बड़ी टेक कंपनियों को कंटेट के लिए न्यूज पब्लिशर्स को देना चाहिए पैसा- सरकार
केंद्र सरकार ने कहा है कि बड़ी टेक कंपनियों को अपने राजस्व का 'उचित हिस्सा' प्रिंट न्यूज पब्लिशर्स के डिजिटल प्लेटफॉर्म को देना चाहिए। डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्रा ने इसे 'पत्रकारिता के भविष्य' से जोड़ा। इसी कार्यक्रम में दिए अपने भाषण में इलेक्ट्रॉनिक एंड इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने भी चंद्रा की बातों से सहमति जताई।
न्यूज इंडस्ट्री के विकास के लिए ऐसा करना जरूरी- चंद्रा
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, डिजिटल और प्रिंट न्यूज इंडस्ट्री की कमजोर आर्थिक सेहत का हवाला देते हुए चंद्रा ने कहा कि न्यूज इंडस्ट्री के विकास के लिए यह जरूरी है कि इन सभी प्रकाशकों, जो असली कंटेट क्रिएटर हैं, के डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म को बड़ी कंपनियों से राजस्व का एक बड़ा हिस्सा मिले, जो दूसरे के क्रिएट किए गए कंटेट की एग्रीगेटर हैं। उनका सीधा इशारा फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी कंपनियों की तरफ था।
भविष्य की पत्रकारिता पर पड़ेगा असर- चंद्रा
सूचना और प्रसारण सचिव ने कहा कि अगर परंपरागत न्यूज इंडस्ट्री पर नकारात्मक असर जारी रहा तो भविष्य की पत्रकारिता पर भी इसका असर पड़ेगा। इसलिए यह भरोसेमंद पत्रकारिता और कंटेट का भी सवाल है। उन्होंने कहा तकनीकी के क्षेत्र में बदलावों के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल है, लेकिन कुछ ऐसे मुद्दों पर सवाल उठे हैं, जो बड़े लोकतंत्र में प्रशासन, न्यूज इंडस्ट्री के बदलते हालात और व्यापार और लोगों के सामाजिक जीवन पर असर डालते हैं।
कई देशों में पहले से है ऐसी व्यवस्था
चंद्रा ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस और यूरोपीय संघ ने अलग-अलग कदम उठाकर यह सुनिश्चित किया है कि क्रिएटर और एग्रीगेटर के बीच राजस्व का उचित बंटवारा हो। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह समारोह भारत के संदर्भ में महत्वपूर्ण सुझाव लेकर आएगा।
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व संचार मंत्री ने भी रखे विचार
इस समारोह में ऑस्ट्रेलियाई सांसद पॉल फ्लेचर भी शामिल हुए थे। वो उस समय ऑस्ट्रेलिया के संचार मंत्री थी, जब वहां ऐतिहासिक न्यूज मीडिया बारगेनिंग कोड नाम से कानून लाया गया था। उन्होंने कहा कि जब सबसे पहले इस कानून को फेसबुक और गूगल के साथ साझा किया गया तो उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। गूगल ने ऑस्ट्रेलिया में सर्च सर्विस बंद करने की चेतावनी दी, वहीं फेसबुक ने कई महत्वपूर्ण पेजेज बंद कर दिए थे।
ऑस्ट्रेलिया में लागू है ऐसा नियम
फ्लेचर ने कहा कि गूगल की धमकी के बाद वो माइक्रोसॉफ्ट के अधिकारियों से मिले, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया में बिंग (माइक्रोसॉफ्ट का सर्च इंजन) के विस्तार में दिलचस्पी दिखाई। इसके बाद गूगल की तरफ से कोई धमकी नहीं आई। वहीं फेसबुक के लिए भी पेज बंद करना भारी पड़ा। उन्होंने कहा कि यह कानून पास होने के बाद से गूगल और फेसबुक दोनों ने न्यूज मीडिया के साथ कमर्शियल समझौते किए हैं। यानी कंटेट के बदले पैसे दिए जा रहे हैं।
नया कानून क्यों लेकर आया ऑस्ट्रेलिया?
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने पाया कि देश के मीडिया संस्थान राजस्व की कमी के चलते बंद हो रहे हैं। सामने आया कि ऐसा डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर यूजर्स की बढ़ती निर्भरता के चलते हो रहा है, जो फ्री में न्यूज कंटेंट दिखाते हैं। ये प्लेटफॉर्म्स उन पब्लिशर्स को भुगतान भी नहीं कर रहे थे, जिनके सोर्स से न्यूज यूजर्स को दिखाई जा रही थीं। पब्लिशर्स को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए ऑस्ट्रेलिया नया कानून लेकर आया।