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    जलवायु परिवर्तन: G-20 की वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर सहमति- रिपोर्ट

    जलवायु परिवर्तन: G-20 की वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर सहमति- रिपोर्ट
    लेखन मुकुल तोमर
    Oct 31, 2021, 08:29 pm 1 मिनट में पढ़ें
    जलवायु परिवर्तन: G-20 की वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर सहमति- रिपोर्ट
    जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक नेताओं का बयान

    इटली की राजधानी रोम में हुए G-20 शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेताओं के बीच सदी के अंत तक वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित रखने पर सहमति बनी है। साझा बयान में इसके लिए सार्थक और प्रभावी कदम उठाने को कहा गया है, हालांकि इसका कोई ठोस रोडमैप पेश नहीं किया गया है। बयान से साफ है कि स्कॉटलैंड के ग्लासगो में होने वाले जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (COP26) की राह आसान नहीं है।

    साझा बयान में क्या कहा गया है?

    अंतररष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, रविवार शाम जारी किए गए G-20 नेताओं के साझा बयान में कहा गया है, "हम मानते हैं कि 1.5 डिग्री सेल्सियस पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव 2 डिग्री सेल्सियस के मुकाबले काफी कम होंगे। 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सभी देशों के सार्थक और प्रभावी कदम और प्रतिबद्धता जरूरी है।" इसमें कहा गया है कि देशों को जरूरत पड़ने पर अपनी कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को बढ़ाना चाहिए।

    पेरिस समझौते से थोड़ा बेहतर है बयान, लेकिन कुछ ठोस नहीं

    G-20 नेताओं के इस बयान में तापमान कटौती का लक्ष्य 2016 के पेरिस समझौते से थोड़ा बेहतर है। इस समझौते में वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस तक रखने का लक्ष्य बना था और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास करने को कहा गया था। हालांकि फिर भी इस बयान में उस तरह के वादे नहीं किए गए जैसे इस नाजुक और अहम मौके पर उम्मीद की जा रही है।

    80 प्रतिशत कार्बन का उत्सर्जन करते हैं G-20 देश

    G-20 नेताओं का ये बयान इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का 80 प्रतिशत यही देश करते हैं। चीन सबसे बड़ा उत्सर्जक है, वहीं उसके बाद अमेरिका और भारत का नंबर आता है।

    क्यों अहम है 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य?

    संयुक्त राष्ट्र (UN) और अन्य जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञों का कहना है कि सूखे, तूफान और बाढ़ जैसी भयंकर मौसमी घटनाओं से बचने और मानवता के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए वैश्विक तापमान को इस सदी के अंत तक पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित करना जरूरी है। इससे अधिक तापमान के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। इसके लिए उन्होंने 2050 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने को कहा है।

    2050 तक जीरो उत्सर्जक को लेकर प्रतिबद्ध नहीं हैं भारत समेत कई देश

    हालांकि भारत, चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों और समूहों ने अभी तक जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य नहीं रखा है। जीरो कार्बन उत्सर्जन का मतलब है कि कोई देश उतनी ही ग्रीनहाउस गैस पर्यावरण में छोड़ेगा, जितनी पेड़ और टेक्नोलॉजी आदि सोख सकेंगे। भारत ने COP26 से पहले यह लक्ष्य रखने से इनकार कर दिया है, वहीं कार्बन के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन ने इसके लिए 2060 का लक्ष्य रखा है।

    मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है जलवायु परिवर्तन

    बता दें कि वैज्ञानिक पिछले काफी सालों से चेतावनी दे रहे हैं कि मानव गतिविधियां ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण बन रही हैं और इससे जलवायु परिवर्तन उस स्तर पर पहुंच सकता है जिसके बाद इसे रोकना असंभव हो जाएगा और मानवता खतरे में पड़ जाएगी। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पहले ही खतरे के निशान से ऊपर जा चुका है। इस खतरे से निपटने के लिए रविवार से ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) शुरू हुआ है।

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