#NewsBytesExplainer: 'एक देश एक चुनाव' को लेकर क्या-क्या चुनौतियां सामने हैं?
केंद्र सरकार ने एक साथ चुनाव करवाने को लेकर एक समिति का गठन किया है, जिसके बाद पूरे देश में 'एक देश एक चुनाव' को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि, देश में एक साथ चुनाव करवाने को लेकर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से लेकर भारी खर्च समेत कई बड़ी चुनौतियां शामिल हैं। आइए एक साथ चुनाव करवाने को लेकर इन चुनौतियों के बारे में विस्तार से समझते हैं।
एक साथ चुनाव के लिए 30 लाख EVM की जरूरत
चुनाव आयोग को देश में एक साथ चुनाव करवाने के लिए करीब 30 लाख EVM की आवश्यकता पड़ेगी। यह आंकड़ा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने 2015 में केंद्र सरकार को एक साथ चुनाव करवाने की व्यवहारिकता को लेकर तैयार की गई एक रिपोर्ट में दिया था। केंद्रीय कानून मंत्री ने मार्च में संसद में बताया था कि आयोग के पास 13.06 लाख कंट्रोल यूनिट (CU) और 17.77 लाख बैलट यूनिट (BU) हैं।
चुनाव आयोग के पास कम लक्ष्य से कम EVM मौजूद
बता दें कि देश में 9.09 लाख CU और 13.26 लाख BU का उत्पादन हो रहा है। इससे कुल संख्या 22.15 लाख CU और 31.03 लाख BU तक पहुंच सकती है, लेकिन यह लक्ष्य से कम है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गांधीनगर के निदेशक और चुनाव आयोग की तकनीकी समिति के सदस्य प्रोफेसर रजत मूना ने कहा कि एक वर्ष में सिर्फ 6-7 लाख EVM का उत्पादन हो सकता है, जिससे 2024 में एक साथ चुनाव करवाना काफी मुश्किल है।
बड़ी संख्या में केंद्रीय सुरक्षाबलों की होगी आवश्यकता
चुनाव की मतदान प्रक्रिया के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्रीय सुरक्षाबलों की आवश्यकता अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। जाहिर है कि ज्यादातर राज्य चुनाव के दौरान केंद्र सरकार से केंद्रीय सुरक्षाबलों की मांग करते हैं। ऐसे में पूरे देश में एक साथ चुनाव होने के कारण केंद्रीय सुरक्षाबलों की इतनी बड़ी संख्या को एक साथ तैनात करना और एक से दूसरे स्थान पर उनकी आवाजाही काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।
चुनाव को लेकर कई संवैधानिक चुनौतियां भी सामने
देश में एक साथ चुनाव करवाने को लेकर कई संवैधानिक चुनौतियां भी हैं। बतौर रिपोर्ट्स, एक साथ चुनाव करवाने के लिए संविधान में कम से कम 5 संशोधन करने होंगे। इनमें लोकसभा का कार्यकाल 5 साल निर्धारित करने वाला अनुच्छेद 83 (2), विधानसभा के कार्यकाल के निर्धारण से जुड़ा अनुच्छेद 172 (1) और राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने वाला अनुच्छेद 356 शामिल है। जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 समेत कई दूसरे कानूनों में भी बदलाव करने होंगे।
10,000 करोड़ रुपये के खर्च की होगी जरूरत
इंडियन एक्सप्रेस के अनुमान के मुताबिक, देश में एक साथ चुनाव करवाने के EVM और वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) की खरीद के लिए 10,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। मशीनों को हर 15 साल में बदलने की भी आवश्यकता होगी, जिस पर फिर से व्यय करना होगा। इसके अलावा इन मशीनों के मेंटेनेंस में भी अतिरिक्त खर्चा होगा। अभी भारत का चुनाव आयोग सबसे कम खर्च में चुनाव करवाता है, लेकिन इससे खर्च काफी बढ़ जाएगा।
एक साथ चुनाव को लेकर और चुनौतियां?
एक साथ चुनाव करवाने को लेकर एक और बड़ी चुनौती राज्यों को राजी करने की है। एक साथ चुनाव करने के लिए कुछ राज्यों की विधानसभाओं को जल्द भंग करना होगा या कुछ का कार्यकाल बढ़ाना होगा। ऐसे में राज्यों को इसके लिए राजी करना मुश्किल काम रहेगा। हालांकि, विधानसभा भंग करने के लिए सरकार के पास राष्ट्रपति शासन लगाने का विकल्प है। यदि इस पर राज्यों की असहमति रही तो मामला सुप्रीम कोर्ट में भी जा सकता है।
न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)
'एक देश, एक चुनाव' से आशय देश में राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाने से है। वर्तमान में विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं। हालांकि, देश में जब पहली बार 1951-52 में चुनाव हुए थे तो लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए मतदान हुआ था। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव हुए थे।