#NewsBytesExplainer: एक साथ चुनाव के विरोध में कई पार्टियां, संसद से विधेयक कैसे पारित करवाएगी सरकार?
'एक देश, एक चुनाव' को लेकर हलचल फिर तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई कैबिनेट बैठक में 'एक देश, एक चुनाव' पर बनी उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को मंजूरी मिल गई है। कहा जा रहा है कि अब इस संबंध में संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश किए जाएंगे। हालिया लोकसभा चुनावों के बाद संसद के समीकरण बदल गए हैं। आइए जानते हैं ऐसे में विधेयक पारित करवाना कितना आसान या मुश्किल होगा।
कितनी पार्टियां कर रही हैं विरोध?
इस मुद्दे पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में सरकार ने एक समिति बनाई थी। इस समिति ने राजनीतिक पार्टियों से अपनी राय मांगी थी। समिति को कुल 47 राजनीतिक पार्टियों की राय मिली थी, जिनमें से 32 ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया, जबकि 15 ने विरोध। तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने समिति को कोई राय नहीं दी थी, लेकिन उसने कहा है कि वो सैद्धांतिक रूप से इसका समर्थन करती है।
कौन-कौन कर रहा है समर्थन?
समिति के सामने समर्थन करने वाले सभी 32 पार्टियां या तो भाजपा की सहयोगी थी या फिर कई मुद्दों पर पार्टी के साथ खड़ी होती रही थीं। हालांकि, अब बीजू जनता दल (BJD) और भाजपा की नहीं बन रही है। इसके अलावा एक देश, एक चुनाव का विरोध करने वाली 15 पार्टियों में में से 5 राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल नहीं है। ये पार्टियां अलग-अलग राज्यों की सत्ता में हैं।
संसद में क्या है समर्थन करने वाली पार्टियों की स्थिति?
हालिया लोकसभा चुनाव के बाद संसद की स्थिति में बदलाव हुआ है। जिन पार्टियों ने इस विचार का समर्थन किया है, उनके पास लोकसभा में 271 सासंद हैं। इसमें से अकेले भाजपा के 240 सांसद है। अगर ऐसी पार्टियों को मिला लिया जाए, जिन्होंने न तो एक देश, एक चुनाव का विरोध किया न समर्थन किया तो ये संख्या 293 पर पहुंच जाती है। फिलहाल लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा 272 है।
विरोध करने वाली पार्टियां कितनी ताकतवर है?
समिति के सामने एक साथ चुनावों का विरोध करने वाली 15 पार्टियों के पास संसद में 205 सांसद है। इसमें से विपक्षी गठबंधन INDIA के पास 203 सांसद हैं। ऐसी पार्टियों जिन्होंने समिति को कोई राय नहीं दी है, अगर उन्हें भी मिला लिया जाए तो ये आंकड़ा 234 सांसदों तक पहुंच सकता है। हालांकि, ये संविधान संशोधन विधेयक होंगे, ऐसे में इन्हें विशेष बहुमत से लोकसभा से पारित करवाना जरूरी होगा। उसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
संसद में विशेष बहुमत से पारित होंगे विधेयक
एक देश, एक चुनाव से जुड़े विधेयक को संसद के दोनों सदनों से साधारण बहुमत से पारित किया जाना जरूरी है। फिलहाल लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा 272 और राज्यसभा में 123 है। इन विधेयकों के जरिए संविधान में संशोधन भी किया जाएगा, ऐसे में जरूरी है कि ये विधेयक सदन में मौजूद और वोट देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित हो। अगर लोकसभा में 543 सांसद उपस्थित है तो 362 को इसके पक्ष में मतदान करना होगा।
सरकार के लिए विधेयक पारित करवाना कितना चुनौतीपूर्ण?
अगर लोकसभा के सभी सदस्य मतदान करते हैं तो विधेयक पारित करने के लिए लोकसभा में 362 वोटों की जरूरत होगी। फिलहाल NDA के पास सिर्फ 293 सांसदों का ही समर्थन है। ऐसे में ये विधेयक तभी पारित हो सकते हैं, जब मतदान वाले दिन लोकसभा में 439 सांसद ही उपस्थित रहें और 100 से ज्यादा अनुपस्थित रहें। ऐसे में 293 सांसदों के साथ NDA के लिए विधेयक पारित करवाना मुमकिन हो सकता है।
क्या है 'एक देश एक चुनाव'?
'एक देश, एक चुनाव' से आशय विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाने से है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक साथ चुनाव 2 चरणों में करवाए जा सकते हैं। पहले चरण में लोकसभा और कुछ राज्यों की विधानसभा के लिए मतदान हो सकता है। दूसरे चरण में बाकी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ हो सकते हैं। विधि आयोग के मुताबिक, देश में पहली बार 2029 में एक साथ चुनाव हो सकते हैं।