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    #NewsBytesExclusive: बच्चों के वैक्सीनेशन में सरकार का झोल, नहीं लगा रही पूरी वैक्सीन
    बच्चों के वैक्सीनेशन में सरकार का भेदभाव

    #NewsBytesExclusive: बच्चों के वैक्सीनेशन में सरकार का झोल, नहीं लगा रही पूरी वैक्सीन

    लेखन अंजली
    Feb 24, 2023
    10:39 am

    क्या है खबर?

    बच्चों को विभिन्न रोग और संक्रमण से बचाने के लिए सरकार की ओर से चलाए जा रहे वैक्सीनेशन अभियान में भेदभाव हो रहा है।

    बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए 15-16 वैक्सीन लगानी होती हैं, लेकिन वैक्सीनेशन अभियान में महज छह वैक्सीन ही लगाई जा रही हैं।

    ऐसे में लोगों को शेष वैक्सीन जेब ढीली कर लगवानी पड़ रही है या फिर बिना वैक्सीन के रहना पड़ रहा है। इससे बच्चों पर घातक रोगों का खतरा मंडरा रहा है।

    महत्व

    बच्चों के लिए क्यों जरूरी है वैक्सीनेशन?

    वैक्सीनेशन बच्चों की जान बचाने में प्रभावी होता है। हालांकि, वैक्सीन लगने की वजह से थोड़ा दर्द, बुखार और इंजेक्शन वाली जगह पर लालिमा या सूजन आ सकती है, लेकिन ये बीमारियों के गंभीर परिणामों के आगे सामान्य है।

    इसके अतिरिक्त वैक्सीनेशन भविष्य की पीढ़ी के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह काम करता है। इनसे कई घातक बीमारियों का कारण आनुवांशिकता नहीं बन पाती है और उन सभी बीमारियों का इलाज संभव हो सकता है।

    वैक्सीन

    बच्चों के लिए कौन-कौनसी वैक्सीन जरूरी हैं?

    बच्चों को देश में फैलने वाली सभी तरह की बीमारियों से बचाने के लिए बैसिलस कैलमेट-गुएरिन (BCG), पेंटावैलेंट, डिप्थीरिया-टिटनेस-काली खांसी (DTaP), पोलियो, न्यूमोकोकल कंजुगेट, रोटा वायरस, रूबेला, खसरा, हेपेटाइटिस B, विटामिन-A, जापानी इन्सेफेलाइटिस, पेपिलोमा वायरस, पीलिया, चिकनपॉक्स, इन्फ्लुएंजा, टाइफाइड और मेनिंगोकोकल वैक्सीन का लगाया जाना जरूरी है।

    हालांकि, सरकार की ओर से साल 1978 में शुरू किए गए राष्ट्रीय वैक्सीनेशन अभियान के तहत अभी ये सभी वैक्सीन नहीं लगाई जाती है।

    सरकारी

    सरकारी अस्पतालों में कौनसी वैक्सीन मुफ्त लगाई जाती हैं?

    राष्ट्रीय वैक्सीनेशन अभियान के तहत वर्तमान में सरकारी अस्पतालों में बैसिलस कैलमेट-गुएरिन (BCG), पेंटावैलेंट, डिप्थीरिया-टिटनेस-काली खांसी (DTaP), पोलियो, न्यूमोकोकल कंजुगेट, रोटा वायरस, रूबेला, खसरा, हेपेटाइटिस B, विटामिन-A और जापानी इन्सेफेलाइटिस (JE) वैक्सीन ही मुफ्त में लगाई जा रही हैं।

    इसमें भी बड़ी बात यह है कि JE वैक्सीन को अभी तक कुछ ही राज्यों के चुनिंदा जिलों में शुरू किया गया है। ऐसे में यह भी सभी जगह उपलब्ध नहीं है।

    निजी अस्पताल

    निजी अस्पतालों में कौनसी वैक्सीन अतिरिक्त लगाई जाती हैं?

    राष्ट्रीय वैक्सीनेशन अभियान के तहत लगाई जाने वाली वैक्सीन के अलावा निजी अस्पतालों में पीलिया, चिकनपॉक्स, इन्फ्लुएंजा, टाइफाइड, मेनिंगोकोकल और ह्ययूमन पेपिलोमावायरस के लिए वैक्सीन लगाई जाती हैं।

    इससे बच्चों को इन बीमारियों से बचाना आसान हो जाता है, लेकिन ये वैक्सीन काफी महंगी पड़ती है।

    इन वैक्सीन को लगाने के लिए लोगों को 1,800 से 5,000 रुपये प्रति वैक्सीन खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में हर किसी के लिए इन्हें लगवाना आसान नहीं है।

    आयु

    किस उम्र के बच्चों को कौन सी वैक्सीन जरूरी?

    चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, नवजात से 18 महीने की उम्र के बच्चों को हेपेटाइटिस-B, रोटा वायरस, DTaP, न्यूमोकोकल, पोलियो, खसरा, चिकनपॉक्स और हेपेटाइटिस-A वैक्सीन आवश्यक रूप से लगवाई जानी चाहिए।

    इसी तरह 4 से 6 साल की आयु वाले बच्चों को DTaP की दूसरी खुराक, पोलियो की खुराक, खसरा की दूसरी और तीसरी खुराक के साथ चिकनपॉक्स की दूसरी और तीसरी खुराक भी लगनी चाहिए। इसी तरह 10 और 16 साल में डिप्थीरिया-टिटनेस की तीसरी और बूस्टर खुराक लगनी चाहिए।

    कारण

    सरकारी अस्पतालों में क्यों नहीं लगाई जाती है पूरी वैक्सीन?

    सरकार का उद्देश्य बच्चों को सबसे पहले उन बीमारियों से बचाना है, जिनके फैलने की संभावना अधिक होती है और जिनकी मृत्यु दर अधिक होती है।

    ऐसे में वर्तमान में सरकारी अस्पताल में हेपेटाइटिस-B, ट्यूबरकुलोसिस, DTaP, पोलियो, रोटावायरस, रूबेला और खसरा की वैक्सीन लगाई जा रही हैं।

    सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में इन बीमारियों से होने वाली मृत्यु दर अधिक है। ऐसे में सरकार का कम मृत्यु दर वाली बीमारियों पर ध्यान नहीं है।

    हकीकत

    क्या है हकीकत?

    कई अध्ययनों के मुताबिक, सरकारी अस्पताल में पीलिया, टाइफाइड और मेनिंगोकोकल की वैक्सीन नहीं लगाई जा रही हैं। इसके चलते इन रोगों के कारण हर साल लगभग लाखों नवजात बच्चों की मौत हो रही है और हजारों की संख्या में विकलांगता के मामले भी सामने आते हैं।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल टाइफाइड से 1.28 लाख से 1.61 लाख मौतें होती हैं। ऐसे में इन बीमारियों की वैक्सीन न लगाना बड़ा खतरा है।

    परेशानी

    सरकार की अनदेखी से क्या आ रही है समस्या?

    सरकारी अस्पताल में बच्चों के लिए जो वैक्सीन नहीं हैं उनके लिए गरीब चाहकर भी निजी अस्पताल की ओर नहीं जा सकते हैं। इसका कारण है कि निजी अस्पतालों में लगने वाली वैक्सीन का खर्च काफी ज्यादा होता है।

    ऐसे में गरीब तबके के लोगों के लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं है। वह चाहकर भी अपने बच्चों को पूरी वैक्सीन नहीं लगवा पाते हैं। इसका खामियाजा आगे चलकर उन्हें और बच्चों को उठाना पड़ता है।

    बयान

    "अधिक मृत्यु दर वाली बीमारियों पर है सरकार का ध्यान"

    राजस्थान के जयपुर में बच्चों के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल जेके लॉन में पेट, लीवर और आंत रोग की वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ प्रीति विजय ने न्यूजबाइट्स हिंदी से कहा कि निजी अस्पतालों में केवल 5-6 वैक्सीन अतिरिक्त लगाई जाती है। वो उन बीमारियों की है, जिनकी मृत्यु दर बहुत कम है।

    उन्होंने कहा कि सरकार का ध्यान गंभीर और अधिक मृत्यु दर वाली बीमारियों पर है। ऐसे में राष्ट्रीय वैक्सीनेशन अभियान में उन बीमारियों के खिलाफ वैक्सीन लगाई जाती हैं।

    प्रयास

    अन्य वैक्सीनों को भी शामिल करने के जारी हैं प्रयास- डॉ प्रीति

    डॉ प्रीति ने कहा कि सरकार अन्य वैक्सीनों को भी वैक्सीनेशन अभियान में शामिल करने पर विचार कर रही है। यही कारण है कि पिछले 2-3 सालों में इस अभियान में बच्चों के लिए रोटावायरस और न्यूमोकोकल वैक्सीनों को शामिल किया जा चुका है।

    उन्होंने कहा कि सरकार अन्य बीमारियों के प्रसार और खतरों का लगातार आंकलन कर रही है और आने वाले समय में उनकी वैक्सीन को भी अभियान में शामिल किया जा सकता है।

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