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    जलवायु परिवर्तन पर भारत क्या कर रहा है और विशेषज्ञ इसे कैसे देखते हैं?

    जलवायु परिवर्तन पर भारत क्या कर रहा है और विशेषज्ञ इसे कैसे देखते हैं?
    लेखन प्रमोद कुमार
    Oct 30, 2021, 02:20 pm 1 मिनट में पढ़ें
    जलवायु परिवर्तन पर भारत क्या कर रहा है और विशेषज्ञ इसे कैसे देखते हैं?
    जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर क्या काम कर रहा है भारत?

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन (COP26) में भाग लेंगे। चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है। ऐसे में मोदी का इस सम्मेलन में भाग लेना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं। माना जा रहा है कि सम्मेलन में भारत जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिए अपने लक्ष्यों में संशोधन कर सकता है।

    क्या भारत अपने लक्ष्यों को हासिल करने के रास्ते पर है?

    संयुक्त राष्ट्र एन्वायरनमेंट प्रोग्राम्स एमिशन गैप रिपोर्ट के अनुसार, भारत एकमात्र ऐसा बड़ा देश है, जो पेरिस समझौते के तहत तय किए गए लक्ष्यों को पाने के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। भारत ने 2005 के स्तर से 2030 तक GDP की एमिशन इंटेनसिटी को 35 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा था। पर्यावरण मंत्री ने पिछले नवंबर में बताया कि 2020 तक भारत ने एमिशन को 21 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य हासिल कर लिया था।

    नॉन-फॉसिल-फ्यूल क्षमता बढ़ाने के रास्ते पर आगे बढ़ रहा भारत

    साथ ही भारत ऊर्जा उत्पादन के लिए नॉन-फॉसिल-फ्यूल क्षमता को बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने की तरफ भी बढ़ रहा है। सरकार को उम्मीद है कि 2030 की समयसीमा से सात साल पहले 2023 में यह लक्ष्य हासिल हो जाएगा।

    विशेषज्ञों का इस पर क्या मत है?

    DW से बात करते हुए पर्यावरण के लिए काम करने वाले NGO आवाज फाउंडेशन की संस्थापक सुमैरा अब्दुलाली ने कहा कि कागजों पर सबकुछ ठीक लग रहा है, लेकिन जमीन पर हालात अलग हैं। वो कहती हैं कि जमीनी हकीकत और आंकड़ों में बहुत अंतर है। असली हालात कोई नहीं देखता और यहीं से समस्या की शुरुआत होती है। अपनी बात में वो कोयले से बनी बिजली से चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों का उदाहरण देती हैं।

    ऊर्जा उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता बड़ी परेशानी

    सुमैरा कहती हैं, "अध्ययनों में पता चला है कि दुनिया के अधिकतर इलाकों में इलेक्ट्रिक वाहन कार्बन उत्सर्जन को कम करते है, लेकिन उन हिस्सों में ऐसा नहीं होता जहां इन्हें पावर देने के लिए कोयले का इस्तेमाल होता है। इसलिए हम न सिर्फ कोयले का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक है बल्कि इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए जंगल भी काट रहे हैं।" बता दें कि भारत का 70 फीसदी ऊर्जा उत्पादन कोयले से होता है।

    क्या भारत के लक्ष्य उचित हैं?

    एक स्वतंत्र शोध समूह क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ने भारत के प्रयासों को अनुचित करार दिया है। वहीं सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के निदेशक नंदिकेश शिवालिंगम ने कहा कि भारत के लक्ष्य विज्ञान पर आधारित न होकर भू-राजनैतिक सच्चाई का प्रतिबिंब हैं। भारत कार्बन उत्सर्जन में उतनी ही कमी की प्रतिबद्धता जताएगा, जितना दूसरे देश कर रहे हैं और कोई भी देश इस ग्रह को बचाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा।

    भारत ने जीरो कार्बन उत्सर्जन का नहीं रखा लक्ष्य

    चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ की तरह भारत ने अभी तक जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य नहीं रखा है। जीरो कार्बन उत्सर्जन का मतलब है कि कोई देश उतनी ही ग्रीनहाउस गैस पर्यावरण में छोड़ेगा, जितनी पेड़ और टेक्नोलॉजी आदि सोख सकेंगे। COP26 से पहले भारत ने यह लक्ष्य रखने से इनकार कर दिया है। हाल ही में पर्यावरण सचिव रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने कहा था कि जीरो कार्बन उत्सर्जन का ऐलान करना जलवायु संकट का समाधान नहीं है।

    मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है जलवायु परिवर्तन

    बता दें कि वैज्ञानिक पिछले काफी सालों से चेतावनी दे रहे हैं कि मानव गतिविधियां ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण बन रही हैं और इससे जलवायु परिवर्तन उस स्तर पर पहुंच सकता है जिसके बाद इसे रोकना असंभव हो जाएगा और मानवता खतरे में पड़ जाएगी। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पहले ही खतरे के निशान से ऊपर जा चुका है। इस खतरे से निपटने के लिए इस साल ग्लासगो में देशों की बड़ी बैठक होने वाली है।

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