चीन की परियोजना में शामिल होने को इटली ने क्यों बताया तबाह करने वाला फैसला?
चीन के वन बेल्ट वन रोड (OBOR) परियोजना का हिस्सा बनकर इटली को अफसोस हो रहा है। इटली के रक्षा मंत्री गुइडो क्रोसेटो ने रविवार को एक इंटरव्यू में कहा कि 4 साल पहले OBOR परियोजना में शामिल होकर इटली ने एक 'जल्दबाजी भरा और तबाह करने वाला' फैसला लिया। उन्होंने कहा कि परियोजना में शामिल होने के बाद भी चीन ने इटली के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं किया।
क्या बोले इटली के रक्षा मंत्री?
रक्षा मंत्री क्रोसेटो ने एक अखबार से बात करते हुए कहा, "नए रेशम मार्ग में शामिल होने का फैसला जल्दबाजी में लिया गया और यह तबाह करने वाला कदम था। इससे चीन का निर्यात तो इटली में कई गुना बढ़ा, लेकिन इटली के निर्यात पर कोई असर नहीं पड़ा।" हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि चीन इटली का एक साझेदार देश है और उसके साथ द्विपक्षीय संबंधों को जारी रखा जाएगा।
OBOR से बाहर निकलना चाहता है इटली
क्रोसेटो ने कहा, "आज हमारे बीच अहम मुद्दा ये है कि चीन के साथ संबंधों को खराब किए बिना इस परियोजना से कैसे पीछे हटा जाए। यह सच है कि चीन हमारा प्रतिस्पर्धी है, लेकिन एक भागीदार भी है।" बता दें कि इटली की पिछली सरकार ने OBOR में शामिल होने का फैसला लिया था। इटली इस परियोजना से जुड़ने वाला पहला प्रमुख पश्चिमी देश था। अब इटली इस परियोजना से खुद को अलग करना चाहता है।
दिसंबर तक OBOR पर फैसला लेगी सरकार- प्रधानमंत्री मेलोनी
हाल ही में इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने कहा कि उनकी सरकार के पास OBOR पर फैसला लेने के लिए दिसंबर तक का समय है। उन्होंने कहा, "यह एक विरोधाभास है कि भले ही इटली OBOR का हिस्सा है, लेकिन वह चीन के साथ सबसे मजबूत व्यापारिक संबंधों वाला G7 देश नहीं है। इससे पता चलता है कि OBOR के बाहर भी अच्छे संबंध और साझेदारियां हो सकती हैं।"
2019 में OBOR से जुड़ा था इटली
2018 में इटली की तत्कालीन वित्त मंत्री जियोवानी ट्रिया ने चीन का दौरा किया था। इसमें फैसला लिया गया था कि इटली OBOR परियोजना में शामिल होगा। मार्च, 2019 में दोनों देशों के बीच इसे लेकर औपचारिक समझौता हुआ था। तब इटली के इस फैसले की कई पश्चिमी देशों ने आलोचना की थी। इटली की नई सरकार ने लगातार संकेत दिए हैं कि वो इस परियोजना से बाहर निकलना चाहती है।
क्या है 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना?
यह परियोजना 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा शुरू की गई थी। इसके जरिए चीन ऐतिहासिक रेशम मार्ग को फिर से विकसित करना चाहता है। श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और अफगानिस्तान समेत करीब 100 से ज्यादा देश इस परियोजना का हिस्सा हैं। आलोचक इसे भूराजनीतिक प्रभाव बढ़ाने और देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर उनके संसाधनों का दोहन करने की चीन की नीति का जरिया मानते हैं।