#NewsBytesExplainer: कैसे हुआ उत्तराखंड सुरंग हादसा और पहाड़ों में कैसे बनाई जाती है सुरंग?
उत्तराखंड में उत्तरकाशी के सिलक्यारा में हुए सुरंग हादसे को आज 5 दिन हो गए हैं। अभी तक सुरंग में फंसे 40 मजदूर को बाहर नहीं निकाला जा सका है। इस बीच अमेरिका से अर्थ आगर मशीन बुलवाई गई है और नॉर्वे-थाइलैंड के विशेषज्ञों से भी मदद ली जा रही है। मजदूरों को खाने का सामान और दवाएं पहुंचाई जा रही है। आइए समझते हैं कि ये हादसा आखिर कैसे हुआ।
कैसे सुरंग में फंसे मजदूर?
12 नवंबर को सुबह लगभग 5:00 बजे उत्तरकाशी में भूस्खलन के चलते ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिल्क्यारा से डंडालगांव तक निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा अचानक ढह गया था। इससे 40 मजदूर अंदर फंस गए। इनमें झारखंड के 15, उत्तर प्रदेश के 8, ओडिशा के 5, बिहार के 4, पश्चिम बंगाल के 3, उत्तराखंड के 2, असम के 2 और हिमाचल का एक मजदूर शामिल है। फिलहाल सभी मजदूर सुरंग में सुरक्षित हैं।
कैसे होती है सुरंग बनाने की शुरुआत?
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए भूमिगत निर्माण के विशेषज्ञ मनोज गार्नायक ने कहा, "सबसे पहले जहां सुरंग बनाई जानी है, वहां की चट्टान की जांच की जाती है। चट्टान में तरंगें भेजकर यह पता किया जाता है कि ये नाजुक है या ठोस है। इसके बाद चट्टान में ड्रिल कर पेट्रोग्राफिक विश्लेषण किया जाता है। इसमें चट्टान की खनिज सामग्री, कणों के आकार, बनावट और अन्य विशेषताओं का पता लगाया जाता है।"
पहाड़ों में कैसे बनाई जाती है सुरंग?
पहाड़ों में सुरंग बनाने के लिए ड्रिल और ब्लास्ट विधि (DBM) का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा सुरंग-बोरिंग मशीनों (TBM) से भी सुरंग बनाई जाती है। DBM में चट्टान में छेद कर विस्फोटक भरा जाता है और फिर विस्फोट से चट्टान तोड़ी जाती है। TBM में मशीनों के जरिए चट्टान में छेद किया जाता है और साथ ही सुरंग में पहले से बने कांक्रीट ब्लॉक्स को लगाया जाता है। ये DBM की तुलना में मंहगी, लेकिन सुरक्षित होती है।
किस तकनीक का कहां होता है इस्तेमाल?
मनोज के अनुसार, TBM का उपयोग ऊंचे पहाड़ों में सुरंग बनाने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि इससे पहाड़ में खाली जगह बनने पर चट्टान फट जाती है और उसका हिस्सा गिर जाता है। TBM 400 मीटर तक ऊंची चट्टानों में उपयोग की जाती है। दिल्ली मेट्रो के लिए सुरंगों का निर्माण TBM के जरिए किया गया है। आमतौर पर जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड सहित हिमालय जैसी जगहों पर DBM का उपयोग किया जाता है।
क्या है उत्तराखंड हादसे की वजह?
मनोज के मुताबिक, सुरंग का जो हिस्सा धंसा है, वो मुहाने से लगभग 200-300 मीटर दूर है। धंसने की वजह ये हो सकती है कि चट्टान का एक ढीला हिस्सा होगा, जो निर्माण के दौरान दिखाई नहीं दिया। एक दूसरी वजह ये हो सकती है कि चट्टान में से लगातार पानी रिस रहा होगा, जिसने धीरे-धीरे चट्टान को कमजोर कर दिया होगा। हालांकि, ये सब बस कयास हैं और स्पष्ट वजह जांच के बाद ही पता चलेगी।
क्या हिमालय के पहाड़ों में सुरंग बनाना खतरनाक है?
हिमालय को युवा पहाड़ कहा जाता है और ये अभी भी बढ़ रहे हैं। यहां पर ऐसे कुछ हिस्से हैं, जहां चट्टान सुरंग के लिहाज से बहुत नाजुक है। मनोज ने कहा, "मैंने हिमालयी क्षेत्र में काम किया है और बड़ी समस्याओं का सामना किए बिना सुरंगें बनाई हैं। हमने छोटी-छोटी परेशानियां देखीं, जिन्हें तुरंत ठीक कर लिया गया। इसलिए, भले ही कुछ स्थानों पर चट्टान नाजुक है, लेकिन इसे ठीक करने के लिए तकनीकी समाधान मौजूद हैं।"