समलैंगिक विवाह: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का दूसरा दिन, जानें आज क्या-क्या हुआ
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर लगातार दूसरे दिन सुनवाई हुई। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की संवैधानिक पीठ ने मंगलवार को मामले की सुनवाई शुरू की थी। आइए जानते हैं कि दूसरे दिन की सुनवाई के दौरान किस पक्ष ने क्या कहा और सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी की।
CJI ने सरकार के विचार को किया खारिज
CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि केंद्र सरकार समलैंगिकता और समलैंगिक विवाह के विचार को शहरी अभिजात्य अवधारणा के रूप में पेश नहीं कर सकती है। CJI चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि शहरी क्षेत्रों के लोग मामले को लेकर अपनी अधिक अभिव्यक्ति दे रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं हैं कि यह सिर्फ शहरी अभिजात्य अवधारणा है और केंद्र सरकार के पास इस तर्क को लेकर कोई डाटा उपलब्ध नहीं है।
समलैंगिक विवाह होने पर दोनों पार्टनर की आयु को लेकर हुई चर्चा
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान समलैंगिक विवाह होने की स्थिति में दोनों पार्टनर की आयु को लेकर भी बहस हुई। सुनवाई के दौरान चर्चा हुई कि समलैंगिक विवाह होने पर दोनों पार्टनर में से किस पार्टनर की आयु 18 वर्ष होगी और किस पार्टनर की आयु 21 वर्ष होगी। बता दें, विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने के लिए योग्य होने के लिए पुरुष को 21 वर्ष और महिला को 18 वर्ष की आयु पूरी करना आवश्यक है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से की राज्यों को पक्षकार बनाने की मांग
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दायर कर मामले में राज्यों को भी पक्षकार बनाने की मांग की है। सरकार ने कहा कि समलैंगिक विवाह पर बहस राज्यों के विधायी क्षेत्र के अंतर्गत आती है और सुनवाई में उन्हें भी पक्षकार होना चाहिए। केंद्र ने मंगलवार को भी कहा था कि समलैंगिक विवाह का विचार समवर्ती सूची में आता है, इसलिए राज्यों को पक्षकार बनाया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं ने आज क्या दलीलें दीं?
याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि विषमलैंगिकता की धारणा को तोड़ने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संविधान में दिए गए सभी मौलिक अधिकार दोनों विषमलैंगिक और समलैंगिक लोगों के लिए हैं और कोई कारण नहीं है कि समलैंगिक जोड़ों को विवाह करने के अधिकार से वंचित किया जाए। रोहतगी ने कहा कि समलैंगिकता के अपराध के दायरे से बाहर होने के बावजूद समलैंगिक लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।
सुनवाई के दौरान कई LGBTQ एक्टिविस्ट के दिए गए उदाहरण
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान LGBTQ समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ रहे कई एक्टिविस्ट के उदाहरण दिए गए। वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन ने पीठ को बताया कि उनके मुवक्किल जैनब पटेल एक ट्रांसजेंडर महिला हैं, जिन्हें उनके परिवार ने अस्वीकार कर दिया था। इसी तरह एडवोकेट जयाना कोठारी ने अपनी मुवक्किल और ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट अक्काई पद्मशाली का जिक्र किया, जिन्हें उनके परिजनों ने 15 वर्ष की आयु में घर से बाहर निकाल दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने बताया क्यों कर रहे समलैंगिक विवाह की मांग
याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बुधवार को सुनवाई के दौरान समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग के पीछे के तर्क पेश किए। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता अपने समुदाय और रिश्ते की सामाजिक मान्यता के साथ-साथ समाज में सुरक्षा की भावना चाहते हैं। सिंघवी ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता अपने लिए अधिक वित्तीय सुरक्षा और गरिमापूर्ण और आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने की इच्छा रखते हैं।
कल क्या हुआ था?
बता दें कि CJI चंद्रचूड़ ने मंगलवार को कहा था कि किसी जैविक पुरुष या जैविक महिला की अवधारणा पूर्ण नहीं है। उन्होंने कहा था, "सवाल यह नहीं है कि आपके जननांग क्या हैं, यह काफी जटिल बात है। जब विशेष विवाह अधिनियम पुरुष और महिला कहता है, तब भी एक पुरुष और एक महिला की धारणा जननांगों पर आधारित नहीं है।" लोगों ने उनकी इस टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं व्यक्त की थीं।
सुप्रीम कोर्ट पर्सनल लॉ पर विचार करने से कर चुकी है इनकार
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामले में पर्सनल लॉ पर विचार नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने कहा था कि वह देखेगी कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के जरिए समलैंगिकों को शादी का अधिकार दिया जा सकता है या नहीं।
केंद्र सरकार लगातार कर रही है समलैंगिक विवाह का विरोध
केंद्र सरकार लगातार समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का विरोध कर रहा है। केंद्र ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं सुनवाई के योग्य नहीं हैं और समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना न्यायपालिका की जगह संसद के क्षेत्राधिकार का मामला है। केंद्र सरकार ने पहले कहा था कि याचिकाएं पूरे देश की सोच को व्यक्त नहीं करती हैं और यह सिर्फ एक सीमित शहरी वर्ग के विचारों को दर्शाती हैं।
समलैंगिक संबंधों पर क्या कहता है मौजूदा कानून?
कुछ वर्ष पहले तक भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत देश में समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में आते थे, लेकिन 6 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अपराध करार देने वाले धारा 377 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में समलैंगिक विवाह का कोई जिक्र नहीं किया था, जिसके कारण अभी तक इनकी स्थिति अधर में लटकी हुई है।