आया है।
यमन संकट
लंबा खिंच गया 'कुछ सप्ताह' का संघर्ष
हवाई हमलों की शुरुआत में सऊदी अरब का कहना था कि यह कुछ सप्ताह में ही खत्म हो जाएगा, लेकिन 2015 से चल रहे संघर्ष का अभी तक कोई अंत नजर नहीं आ रहा।
2015 में गठबंधन ताकतों ने तटीय शहर अदन में अपना डेरा डाला और विद्रोहियों को वापस खदेड़ने शुरू कर दिया। हालांकि, विद्रोही अब भी सना और उत्तर पश्चिमी इलाकों में डटे हुए हैं। सना को आज भी विद्रोहियों का गढ़ माना जाता है।
यमन
2017 में हुई सालेह की हत्या
एक समय एक-दूसरे के दुश्मन रहे हूती और पूर्व राष्ट्रपति सालेह 2014 में हादी के खिलाफ एक हो गए थे, लेकिन 2017 में सालेह ने विद्रोहियों के साथ अपना गठबंधन समाप्त करने का ऐलान किया।
उन्होंने विद्रोहियों और सऊदी अरब के बीच बातचीत की पेशकश भी की थी।
सऊदी अरब इससे सहमत नजर आ रहा था, लेकिन विद्रोहियों ने सालेह को धोखेबाज करार देते हुए उन्हें मौत के घाट उतार दिया।
यमन
2018 में गठबंधन के साथ हो गए सालेह के वफादार
2018 आते-आते सालेह के वफादार सैनिक सऊदी अरब वाले गठबंधन की तरफ हो गए और हुदायदेह शहर को विद्रोहियों से मुक्त कराने के लिए हमले शुरू कर दिए।
हुदायदेह समुद्र किनारे स्थित शहर है, जहां का बंदरगाह यमन के लिए लाइफलाइन की तरह काम करता है।
करीब छह महीनों तक चले भीषण संघर्ष के बाद दोनों पक्ष सीजफायर पर सहमत हुए। समझौते के तहत दोनों पक्षों को कैदियों को छोड़ना था और अपनी सेनाओं को पीछे हटाना था।
यमन
अब भी बनी है टकराव की स्थिति
इस समझौते के बाद सैकड़ों कैदी रिहा किए गए हैं, लेकिन विद्रोही औऱ सैनिक अभी भी पीछे नहीं हटे हैं। इससे यह डर बना हुआ है यहां फिर से संघर्ष छिड़ सकता है और यह यमन में एक बड़े मानवीय संकट को निमंत्रण देगा।
पिछले साल विद्रोहियों ने मरीब में हमला शुरू कर दिया। यह उत्तर में सरकार की मजबूत मौजूदगी वाले आखिरी राज्य की राजधानी है। बाद में संयुक्त राष्ट्र ने सीजफायर की मांग की थी।
अलगाववादी
STC से भी मिल रही सरकार को चुनौती
राष्ट्रपति हादी की सत्ता को अलगाववादी संगठन सदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल (STC) से भी चुनौती मिल रही है। यह एक मौके पर हूती विद्रोहियों के खिलाफ सरकार के साथ थे, लेकिन अब अलग स्वतंत्र दक्षिण यमन चाहते हैं।
यमन में मची इस अस्थिरता का फायदा उठाते हुए अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी सगंठन भी लगातार खतरनाक हमलों को अंजाम देते रहे और दक्षिण में सरकार के लिए नई मुश्किले पैदा करते रहे।
रणनीति
अमेरिका ने बदली रणनीति
पिछले साल जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने अपनी रणनीति बदली है। अमेरिका ने अब हूती विद्रोहियों को आतंकी समूह की सूची से बाहर कर दिया और सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन को हमलों के लिए मदद देना का फैसला वापस ले लिया है।
इसी बीच संयुक्त राष्ट्र की तरफ से भी बातचीत के जरिये इस मुद्दे का हल निकालने की कोशिश हो रही है, लेकिन मौजूदा हालात में इसकी संभावना कम नजर आ रही है।
मानवीय संकट
इस संघर्ष में कितना नुकसान हुआ है?
दिसंबर, 2020 में संयुक्त राष्ट्र ने बताया कि था कि इस संघर्ष में 2.33 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से 10,000 से अधिक बच्चे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि संघर्ष में शामिल सभी पक्षों ने युद्ध अपराध किए हैं और इस संघर्ष ने सबसे बड़ा मानवीय संकट पैदा किया है।
एक और मॉनिटरिंग ग्रुप यमन डाटा प्रोजेक्ट का अनुमान है कि गठबंधन ताकतों के हवाई हमलों में 8,780 नागरिकों की मौत हुई है।
यमन
40 लाख से अधिक लोगों को छोड़ना पड़ा घर
BBC की रिपोर्ट के अनुसार, संघर्ष के कारण यमन के 40 लाख से अधिक लोगों को अपना घर छोडना पड़ा है और दो करोड़ से अधिक लोगों को जिंदा रहने के लिए मानवीय सहायता की जरूरत है। इनमें से 50 लाख लोग ऐसे हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भुखमरी की कगार पर हैं।
अनुमान है कि यहां पांच साल से कम उम्र के 23 लाख बच्चे कुपोषित हैं और चार लाख बिना इलाज के मरने की कगार पर हैं।
जानकारी
स्वास्थ्य व्यवस्था भी बेहद खस्ताहाल
देश के 3,500 स्वास्थ्य केंद्रों में से मात्र आधे ही संचालित हैं और 20 प्रतिशत जिलों में एक भी डॉक्टर नहीं है। इस वजह से करीब दो लाख लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं पहुंच से बाहर है। कोरोना महामारी ने हालात बदतर कर दिए हैं।