समलैंगिक विवाह: केंद्र ने राज्यों से भी मांगी राय, 10 दिन में जवाब देने को कहा
केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह पर 10 दिनों के भीतर राज्यों से राय मांगी है। केंद्र ने यह राय ऐसे समय पर मांगी है जब सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। इस मामले की सुनवाई 5 जजों की संविधान पीठ कर रही है, जिसमें मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एसआर भट, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
केंद्र ने की राज्यों को पक्षकार बनाने की मांग
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आज नया हलफनामा दायर कर इस मामले में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी पक्षकार बनाने की मांग की है। सरकार का कहना है कि समलैंगिक विवाह पर बहस राज्यों के विधायी क्षेत्र के अंतर्गत आती है, इसलिए उन्हें सुनवाई में पक्षकार होना चाहिए। मंगलवार को भी केंद्र ने कहा था कि यह विषय समवर्ती सूची में आता है और इस मामले में राज्यों को पक्षकार बनाया जाना चाहिए।
केंद्र के प्रस्ताव का याचिकाकर्ताओं ने किया विरोध
राज्यों को पक्षकार बनाने संबंधी केंद्र के प्रस्ताव का याचिकाकर्ताओं ने विरोध किया है। उनके वकील मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सिर्फ इसलिए कि मुद्दा समवर्ती सूची में है, इसका मतलब यह नहीं है कि राज्यों को भी पक्षकार बनाने की जरूरत है। वकीलों ने कहा कि केंद्र ने पहले एक पत्र जारी कर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विचार मांगे थे और मामला 5 महीने से लंबित है।
मामले में कौन किसका पक्ष रख रहा है?
इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पक्ष रख रहे हैं, वहीं याचिकाकर्ताओं का पक्ष मुकुल रोहतगी, सौरभ किरपाल, नीरज किशन कौल, मेनका गुरुस्वामी, अरुंधति काटजू, आनंद ग्रोवर, अखिल सिब्बल, शाहदान फरासत और करुणा नंदी रख रहे हैं।
सुनवाई के दौरान कल क्या हुआ था?
कल तुषार मेहता ने कहा था कि मामले में दाखिल की गईं याचिकाएं सुनवाई के योग्य नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना न्यायपालिका की जगह संसद के क्षेत्राधिकार का मामला है। उन्होंने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट शादी की नई संस्था नहीं बना सकता है। यहां मौजूद कुछ विद्वान वकील और जज पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं और इसके लिए संसद ही सही जगह है।"
पर्सनल लॉ पर विचार नहीं किया जाएगा- सुप्रीम कोर्ट
मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो पर्सनल लॉ के क्षेत्र में जाए बिना देखेगी कि क्या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के जरिए समलैंगिकों को शादी का अधिकार दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "विशेष विवाह अधिनियम में भी एक पुरुष और एक महिला की अवधारणा लिंग के आधार पर पूर्ण नहीं है। सवाल यह नहीं है कि आपके जननांग क्या हैं, यह काफी जटिल बात है।"