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    समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने पर विचार नहीं कर रही सरकार

    समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने पर विचार नहीं कर रही सरकार

    लेखन भारत शर्मा
    Feb 08, 2020
    05:26 pm

    क्या है खबर?

    सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध (धारा-377) की श्रेणी से हटाकर भले ही उन्हें खुशियों की सौगात दे दी हो, लेकिन सरकार अभी उनके विवाह को कानूनी मान्यता देने के मूड में नजर नहीं आ रही है।

    केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा शुक्रवार को राज्यसभा में एक सवाल के दिए गए जवाब से तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है।

    कानून मंत्री ने कहा कि सरकार समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विचार नहीं कर रही है।

    जवाब

    कानून मंत्री ने राज्यसभा में कही यह बात

    राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने पूछा था कि क्या सरकार समलैंगिकों के विवाह के पंजीयन की कोई योजना बना रही है।

    इस पर कानून मंत्री प्रसाद ने कहा कि सरकार समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने पर अभी कोई विचार नहीं कर रही है।

    ऐसे में समलैंगिक जोड़े कानूनी तौर पर अपने विवाह का पंजीकरण नहीं करा सकते हैं। इस बयान ने फिर समलैंगिक विवाह पर बहस का मुद्दा छेड़ दिया है।

    धारा-377

    सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दिया था समलैंगिकता पर अहम फैसला

    समलैंगिक संबधों को लेकर देश में लंबे समय से बहस चल रही थी। 6 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की बैंच ने समलैंगिक संबंधों को अपराध बनाने वाले भारतीय दंड संहिंता की धारा-377 को कानून से हटाने का फैसला दिया था।

    मुख्य न्यायाधीश ने उस समय कहा था कि समलैंगिकता अपराध नहीं है। उन्हें भी सामान्य लोगों की तरह सभी मूल अधिकार प्राप्त हैं। देश में सबको सम्मान रुप से जीने का अधिकार है।

    जानकारी

    धारा-377 हटने पर आई खुशियां, लेकिन मन में सवाल

    सुप्रीम कोर्ट की ओर से समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किये जाने पर समलैंगिकों ने फैसले का स्वागत किया था। हालांकि, उस दौरान भी समलैंगिकों में मन में बड़ा सवाल यही था कि अब वह शादी कर पाएंगे या नहीं।

    बदलाव

    समलैंगिकों की शादी को मान्यता देने के लिए कानून में करना होगा बदलाव

    समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटाए जाने के बाद उन पर कानूनी कार्रवाई के खतरे को खत्म कर दिया गया था, लेकिन देश में उनकी शादी को कानूनी मान्यता देने के लिए कानून में बदलाव करने की जरूरत होती है।

    कानून संसद द्वारा बनाया जाता है और सुप्रीम कोर्ट सरकार को कोई भी कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकती है। सरकार को ही तीन तलाक बिल की तरह इसके लिए अलग से बिल बनाना होगा।

    पहला मामला

    फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में नहीं दी गई थी समलैंगिक शादी को मान्यता

    सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भारत में कई समलैंगिक शादियां हो चुकी हैं, लेकिन उनको कानूनी मान्यता नहीं मिल सकी है।

    इसको लेकर सबसे पहले दिसंबर 2018 में उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में दो युवतियों ने शादी कर ली थी।

    उन्होंने अपनी शादी के पंजीयन के लिए जिला कार्यालय में आवेदन किया था, लेकिन जिला प्रशासन ने समलैंगिक शादी को मान्यता देने के संबंध में कोई नियम-कानून नहीं होने का हवाला देकर आवेदन को निरस्त कर दिया था।

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