एक देश, एक चुनाव: अधीर रंजन चौधरी ने समिति में शामिल होने से मना क्यों किया?
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने केंद्र सरकार द्वारा 'एक देश, एक चुनाव' को लेकर गठित समिति का सदस्य बनने से इनकार कर दिया है। चौधरी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इसके पीछे की वजह बताई है। उन्होंने कहा कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को समिति से बाहर रखा गया है और उनकी जगह गुलाम नबी आजाद को जगह दी गई है, जो संसदीय लोकतंत्र की प्रणाली का अपमान है।
सरकार के गुप्त उद्देश्यों के बारे में गंभीर चिंता- चौधरी
कांग्रेस के नेता चौधरी ने अपने पत्र में कहा, "मुझे उस समिति में काम करने से इनकार करने में कोई झिझक नहीं है, जिसकी शर्तें उसके निष्कर्षों की गारंटी के लिए तैयार की गई हैं। मुझे डर है कि यह पूरी तरह से धोखा है। इसके अलावा आम चुनाव से कुछ महीने पहले संवैधानिक रूप से संदिग्ध विचार को राष्ट्र पर थोपने का अचानक प्रयास सरकार के गुप्त उद्देश्यों के बारे में गंभीर चिंता पैदा करता है।"
'संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था का किया गया अपमान'
चौधरी ने शाह को लिखे अपने पत्र में आगे लिखा, "मुझे लगता है कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को समिति से बाहर कर दिया गया है। यह संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था का जानबूझकर किया गया अपमान है। इन परिस्थितियों में मेरे पास आपके निमंत्रण को अस्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह भी 'एक देश, एक चुनाव' को लेकर बनी इस समिति का हिस्सा हैं।
केंद्र सरकार ने 8 सदस्यीय समिति का किया है गठन
केंद्र सरकार ने देश में एक साथ चुनाव करवाने की संभावनाओं को तलाशने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में शनिवार को 8 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति के गठन की घोषणा की थी। इनमें चौधरी के अलावा गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ सुभाष कश्यप, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी को शामिल किया गया था।
न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)
'एक देश, एक चुनाव' से आशय देश में राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाने से है। वर्तमान में विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं। हालांकि, देश में जब पहली बार 1951-52 में चुनाव हुए थे तो लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए मतदान हुआ था। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव हुए थे।