#NewsBytesExplainer: दुबई में हो रहा COP 28 सम्मेलन क्या है और किन मुद्दों पर होगी चर्चा?
दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक वार्षिक जलवायु शिखर सम्मेलन के 28वें संस्करण (COP 28) का आयोजन हो रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें 2 दिनों के लिए शिरकत करने के लिए दुबई जाएंगे। इस दौरान जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियों के समाधान के लिए 200 देशों के प्रतिनिधि दुबई में इकट्ठे होंगे आइए समझते हैं कि ये सम्मेलन क्या है और क्यों किया जाता है।
क्या है COP 28?
COP का मतलब होता है कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज। ये जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) का प्राथमिक निर्णय लेने वाला निकाय है। इसमें 197 देश शामिल हैं। चूंकि ये सम्मेलन का 28वां संस्करण है, इसलिए इसे COP 28 कहा जा रहा है। COP की पहली बैठक 1995 में जर्मनी में आयोजित की गई थी। इसमें जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान में वृद्धि, जीवाश्म ईंधन और नवीनीकरणीय ऊर्जा जैसे कई मुद्दों पर चर्चा होती है।
COP 28 में किन मुद्दों पर होगी चर्चा?
COP सम्मेलन में सदस्य ग्लोबल स्टॉकटेक (GST) पर चर्चा करेंगे। ये पेरिस जलवायु समझौते की दिशा में देशों की प्रगति का विश्लेषण करने वाला एक स्कोरकार्ड है। इसके अलावा सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे देश ने 4 अलग-अलग थीम भी निर्धारित की है। इनमें ऊर्जा परिवर्तन पर नजर रखना, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी वित्तीय स्थिति को ठीक करना, प्रकृति, लोग, जीवन और आजीविका पर फोकस और जलवायु प्रबंधन में समावेशिता जैसे मुद्दे शामिल हैं।
सम्मेलन में कौन शामिल होगा और कौन नहीं?
COP 28 में कम से कम 70,000 लोगों के शामिल होने की उम्मीद है। ब्रिटेन के राजा चार्ल्स तृतीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में भाषण देंगे। अभी तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, स्कॉटलैंड के मंत्री हमजा यूसुफ और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन में जाने की पुष्टि की है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन सम्मेलन में भाग नहीं लेंगे। पहले पोप फ्रांसिस भी सम्मेलन में आने वाले थे, लेकिन बीमारी की वजह से उन्होंने दौरा रद्द कर दिया है।
क्यों अहम है COP 28?
ये सम्मेलन ऐसे वक्त हो रहा है, जब दुनियाभर में ग्लेशियर पिघलने, समुद्री जलस्तर में वृद्धि, सूखे, जंगल की आग और बाढ़ जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है। वैज्ञानिक अनुमान जता रहे हैं कि साल 2023 पृथ्वी के इतिहास का सबसे गर्म साल हो सकता है। मई में विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने कहा था कि 2027 में वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी पेरिस समझौते के तहत निर्धारित किए गए 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पार कर जाएगा।
सम्मेलन में कौन-कौनसे समझौते हो सकते हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि देश मीथेन गैस के उत्सर्जन में कटौती के लिए एक समझौते पर पहुंच सकते हैं। बता दें कि मीथेन एक ग्रीनहाउस गैस है, जो वायुमंडल को गर्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नवीनीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को 3 गुना करने पर भी सहमति बन सकती है। सम्मेलन में कंपनियां और देश अपनी ओर से भी अतिरिक्त घोषणाओं का ऐलान करते हैं। हालांकि, इन सत्रों में बड़ी घोषणा की उम्मीद बेहद कम है।
COP सम्मेलनों की क्यों होती है आलोचना?
पर्यावरण कार्यकर्ता COP सम्मेलनों को समय और पैसों की बर्बादी बताते रहे हैं। दरअसल, इन सम्मेलनों में लिए गए निर्णय बाध्यकारी नहीं होते हैं। यानी कोई देश अगर उन फैसलों पर अमल नहीं करता है तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। दूसरी ओर, विकासशील देश विकसित देशों पर जबरिया नियम थोपने का आरोप भी लगाते हैं। विकसित देश भी सम्मेलन में लिए गए फैसलों को उनके विकास में बाधा मानते हैं।