#NewsBytesExplainer: भारत ने शेख हसीना को क्यों दी पनाह, क्या कहती है देश की शरणार्थी नीति?
बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा है और उन्होंने भारत में शरण ली है। यहां से वे ब्रिटेन जाने की योजना बना रही है, लेकिन नियमों के चलते ऐसा संभव होता नहीं दिख रहा है। भारत ने कहा है कि जब तक हसीना को किसी सुरक्षित देश में शरण नहीं मिल जाती, तब तक वे भारत में रह सकती हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि भारत की शरणार्थी नीति क्या है।
सबसे पहले जानिए शरणार्थी क्या होता है?
संयुक्त राष्ट्र (UN) के मुताबिक, शरणार्थी वह व्यक्ति होता है, जिसे उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण अपने देश से भागने के लिए मजबूर किया गया हो। एक शरणार्थी को नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनीतिक राय या किसी विशेष सामाजिक समूह में सदस्यता के कारण उत्पीड़न का डर होता है। शरणार्थी शब्द किसी भी ऐसे व्यक्ति से संबंधित है, जो अपने मूल देश से बाहर है और धर्म, राष्ट्रीयता जैसी वजहों से वापस लौटने में असमर्थ या अनिच्छुक है।
शरणार्थी और प्रवासी में क्या फर्क होता है?
शरणार्थी व्यक्ति आमतौर पर मजबूरी या दबाव के चलते देश छोड़ता है, जबकि प्रवासी वह व्यक्ति होता है, जो स्वेच्छा से अपना देश छोड़कर दूसरे देश में नया जीवन शुरू करना चाहता है। आमतौर पर नौकरी के लिए कोई व्यक्ति ऐसा करता है। इसके अलावा आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति भी होते हैं। इन्हें अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है, लेकिन ये अंतरराष्ट्रीय सीमा पार नहीं करते और देश में ही दूसरी जगहों पर रहने लगते हैं।
शरणार्थियों को लेकर क्या है भारत की नीति?
भारत के पास कोई राष्ट्रीय शरणार्थी नीति या कानून नहीं है। भारत में शरणार्थियों को शरण लेने की अनुमति देने वाली कोई प्रक्रिया भी नहीं है। अगर बिना वीजा कोई भारत में प्रवेश करता है तो उसे विदेशी अधिनियम या भारतीय पासपोर्ट अधिनियम के तहत अवैध आप्रवासी माना जाता है। यहां तक कि भारत ने शरणार्थियों से संबंधित 1951 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन और 1967 के प्रोटोकॉल जैसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों पर भी हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
शरणार्थियों को लेकर क्या है अंतरराष्ट्रीय कानून?
1951 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन में अवापसी का सिद्धांत ये गारंटी देता है कि किसी को भी उस देश में नहीं लौटाया जाएगा, जहां उसे उत्पीड़न, क्रूरता, अमानवीय अपमानजनक व्यवहार या दण्ड का सामना करना पड़ सकता हो। समझौते में शामिल पक्ष शरणार्थियों से मजहब, नस्ल या देश के आधार पर भेदभाव नहीं करेंगे। हालांकि, किसी गंभीर अपराध में दोषी सिद्ध होने पर या देश या समुदाय के लिए खतरा पैदा होने पर शरणार्थी को वापस भेजा जा सकता है।
शरणार्थियों को लेकर भारत का रुख क्या रहा है?
भारत ने 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता की लड़ाई का समर्थन किया था और वहां से हजारों शरणार्थियों को शरण दी थी। इसके अलावा 1959 में आए तिब्बती, 1965 और 1971 में बांग्लादेश से आए चकमा और हाजोंग, 1980 के दशक के दौरान श्रीलंका और कुछ सालों पहले म्यांमार से आए रोहिंग्याओं को भारत ने शरण दी है। भारत ने भले किसी कानून पर हस्ताक्षर नहीं किए, लेकिन अवापसी के सिद्धांत का पालन करता है।
भारत में कितने शरणार्थी हैं?
2023 तक भारत में UNHCR के साथ 46,569 व्यक्ति बतौर शरणार्थी पंजीकृत थे। भारत के कुल शरणार्थियों में से 46 प्रतिशत महिलाएं और लड़कियां हैं और 36 प्रतिशत बच्चे हैं। भारत दक्षिण-पूर्वी एशिया के उन 3 देशों में सबसे ऊपर है, जिसने सबसे ज्यादा शरणार्थियों को शरण दी है। मोटे तौर पर माना जाता है कि भारत में 2 लाख से भी ज्यादा शरणार्थी हैं। हालांकि, इसका वास्तविक आंकड़ा कहीं ज्यादा हो सकता है।