वाराणसी में मौसेरी बहनों ने की एक-दूसरे से शादी, प्राचीन शहर में पहला समलैंगिक विवाह
क्या है खबर?
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में दो मौसेरी बहनों ने साहसिक कदम उठाते हुए एक-दूसरे से शादी कर ली।
ये कदम उन्होंने अपने परिवारों की मर्जी के खिलाफ उठाया।
शादी के बाद दोनों बहनों ने सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीर भी पोस्ट की, जिससे समलैंगिकता पर फिर से बहस छिड़ गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र और दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में शामिल वाराणसी में ये समलैंगिक विवाह का पहला मामला है।
मामला
पहले पुजारियों ने किया शादी से इनकार
बुधवार को हुई दोनों बहनें वाराणसी के रोहानिया के वीरभानपुर इलाके में स्थित हनुमान मंदिर में पहुंची। मंदिर शादी कराने के लिए प्रचलित है।
जींस-टॉप में मंदिर पहुंची लड़कियों ने एक-दूसरे से शादी करने की इच्छा जाहिर की।
पुजारी के शादी कराने से मना करने पर लड़कियां उसके हां कहने तक मंदिर में ही बैठी रहीं।
इसके बाद उन्हें हनुमान मंदिर में ही स्थित शिव मंदिर की तरफ भेजा गया।
घटनाक्रम
शादी के दौरान इकट्ठा हुई भीड़
एक पुजारी ने बताया कि लड़कियों ने अपने बैग से चुनरियां निकालीं और उन्हें पहन लिया।
इसके बाद उन्होंने एक-दूसरे को सिंदूर लगाया और मालाएं और मंगलसूत्र पहनाया।
पुजारियों के अनुसार, इस दौरान वहीं काफी लोग इकट्ठा हो गए और हैरान होकर विवाह समारोह को देखते रहे।
किसी अप्रिय घटना से बचने के लिए बाकी औपचारिकताओं को पूरी किए बिना ही दोनों लड़कियां जिस ऑटो से आईं थीं, उसी से वापस लौट गईं।
संबंध
कानपुर से वाराणसी पढ़ने आई थी एक बहन
खबरों के अनुसार, दोनों लड़कियां मौसेरी बहनें थीं। उनमें से एक वाराणसी से थी, जबकि दूसरी कानपुर से थी, जोकि यहां पढ़ने आई थी और अपनी मौसेरी बहन के साथ रहती थी।
इस दौरान दोनों में प्रेम संबंध बन गए और उन्होंने शादी करने का फैसला लिया।
बताया जा रहा है कि दोनों ने अपने परिवारों के खिलाफ जाकर ये शादी की है।
कुछ लोग इस समलैंगिक शादी को कराने के लिए पुजारी की आलोचना भी कर रहे हैं।
समलैंगिकता पर कानून
समलैंगिकता अपराध नहीं, लेकिन समलैंगिक विवाह पर कानून स्पष्ट नहीं
बता दें कि भारत में समलैंगिकता कानूनी अपराध नहीं है।
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता संबंधों को अपराध बनाने वाली IPC की धारा 377 को खत्म कर दिया था।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच के इस फैसले को LGBTQ समुदाय की एक बड़ी जीत माना गया था।
हालांकि इसमें समलैंगिक विवाह पर कुछ साफ नहीं किया गया था और इस पर अभी भी स्पष्ट कानून नहीं है।