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    जीवाश्म ईंधन से होने वाला प्रदूषण उच्चतम स्तर पर, जीरो उत्सर्जन के राह में बड़ी चुनौती

    जीवाश्म ईंधन से होने वाला प्रदूषण उच्चतम स्तर पर, जीरो उत्सर्जन के राह में बड़ी चुनौती
    लेखन प्रमोद कुमार
    Nov 11, 2022, 02:42 pm 1 मिनट में पढ़ें
    जीवाश्म ईंधन से होने वाला प्रदूषण उच्चतम स्तर पर, जीरो उत्सर्जन के राह में बड़ी चुनौती
    जीवाश्म ईंधन से होने वाला प्रदूषण उच्चतम स्तर पर

    जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार जीवाश्म ईंधन से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) नए स्तर पर पहुंच गई है। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस साल इसमें एक प्रतिशत बढ़ोतरी होगी। महामारी के बाद हवाई यात्राएं बढ़ने के कारण तेल से होने वाला उत्सर्जन दो प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। वहीं कोयले से होने वाला प्रदूषण भी नए रिकॉर्ड पर पहुंच सकता है, जबकि माना जा रहा था कि यह 2014 में चरम पर पहुंच गया था।

    कुल उत्सर्जन में से 90 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन से- रिपोर्ट

    दुनिया के 100 से ज्यादा वैज्ञानिकों की द ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट में बताया गया है कि वनों की कटाई समेत सभी स्त्रोतों से CO2 का वैश्विक उत्सर्जन इस साल 4,600 करोड़ टन तक पहुंच जाएगा, जो 2019 के रिकॉर्ड स्तर से मामूली नीचे रहेगा। इस उत्सर्जन में से 90 प्रतिशत जीवाश्म ईंधनों को जलाने से होगा। वैज्ञानिकों ने बताया कि अब उत्सर्जन 2015 के मुकाबले 5 प्रतिशत ज्यादा है, जब पेरिस जलवायु समझौता पर हस्ताक्षर हुए थे।

    कार्बन उत्सर्जन कम करने की राह होने वाली है मुश्किल

    नए आंकड़े दिखाते हैं कि पेरिस समझौते में तय किए गए लक्ष्य को हासिल करना बेहद मुश्किल रहने वाला है। पेरिस समझौते में धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य रखा गया था। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर आने वाले सालों में धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ता है तो यह पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

    क्यों बढ़ा जीवाश्म ईंधन का उपयोग?

    पर्यावरण पर शोध करने वाले नॉर्वे के एक संस्थान से जुड़े ग्लेन पीटर्स ने बताया कि तेल महामारी से उबरने के दौरान तेल की खपत ज्यादा हुई है, जबकि यूक्रेन युद्ध के चलते गैस और कोयले का इस्तेमाल बढ़ा है।

    भारत से होगा 6 प्रतिशत अधिक उत्सर्जन

    रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत से इस साल उत्सर्जन में 6 प्रतिशत और अमेरिका से 1.5 प्रतिशत उत्सर्जन बढ़ेगा। वहीं चीन से उत्सर्जन में 0.9 प्रतिशत की कमी आएगी। इसके पीछे चीन की जीरो-कोविड रणनीति को वजह माना जा रहा है, जिस कारण वहां की आर्थिक प्रगति रूक गई है। यूरोप से भी इस साल उत्सर्जन में कमी आने की उम्मीद है। बता दें कि अमेरिका, चीन और भारत दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक हैं।

    कम CO2 सोख रहे धरती, समुद्र और जंगल

    इस सालाना रिपोर्ट से यह भी जानकारी मिली है कि अब समुद्रो, जंगलों और मिट्टी की CO2 सोखने की क्षमता धीमी हो गई है। कई जानकारों ने इस रिपोर्ट को चिंताजनक करार देते हुए प्रभावी कदम उठाने की मांग की है।

    कार्बन उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य बहुत दूर

    पेरिस समझौते में तय किए गए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 45 प्रतिशत कम और इस सदी के मध्य तक जीरो करना होगा। इसमें पर्यावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को हटाना भी शामिल है। अगर जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना है तो अगले आठ सालों तक हर साल कार्बन उत्सर्जन को 7 प्रतिशत कम करना होगा, जबकि 2020 में लॉकडाउन के बाद भी इसमें 6 प्रतिशत की कमी आई थी।

    न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)

    इंसानी गतिविधियों के कारण धरती गर्म (ग्लोबल वॉर्मिंग) हो रही है, जिससे जलवायु परिवर्तन हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, औद्योगिक क्रांति के बाद से वैश्विक तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और अगर यह 1.5 डिग्री से अधिक जाता है तो जलवायु परिवर्तन को रोकना असंभव हो जाएगा और मानवता का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। हालिया समय में भयंकर गर्मी, ठंड, बाढ़, तूफान और सूखों जैसे जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी दुष्प्रभाव देखने को भी मिले हैं।

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