#NewsBytesExplainer: नेपाल-चीन के बीच BRI को लेकर क्या हुआ समझौता, भारत पर क्या होगा असर?
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली 2 से लेकर 5 दिसंबर तक चीन की यात्रा पर थे। चौथी बार सत्ता संभालने के बाद ये उनका पहला विदेश दौरा था। इस दौरे में उनकी मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को लेकर हुए एक समझौते की हो रही है। आइए जानते हैं ये समझौता क्या है और इसके भारत के लिए क्या मायने हैं।
सबसे पहले जानिए क्या हुआ समझौता?
दरअसल, नेपाल और चीन के बीच BRI को लेकर 2017 में समझौता हुआ था। हालांकि, 6 साल बीतने के बावजूद इस पर कुछ खास काम नहीं हुआ। अब इसी समझौते की नई रूपरेखा पर हस्ताक्षर हुए हैं। नेपाल की विदेश मंत्री आरजू देउबा ने कहा, "BRI की जिस रूपरेखा पर हस्ताक्षर हुए हैं, उसमें कुछ भी नया नहीं है। 2017 में जो समझौता हुआ था, उसी की निरंतरता में नई रूपरेखा पर हस्ताक्षर किए गए हैं।"
नई रूपरेखा में क्या है?
काठमांडू पोस्ट ने एक वरिष्ठ नेपाली अधिकारी के हवाले से बताया कि नेपाल ने समझौते में 'अनुदान वित्तपोषण सहयोग पद्धति' शब्द का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया, जबकि चीन ने 'सहायक वित्तपोषण पद्धति' का सुझाव दिया था। इसका मतलब हुआ कि परियोजना के तहत पहले जो पैसा आना था, वो पूरी तरह से कर्ज के रूप में था, लेकिन अब वित्तीय मदद के तौर पर भी आएगा। नई रूपरेखा 3 साल तक के लिए मान्य रहेगी।
चीन या नेपाल के लिए ये कितनी बड़ी कामयाबी?
नेपाल में भारत के राजदूत रहे रंजीत राय ने BBC से कहा, "रूपरेखा में कर्ज के साथ वित्तीय मदद को भी शामिल किया गया है, लेकिन मुश्किलें खत्म नहीं हुई हैं। दोनों को सहमति बनानी पड़ेगी कि कोई परियोजना कर्ज से शुरू होगी या मदद से। नेपाल चाहता था कि ब्याज दर विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक जैसी हो, लेकिन चीन से कोई आश्वासन नहीं मिला है। ऐसे में इसे बड़ी कामयाबी के रूप में देखना तार्किक नहीं लगता।"
भारत के लिए क्या हैं मायने?
अमेरिकी थिंक टैंक द विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल कुगलमैन ने लिखा, "ओली के दौरे को नेपाल के चीनी पक्ष में शामिल होने के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। इसे नेपाल की रणनीतिक स्वायत्तता के रूप में देखा जाना चाहिए, जहां वह भारत और चीन के बीच संबंधों में संतुलन बनाकर रखना चाहता है। यही रुख मालदीव और श्रीलंका की नई सरकारों ने अपनाया है। नेपाल और भारत के बीच तनाव सीमित है।"
भारत के प्रति कैसा है ओली का रुख?
ओली को चीन समर्थक माना जाता है। नेपाल में 2015 में नए संविधान के खिलाफ प्रदर्शन के पीछे ओली ने भारत का हाथ बताया था। ओली के कार्यकाल के दौरान ही नेपाल सरकार ने नया नक्शा जारी किया था, जिसमें भारतीय स्थानों को भी अपना बता दिया था। परंपरागत रूप से नेपाली प्रधानमंत्री हमेशा से अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुनते हैं, लेकिन ओली पहली यात्रा में चीन गए।
क्या है BRI?
2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने BRI परियोजना शुरू की थी। इसके जरिए चीन पूरी दुनिया में अपने व्यापारिक मार्गों का जाल बिछाना चाहता है। श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और अफगानिस्तान समेत करीब 100 से ज्यादा देश इस परियोजना का हिस्सा हैं। भारत इसमें शामिल नहीं है और शुरू से ही योजना का विरोध करता रहा है। परियोजना की कई सड़कें भारत के दावे वाली विवादित जगहों से भी गुजरती हैं।