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सौरभ कृपाल कौन हैं, जिनको जज बनाने पर सरकार ने जताई आपत्ति?
सौरभ कृपाल कौन हैं?

सौरभ कृपाल कौन हैं, जिनको जज बनाने पर सरकार ने जताई आपत्ति?

Jan 21, 2023
07:17 pm

क्या है खबर?

बीते कई दिनों से वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल का नाम सुर्खियों में है। दरअसल, कॉलेजियम ने उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में जज नियुक्त करने की सिफारिश की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने उनके नाम पर आपत्ति जता दी। कृपाल की नियुक्ति का प्रस्ताव पिछले पांच सालों से लंबित हैं और सरकार उनके विदेशी पार्टनर और उनके समलैंगिक होने को लेकर उनका नाम खारिज कर रही है। आइये जानते हैं कि सौरभ कृपाल कौन हैं।

जानकारी

CJI रह चुके हैं सौरभ कृपाल के पिता

सौरभ कृपाल के पिता भूपिंदर नाथ कृपाल भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) रह चुके हैं। वो 2002 में देश के 31वें CJI बने थे। कृपाल ने अपनी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से पूरी की और इसके बाद वो कानून में डिग्री करने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी चले गए थे। उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से कानून में मास्टर्स की पढ़ाई की और कुछ समय तक जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के लिए काम किया था।

जानकारी

नाज फाउंडेशन के बोर्ड मेंबर हैं कृपाल

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पिछले दो दशकों से वकालत कर रहे कृपाल दिल्ली स्थित नाज फाउंडेशन नामक NGO के बोर्ड में शामिल हैं। यह NGO HIV/AIDS पर काम करता है और इसी की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने धारा 377 को अंसवैधानिक करार दिया था। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले को पलटते हुए कहा था कि केवल संसद ही कानून बदल सकती है। अदालतें ऐसा नहीं कर सकतीं।

जानकारी

समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट में पेश कर चुके हैं दलील

2018 में कृपाल वकीलों की उस टीम में शामिल थे, जिसने सुनील मेहरा और नवतेज सिंह जौहर और अन्य की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में दलीले दी थीं। इस सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।

लड़ाई

अब समलैंगिकों की शादी को लेकर लड़ रहे लड़ाई

समलैंगिकों के अधिकारों के लिए कृपाल की लड़ाई अब भी जारी है। फिलहाल वो सुप्रीम कोर्ट में उन याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिन्होंने समलैंगिकों को शादी का अधिकार देने की मांग वाली याचिकाएं दायर की हैं। 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर अलग-अलग हाई कोर्ट्स में दायर सभी याचिकाएं अपने पास ट्रासंफर कर ली हैं। वो दिल्ली हाई कोर्ट में भी एक ऐसे ही मामले की पैरवी कर चुके हैं।

लेखन

लेखक भी हैं सौरभ कृपाल

वकालत के साथ-साथ सौरभ कृपाल लेखन भी करते हैं। 2020 में उन्होंने 'सेक्स एंड द सुप्रीम कोर्ट: हाउ द लॉ इज अपहोल्डिंग द डिग्निटी ऑफ द इंडियन सिटीजन' का लेखन और संपादन किया था। इसमें जस्टिस एमबी लोकुर, जस्टिस बीडी अहमद, जस्टिस एके सीकरी और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और मेनका गुरुस्वामी आदि जानी-मानी कानूनी हस्तियों के लेख हैं। इसके अलावा वो पिछले साल 'फिफ्टिन जजमेंट्स: केसेस दैट शेप्ड इंडियाज फाइनेंशियल लैंडस्केप' नामक किताब भी लिख चुके हैं।

सिफारिश

2017 में पहली बार कॉलेजियम ने भेजा था नाम

2017 में पहली बार कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से कृपाल का नाम दिल्ली हाई कोर्ट में जज बनाने के लिए भेजा था। तब से लेकर अब तक उनके नाम को हरी झंडी नहीं मिल पाई है। फरवरी, 2021 में तत्कालीन CJI एसए बोबड़े ने केंद्रीय कानून मंत्री को पत्र लिखकर कृपाल के नाम पर खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट को लेकर सफाई मांगी थी। उस वक्त सरकार ने कृपाल के पार्टनर के विदेशी नागरिक होने पर आपत्ति जताई थी।

करियर

2021 में वरिष्ठ अधिवक्ता बने कृपाल

इसके एक महीने बाद यानी मार्च, 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट के सभी 31 जजों ने सर्वसम्मति से कृपाल को वरिष्ठ अधिवक्ता बना दिया। वहीं बतौर जज उनके नाम की सिफारिश केंद्र सरकार के पास लंबित थी। नवंबर, 2021 में एक बार फिर उनका नाम सरकार के पास भेजा गया। तब भी सरकार ने कृपाल समेत पांच नाम पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम के पास वापस भेज दिए थे। अब कोर्ट ने उन आपत्तियों को सार्वजनिक कर दिया है।

जानकारी

सुप्रीम कोर्ट ने उजागर की सरकार की दो आपत्तियां

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की आपत्तियों को सार्वजनिक करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि सौरभ कृपाल के नाम पर दो आपत्तियां हैं। इनमें से एक उनके पार्टनर के स्विस नागरिक होने और दूसरे अपने समलैंगिक होने को लेकर उनका मुखर होना है।

बयान

विदेशी पार्टनर होने पर कोई आपत्ति नहीं- कॉलेजियम

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कहा कि पहले से यह मान लेना कि कृपाल के पार्टनर भारत के प्रति दुश्‍मनी का भाव रखते होंगे, गलत है। पहले भी संवैधानिक पदों में बैठे लोगों के पार्टनर विदेशी रहे हैं और इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई गई। साथ ही कहा कि हर व्‍यक्ति को सेक्‍सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर अपनी गरिमा और व्यक्तित्व बनाए रखने का अधिकार है। अब उनके नाम की दोबारा सिफारिश की गई है।