उपराष्ट्रपति की टिप्पणी के बाद संविधान की मूल संरचना पर बोले CJI, जानें क्या कहा
भारत के मुख्य न्यायधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत ध्रुव तारे की तरह है, जो रास्ता जटिल होने पर मार्गदर्शन करता है। उन्होंने कहा कि यह संविधान की व्याख्या और कार्यान्वयन करने वालों को एक निश्चित दिशा देता है। बता दें कि CJI का बयान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर की गई टिप्पणी पर आया है।
कानून के शासन पर आधारित है संविधान की मूल संरचना- CJI
CJI ने मुंबई में नानी ए पालकीवाला स्मृति व्याख्यान देते हुए कहा, "हमारे संविधान की मूल संरचना ध्रुव तारा की तरह मार्गदर्शन करती है और संविधान की व्याख्या करने वालों और कार्यान्वयन करने वालों को उस वक्त एक निश्चित दिशा देती है जब आगे का मार्ग जटिल होता है। हमारे संविधान की मूल संरचना सर्वोच्चता, कानून का शासन, न्यायिक समीक्षा, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, स्वतंत्रता और व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता एवं अखंडता पर आधारित है।"
CJI ने और क्या कहा?
CJI ने कहा कि एक न्यायाधीश की शिल्पकारी संविधान की आत्मा को अक्षुण्ण रखते हुए बदलते समय के साथ संविधान के पाठ की व्याख्या करने में निहित है। उन्होंने कहा, "हाल के दशकों में उपभोक्ता कल्याण को बढ़ावा देने और वाणिज्यिक लेनदेन का समर्थन करने के पक्ष में भारत के कानूनी परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है। संविधान सरकार को सामाजिक मांगों को पूरा करने के लिए अपनी नीतियों को बदलने और विकसित करने की अनुमति देता है।"
उपराष्ट्रपति ने केशवानंद भारती मामले के फैसले पर उठाया था सवाल
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में वर्ष 1973 के केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाते हुए बयान दिया था। धनकड़ ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बुरी मिसाल कायम की है और अगर कोई प्राधिकरण संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति पर सवाल उठाता है तो यह कहना मुश्किल होगा कि भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं।
धनकड़ ने NJAC अधिनियम रद्द करने पर भी उठाए थे सवाल
बता दें कि उपराष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को रद्द करते हुए कॉलेजियम सिस्टम को बहाल किए जाने पर सवाल खड़ा कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि NJAC अधिनियम लोकसभा और राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित हुआ था और भारत के लोगों की इच्छा एक संवैधानिक प्रावधान में तब्दील हुई थी, लेकिन एक वैध मंच के जरिये सामने आई लोगों की इस शक्ति को पलट दिया गया था।