समलैंगिक विवाह का केंद्र ने फिर किया विरोध, कहा- यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं का एक बार फिर विरोध किया है। केंद्र ने कहा है कि शादी एक सामाजिक संस्था है और इस पर किसी नए संबंध को मान्यता देने का अधिकार सिर्फ विधायिका के पास है और यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र के दायरे से बाहर है। केंद्र ने आगे कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का समाज पर व्यापक असर होगा।
पूरे देश की सोच को व्यक्त नहीं करती हैं याचिकाएं- केंद्र
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने आवेदन में कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएं पूरे देश की सोच को व्यक्त नहीं करती हैं और यह सिर्फ एक सीमित शहरी वर्ग के विचारों को दर्शाती हैं। केंद्र ने कहा कि इन याचिकाओं को देश के सभी लोगों और विभिन्न वर्गों का विचार नहीं माना जा सकता है। केंद्र ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सबसे पहले इन याचिकाओं के औचित्य पर विचार करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ कल से करेगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों वाली संवैधानिक पीठ 18 अप्रैल से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग से संबंधित सभी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी। सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग भी की जाएगी। गौरतलब है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने 13 मार्च को मामले में दाखिल सभी याचिकाओं को संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया था।
केंद्र सरकार पहले भी कर चुकी है समलैंगिक विवाह का विरोध
केंद्र सरकार ने मार्च में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि समलैंगिक और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग हैं, इसलिए इन्हें एक जैसा नहीं माना जा सकता है और समलैंगिक विवाह भारतीय परंपरा के खिलाफ है। केंद्र ने कहा था कि शादी को समाज में संस्था का दर्जा प्राप्त है, जिसका अपना सार्वजनिक महत्व होता है और केंद्र केवल महिला-पुरुष की शादी को मान्यता देने का इच्छुक है।
कई समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट कई समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। कोर्ट में पहली याचिका हैदराबाद के रहने वाले सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग ने दायर की थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि वो पिछले 10 साल से रिलेशन में हैं और हाल ही में उन्होंने अपने परिजनों की मौजूदगी में शादी की थी। उन्होंने कहा था कि अब वो चाहते हैं कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत उनकी शादी को मान्यता दी जाए।
समलैंगिक संबंधों पर मौजूदा कानून क्या कहता है?
कुछ साल पहले तक भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत देश में समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में आते थे, लेकिन 6 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अपराध करार देने वाले धारा 377 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने अपने फैसले में समलैंगिक विवाह का कोई जिक्र नहीं किया था, जिसके कारण अभी तक इनकी स्थिति अधर में लटकी हुई है।