#NewsBytesExplainer: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर पर तुर्की को क्यों है आपत्ति, क्या चीन है वजह?
क्या है खबर?
G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत-मध्य पूर्व-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) बनाने का ऐलान किया गया है। इसमें भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ (EU) शामिल हैं।
ये परियोजना जहां से होकर गुजरेगी, उस रास्ते में तुर्की भी आता है, लेकिन तुर्की को इसका हिस्सा नहीं बनाया गया है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने इस पर आपत्ति जताई है।
आइए समझते हैं कि तुर्की को क्यों इस परियोजना पर आपत्ति है।
अर्दोआन
तुर्की के राष्ट्रपति ने क्या कहा?
अर्दोआन ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि तुर्की के बिना कोई कॉरिडोर पूरा नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा, "हमारा कहना है कि तुर्की के बिना कोई कॉरिडोर पूरा नहीं हो सकता। तुर्की उत्पादन और व्यापार का महत्वपूर्ण आधार है। पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाले किसी भी ट्रैफिक को तुर्की से होकर ही गुजरना होगा।"
अर्दोआन के इस बयान ने प्रस्तावित कॉरिडोर को लेकर राजनीतिक माहौल में गहमागहमी बढ़ा दी है।
आपत्ति
तुर्की को क्यों है आपत्ति?
BBC से बात करते हुए इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर में सीनियर रिसर्च फेलो डॉक्टर फज्जुर रहमान सिद्दीकी ने कहा, "इस कॉरिडोर में इजरायल भी शामिल है। इस वजह से इस परियोजना को अमेरिका के प्रोजेक्ट की तरह देखा जा रहा है। कॉरिडोर को चीन के वन बेल्ट वन रोड (OBOR) का विकल्प बताया जा रहा है। यह बात उन देशों को ज्यादा परेशान कर रही है, जिनके चीन के साथ अच्छे संबंध हैं। इनमें तुर्की भी शामिल हैं।"
डर
कॉरिडोर से तुर्की को क्या है डर?
सिद्दीकी कहते हैं, "भूमध्य सागर में तुर्की का दबदबा है। वो नहीं चाहता कि कोई और उसे इस इलाके में चुनौती दे और उसकी रणनीतिक स्थिति कमजोर हो। तुर्की को डर है कि यह आर्थिक कॉरिडोर न रहकर भू-राजनैतिक कॉरिडोर में बदल जाएगा।"
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की प्रोफेसर सुजाता ऐश्वर्या ने BBC से बात करते हुए कहा, "तुर्की को डर है कि उसके बाहर रहने से इस क्षेत्र में सऊदी अरब को रणनीतिक रूप से बढ़त मिलेगी।"
परियोजना
तुर्की को परियोजना में शामिल क्यों नहीं किया गया?
प्रोफेसर सुजाता के मुताबिक, "तुर्की के पड़ोसी देशों के साथ तनावपूर्ण संबंध हैं। साइप्रस और तुर्की में लंबे समय से विवाद है। ग्रीस से भी तुर्की का विवाद चल रहा है। कई बार ग्रीस और तुर्की के बीच युद्ध जैसे हालात बन चुके हैं।"
विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की के अपने पड़ोसी देशों के साथ तनावपूर्ण संबंधों की वजह से भी उसे परियोजना से बाहर रखा गया है।
कॉरिडोर
कैसा होगा कॉरिडोर?
बता दें कि इस कॉरिडोर के जरिए रेल और बंदरगाहों का नेटवर्क बनाया जाएगा, जिससे इन देशों के बीच व्यापार सुगम होगा और कनेक्टिविटी बढ़ेगी। यह प्रोजेक्ट पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट (PGII) का हिस्सा है।
इस कॉरिडोर में 2 अलग-अलग कॉरिडोर होंगे। एक पूर्वी कॉरिडोर होगा, जो भारत को पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व से जोड़ेगा और एक उत्तरी कॉरि़डोर होगा, जो पश्चिम एशिया या मध्य पूर्व को यूरोप से जोड़ेगा।
व्यापार
कॉरिडोर से कैसे होगा व्यापार?
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बना सामान पहले समुद्र के रास्ते UAE के फुजैराह बंदरगाह जाएगा। फिर यहां से सऊदी अरब और जॉर्डन होते हुए ये रेलमार्ग से इजरायल के हाइफा बंदरगाह तक पहुंचेगा।
इसके बाद समुद्री मार्ग के जरिए सामान को हाइफा से यूरोप पहुंचाया जाएगा। वर्तमान में भारत से सामान अरब सागर से होते हुए स्वेज नहर से माध्यम से भूमध्य सागर के जरिए यूरोप पहुंचाया जाता है।
फायदा
कॉरिडोर से क्या फायदा होगा?
कॉरिडोर से भारत को मध्य-पूर्व और अंतत: यूरोप तक की कनेक्टिविटी मिलेगी। इससे भारत का व्यापार सुगम होगा और रणनीति तौर पर ग्लोबल साउथ में चीन पर बढ़त मिलेगी।
दावा किया जा रहा है कि इससे भारत से यूरोप सामान पहुंचाने में 40 प्रतिशत समय की बचत होगी और खर्च में भी कमी आएगी। हालांकि, विशेषज्ञ इसके आर्थिक फायदे को लेकर दिए जा रहे आंकड़ों पर कुछ भी कहना जल्दबाजी बता रहे हैं।