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    दुनिया-जहां: अगर यूरोप नहीं खरीदेगा तो रूस तेल और गैस किसे बेचेगा?
    दुनिया-जहां: अगर यूरोप नहीं खरीदेगा को रूस तेल और गैस किसे बेचेगा?

    दुनिया-जहां: अगर यूरोप नहीं खरीदेगा तो रूस तेल और गैस किसे बेचेगा?

    लेखन प्रमोद कुमार
    Apr 08, 2022
    04:49 pm

    क्या है खबर?

    वैश्विक बाजार में रूस तेल और प्राकृतिक गैस का एक बड़ा आपूर्तिकर्ता है। रूस से तेल और गैस खरीदने वाले देशों की बात करें तो यूरोपीय संघ इसका सबसे बड़ा ग्राहक रहा है।

    हालांकि, यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद यूरोपीय संघ ने कहा है कि रूस से ऊर्जा आयात बंद करने पर विचार कर रहा है।

    ऐसे में आइये आज दुनिया-जहां में समझते हैं कि अगर यूरोप नहीं खरीदेगा तो रूस तेल और गैस किसे बेचेगा।

    जानकारी

    रूस के राजस्व में निर्यात का बड़ा हिस्सा

    2021 में रूस के केंद्रीय बजट का 45 फीसदी हिस्सा तेल और गैस के निर्यात से प्राप्त राजस्व से आया था।

    पिछले साल अक्टूबर तक रूस का तेल और गैस का लगभग निर्यात यूरोपीय और OECD देशों में गया था। सिर्फ प्राकृतिक गैस की बात करें तो करीब तीन चौथाई गैस यूरोपीय देशों को बेची गई थी।

    अब अगर यूरोप आयात करना बंद कर देता है तो रूस को नए ग्राहकों की जरूरत पड़ेगी।

    तेल निर्यात

    रूस को चीन से बड़ी उम्मीदें

    रूस अब उन देशों पर ध्यान देगा, जिन्होंने उस पर प्रतिबंध नहीं लगाए हैं और इस मामले में चीन सबसे बड़ा नाम है।

    चीन रूस का यूरोप के बाद सबसे बड़ा ग्राहक है। पिछले साल एशिया और ओशिनिया क्षेत्र में रूस द्वारा बेचे गए तेल का 38 फीसदी हिस्सा अकेले चीन में गया था।

    सऊदी अरब के बाद रूस चीन का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता साझेदार है और अब वह पहले पायदान पर आना चाहता है।

    तेल निर्यात

    भारत पर भी हैं नजरें

    रूस की नजरें भारत पर भी टिकी हुई हैं और वह अपना निर्यात बढ़ाना चाहता है। भारत तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और जरूरत का बड़ा हिस्सा विदेशों से आयात करता है।

    भारत सबसे ज्यादा इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से तेल खरीदता है और रूस से जरूरत का मात्र 2 प्रतिशत ही आयात करता है, लेकिन अब इसमें बदलाव के संकेत नजर आने लगे हैं। हालिया दिनों में भारत ने रूस से खरीद बढ़ाई है।

    सवाल

    क्या यूरोपीय आयात की भरपाई कर पाएगा ये निर्यात?

    भले ही रूस चीन और भारत में अपना निर्यात बढ़ाना चाहता है, लेकिन कई जानकारों का मानना है कि यह देखने वाली बात होगी कि ये दोनों देश यूरोपीय आयात की किस हद तक भरपाई कर पाते हैं।

    उनका मत है कि भारत और चीन के मध्य पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत होने में कई सालों का वक्त लगा है और ये देश आपूर्ति घटाने से संबंधित कोई भी कदम बहुत सोच समझकर उठाएंगे।

    जानकारी

    गैस को लेकर है बड़ी परेशानी

    रूस के लिए तेल बेचने से ज्यादा बड़ी परेशानी गैस को लेकर है। तेल की तुलना में गैस को विदेशों में भेजना मुश्किल होता है। इसके अलावा रूस की LNG (लिक्विफाइड नैचुरल गैस) उप्तादन क्षमता भी उसके प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले कमजोर है।

    गैस आपूर्ति

    चीन और पाकिस्तान बन सकते हैं नए ग्राहक

    गैस के मामले में भी रूस चीन की तरफ मदद की आस से देख सकता है।

    DW के अनुसार, इसी साल फरवरी में दोनों देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत रूस 30 सालों तक चीन को एक नई पाइपलाइन के जरिये गैस की आपूर्ति करेगा।

    इसके अलावा रूस ने पाकिस्तान में गैस आपूर्ति के लिए भी एक दो बिलियन डॉलर की भारी-भरकम लागत से नई पाइपलाइन बनाने पर सहमति जताई थी।

    जानकारी

    रूस के खिलाफ नहीं बोले हैं तीनों देश

    याद दिला दें कि भारत, चीन और पाकिस्तान ने यूक्रेन युद्ध को लेकर किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर रूस का विरोध नहीं किया है। चीन ने तो रूस को मानवाधिकार परिषद से बाहर करने के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था।

    जमीनी हकीकत

    क्या ये प्रोजेक्ट जमीन पर उतरते नजर आ रहे हैं?

    जानकारों का कहना है कि गैस के लिए नए ग्राहक ढूंढना रूस के लिए मुश्किल होने वाला है और पाइपलाइन बनाने जैसे प्रोजेक्ट भारी लागत वाले होते हैं। इनमें मोटी रकम की जरूरत पड़ती है और पैसा न होने पर ये प्रोजेक्ट ठप्प पड़ जाएंगे।

    रूस भविष्य में चीन या भारत को गैस आपूर्ति के लिए नया ढांचा बना सकता है, जिसके लिए उसे भारी निवेश करना होगा, जो इस वक्त उसकी आर्थिक हालत के हिसाब से संभव नहीं लगता।

    असर

    रूस पर इस स्थिति के क्या असर होंगे?

    अगर रूस तेल और गैस नहीं बेच पाता है तो वैश्विक ऊर्जा बाजार में उसकी वह हैसियत नहीं रहेगी, जो आज है।

    कई विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि थोड़े समय बाद यूरोप समेत बाकी देश रूस से आयात शुरू कर देंगे क्योंकि इनकी कंपनियों ने पाइपलाइन और दूसरे संसाधनों पर भारी निवेश किया हुआ है।

    सर्बिया और हंगरी जैसे देशों ने इसके संकेत भी दिए हैं। हंगरी रूबल में भुगतान को भी तैयार दिख रहा है।

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