#NewsBytesExplainer: CBI ने ऑक्सफैम इंडिया के खिलाफ केस क्यों दर्ज किया है?
केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) ने ऑक्सफैम इंडिया के खिलाफ FIR दर्ज की है। ये मामला विदेश से मिले चंदे में कथित अनियमितता से जुड़ा हुआ है। बुधवार को संस्था के दिल्ली स्थित दफ्तर पर CBI ने छापा भी मारा। आरोप है कि ऑक्सफैम ने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के तहत विदेशी फंडिंग से जुड़े कानूनों का उल्लंघन किया है। आइए समझते हैं पूरा मामला क्या है और संस्था पर क्या आरोप हैं।
ऑक्सफैम क्या है?
1995 में गैर-सरकारी संगठनों के एक समूह ने गरीबी और अन्याय के खिलाफ लड़ाई के लिए ऑक्सफैम इंटरनेशनल का गठन किया था। फिलहाल यह संस्था दुनियाभर के 87 देशों में कामकाज करती है। ऑक्सफैम गरीबों और अमीरों के बीच बढ़ती असमानता को लेकर जारी होने वाली अपनी प्रसिद्ध रिपोर्ट के लिए जानी जाती है। ताजा रिपोर्ट में ऑक्सफैम ने कहा था कि भारत के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल दौलत का 40.5 प्रतिशत हिस्सा है।
बुधवार को संस्था के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई?
बुधवार को CBI ने बताया कि उसने ऑक्सफैम के खिलाफ FIR दर्ज की है और संस्था के दिल्ली स्थित दफ्तर पर छापा भी मारा। ये FIR गृह मंत्रालय की सिफारिश के बाद दर्ज की गई है। गृह मंत्रालय ने 6 अप्रैल को संस्था के खिलाफ FIR दर्ज करने की सिफारिश की थी। इससे पहले दिसंबर, 2021 में संस्था के FCRA लाइसेंस को गृह मंत्रालय ने रद्द कर दिया था।
ऑक्सफैम पर क्या आरोप हैं?
ऑक्सफैम पर आरोप है कि उसने 2019-20 में 12.71 लाख रुपये के लेनदेन में FCRA कानून का उल्लंघन किया था, वहीं 2013 से 2016 के बीच 1.5 करोड़ रुपये के विदेशी लेनदेन में भी अनियमितता बरती गई थी। आरोप है कि ऑक्सफैम इंडिया ने ऑक्सफैम ऑस्ट्रेलिया और ऑक्सफैम ब्रिटेन जैसे अपने विदेशी सहयोगियों के जरिए राशि को कुछ NGO को दिया। इसके अलावा ऑक्सफैम पर भारत सरकार पर विदेशी सरकारों और संगठनों के जरिये दबाव बनाने का आरोप भी है।
NGO को फंड देने का भी आरोप
ऑक्सफैम पर यह भी आरोप है कि उसने सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) नामक एक NGO को अपने सहयोगियों और कर्मचारियों के माध्यम से कमीशन के रूप में धन उपलब्ध कराया। यह बात संस्था के TDS डाटा से भी सामने आई है, जिसके मुताबिक ऑक्सफैम ने CPR को वित्त वर्ष 2019-20 में 12.71 लाख रुपये का भुगतान किया था। यह FCRA की धारा 8 और 12(4) का उल्लंघन है।
ऑक्सफैम पर और क्या आरोप हैं?
FIR में कहा गया है कि ऑक्सफैम दूसरी कंपनियों और संगठनों के माध्यम से राशि का लेनदेन कर FCRA कानून को बाइपास करने की कोशिश कर रही थी। ऑक्सफैम को 2013-2016 में करीब 1.5 करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग मिली थी। नियमानुसार यह राशि संस्था के FCRA के तहत रजिस्टर्ड बैंक खाते में आनी चाहिए थी, लेकिन यह सीधे संस्था के निजी बैंक खाते में ट्रांसफर की गई। आरोप है कि ऐसा FCRA कानून से बचने के लिए किया गया।
आरोपों पर ऑक्सफैम का क्या कहना है?
अप्रैल की शुरुआत में ऑक्सफैम इंडिया के एक प्रवक्ता ने कहा था कि संस्था भारतीय कानूनों का पूरी तरह से पालन करती है और ऑक्सफैम ने FCRA सहित बाकी रिटर्न समय पर फाइल किए हैं। प्रवक्ता ने कहा था, "ऑक्सफैम भारत की सभी एजेंसियों के साथ पूरी तरह सहयोग कर रही है। FCRA लाइसेंस के नवीनीकरण को लेकर संस्था ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की थी, जिस पर हाई कोर्ट ने केंद्र से जवाब भी मांगा है।"
2021 में रद्द हुआ था ऑक्सफैम का FCRA लाइसेंस
केंद्र सरकार ने दिसंबर, 2021 में ऑक्सफैम समेत करीब 12,000 से ज्यादा NGO का FCRA लाइसेंस रद्द कर दिया था। सरकार ने इसके पीछे विदेश से मिली फंडिंग में मानदंडों के उल्लंघन और लाइसेंस की अवधि खत्म होने के बाद भी नवीनीकरण के लिए आवेदन नहीं करने को वजह बताया था। इसके बाद सितंबर, 2022 में आयकर विभाग ने CPR, ऑक्सफैम इंडिया और इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन (IPSMF) के कार्यालयों पर सर्वे किया था।
CPR का FCRA लाइसेंस भी रद्द कर चुकी है सरकार
1 मार्च को गृह मंत्रालय ने CPR का FCRA लाइसेंस रद्द कर दिया था। इस NGO का कामकाज कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की बेटी यामिनी अय्यर संभालती हैं। आरोप था कि CPR को अक्टूबर से दिसंबर, 2022 की अवधि के दौरान बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय, वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट और ड्यूक विश्वविद्यालय से 10.1 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त हुई थी। इसी राशि के संबंध में गृह मंत्रालय ने NGO से स्पष्टीकरण मांगा गया था।
क्या होता है FCRA लाइसेंस?
FCRA कानून को 1976 में आपातकाल के दौरान बनाया गया था। सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े स्वयंसेवी संगठनों का इस कानून के तहत रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है। इसके तहत NGO को विदेशी फंडिंग के लिए लाइसेंस जारी किया जाता है। इस कानून का उद्देश्य NGO को मिल रही विदेशी फंडिंग पर नजर रखना है। इसके साथ ही ये सुनिश्चित करता है कि फंडिंग जिस उद्देश्य के लिए मिली है, उसका इस्तेमाल उसी काम में हो रहा है या नहीं।