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    #NewsBytesExplainer: व्यभिचार को फिर से अपराध बनाने की संसदीय समिति की सिफारिश में क्या पेच?
    व्यभिचार पर संसदीय समिति की सिफारिश के बाद बहस तेज

    #NewsBytesExplainer: व्यभिचार को फिर से अपराध बनाने की संसदीय समिति की सिफारिश में क्या पेच?

    लेखन महिमा
    Nov 17, 2023
    08:57 pm

    क्या है खबर?

    गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने हाल ही में भारतीय न्याय संहिता, 2023 विधेयक की समीक्षा की और व्यभिचार को एक बार फिर अपराध के दायरे में लाने की सिफारिश की।

    कोर्ट के आदेश पर भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 से इससे संबंधित धारा को हटा दिया गया था। अब समिति ने IPC की जगह लेने जा रहे भारतीय न्याय संहिता, 2023 में इसे शामिल करने की सिफारिश की है।

    आइए जानते हैं कि ये सिफारिश कितनी सही है।

    कानून

    क्या होता है व्यभिचार और IPC में इसे लेकर क्या प्रावधान था?

    जब कोई शादीशुदा व्यक्ति अपने पार्टनर के अलावा अन्य किसी व्यक्ति से संबंध बनाता है तो इसे व्यभिचार कहा जाता है।

    2018 तक IPC की धारा 497 के तहत व्यभिचार अपराध की श्रेणी में आता था और इसके लिए 5 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों का प्रावधान था।

    शादीशुदा महिला के पति की अनुमति के बिना उससे संबंध बनाने पर पुरुष को व्यभिचार का दोषी माना जाता था, भले ही इसमें महिला की मंजूरी रही हो।

    अपराध

    सुप्रीम कोर्ट ने क्यों निरस्त किया था व्यभिचार का कानून?

    2018 में जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ के मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ ने IPC की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया था।

    कोर्ट ने इसे भेदभाव करने वाला करार दिया था।

    कोर्ट ने कहा था कि ये औपनिवेशिक काल का कानून पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा है, जो एक महिला की स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन करता है और समानता के अधिकारों को प्रभावित करता है।

    सिफारिश

    संसदीय समिति ने व्यभिचार पर क्या सिफारिश की?

    संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि नए आपराधिक कानूनों में व्यभिचार की वापसी होनी चाहिए और व्यभिचार को 'लिंग-तटस्थ' अपराध मनाया जाना चाहिए।

    समिति ने कहा कि धारा 497 के तहत केवल पुरुषों को सजा होती थी और यह विवाहित महिलाओं को पति की संपत्ति बनाता था।

    समिति के अनुसार, इसी कारण कोर्ट ने भेदभावपूर्ण बताते हुए धारा 497 को निरस्त किया था और इसे लिंग-तटस्थ बनाकर इस भेदभाव को खत्म करके इसे वापस लागू कर सकते हैं।

    समस्या

    संसदीय समिति की सिफारिश में क्या समस्या है?

    दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को केवल भेदभावपूर्ण होने के लिए निरस्त नहीं किया था, बल्कि इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के खिलाफ भी बताया था, जो समानता और सम्मानपूर्ण जीवन का अधिकार देते हैं।

    कोर्ट ने कहा था कि व्यभिचार अपराध की परिभाषा में फिट नहीं बैठता और इसे अपराध मानना वैवाहिक क्षेत्र में बड़ी घुसपैठ और पति-पत्नी की गरिमा का उल्लंघन होगा।

    समिति की सिफारिश में इस पहलू का ध्यान नहीं रखा गया है।

    फैसला

    क्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द किया जा सकता है?

    सुप्रीम कोर्ट का फैसला कानून माना जाता है और संसद सीधा इसे पलटने वाला कानून पारित नहीं कर सकती।

    हालांकि, वो ऐसा कानून पारित कर सकती है, जो उस आधार को हटा दे, जिसके कारण कोर्ट ने फैसला सुनाया था।

    इसका मतलब सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को निरस्त करने के जो कारण बताए थे, उनके आधार को हटाते हुए ही व्यभिचार पर कानून बना सकती है।

    हालांकि, समिति की सिफारिश में सभी कारणों का ध्यान नहीं रखा गया।

    न्यूजबाइट्स प्लस

    न्यूजबाइट्स प्लस

    11 अगस्त, 2023 को गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक पेश किए गए थे।

    ये तीनों नए विधेयक क्रमशः भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे।

    केंद्र सरकार ने पुराने कानूनों में कुल 313 बदलाव करके नए कानून प्रस्तावित किए हैं, जिन्हें विचार के लिए संसदीय समिति के पास भेजा गया था।

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