जलवायु परिवर्तन: फॉसिल फ्यूल और क्लीन एनर्जी पर कितनी सब्सिडी दे रहे बड़े देश?
क्या है खबर?
जलवायु परिवर्तन इस समय दुनिया के लिए चिंता का बड़ा विषय बना हुआ है और फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म ईंधन) का जलना ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बड़ा कारण है।
फॉसिल फ्यूल और इससे चलने वाले संयंत्रों को दी जाने वाली मदद रोकने के लिए वादों के बीच दुनियाभर में सरकारें हर साल इस पर 420 बिलियन डॉलर की सब्सिडी देती है।
दूसरी तरफ सुरक्षित भविष्य के लिए जरूरी बताई जा रही ग्रीन एनर्जी पर सब्सिडी कम है।
जानकारी
फॉसिल फ्यूल सब्सिडी क्या है?
आसान भाषा में समझे तो फॉसिल फ्यूल सब्सिडी ऐसे तरीके हैं, जिनके जरिये सरकार कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतें कम रखती हैं।
इनमें एक तरीका प्रोडक्शन सब्सिडी का है। यानी फॉसिल फ्यूल के उत्पादन के समय टैक्स में कमी या कंपनियों को सीधा भुगतान कर इसकी कीमत कम रखी जाती है।
दूसरा तरीका कंजप्शन सब्सिडी है, जिसमें आम लोगों के लिए बिजली और तेल के किफायती दाम तय कर दिए जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन
फॉसिल फ्यूल सब्सिडी को लेकर पारदर्शिता की कमी
BBC के मुताबिक, फॉसिल फ्यूल के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को लेकर पारदर्शिता की कमी है, लेकिन माना जाता है कि इसका तीन चौथाई हिस्सा लोगों और एक चौथाई हिस्सा उत्पादकों को दिया जाता है।
निम्न आय वाले देशों में भी कंजप्शन सब्सिडी का सहारा लिया जाता है ताकि लोगों को सस्ती रसोई गैस और कम कीमत में तेल आदि देकर गरीबी से बाहर आने में मदद की जा सके।
जानकारी
सब्सिडी देने में भारत शीर्ष देशों में शामिल
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) के अनुसार, 2019 में ईरान ने कंजप्शन सब्सिडी पर सर्वाधिक (30 बिलियन डॉलर) खर्च किए थे। इसके बाद चीन (26 बिलियन डॉलर) और भारत (24 बिलियन डॉलर) का नंबर था। सऊदी अरब और रूस क्रमश: चौथे और पांचवें पायदान पर थे।
कदम
सब्सिडी को खत्म करने के क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में एक मसौदे समझौते में सभी देशों से फॉसिल फ्यूल पर दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करने की बात कही गई है, लेकिन अभी तक इसे लेकर कुछ ठोस सहमति नहीं बन पाई है।
पिछले साल तक दुनिया की 81 बड़ी अर्थव्यवस्थाएं फॉसिल फ्यूल के लिए मदद कम कर रही थी, लेकिन फिर भी यह 350 बिलियन डॉलर से अधिक बनी हुई थी।
कई देश इसमें और कटौती का ऐलान कर चुके हैं।
सब्सिडी
क्लीन एनर्जी के लिए कितनी मदद?
एनर्जी पॉलिसी ट्रैकर के मुताबिक, बड़े देशों ने नई या पुरानी नीतियों के जरिये फॉसिल फ्यूल को क्लीन एनर्जी (स्वच्छ ऊर्जा) को ज्यादा मदद दी है।
2020 की शुरुआत के बाद से अमेरिका ने फॉसिल फ्यूल के लिए करीब 70 बिलियन डॉलर तो क्लीन एनर्जी के लिए 25 बिलियन मदद दी है।
इसी तरह भारत ने फॉसिल फ्यूल के लिए 45 बिलियन डॉलर और क्लीन एनर्जी के लिए 35 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं।
जानकारी
क्लीन एनर्जी में अमेरिका का निवेश अपर्याप्त
एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका फॉसिल फ्यूल उद्योग को हर साल करीब 20 बिलियन डॉलर सीधी सब्सिडी के तौर पर देता है, जिसमें से 80 फीसदी गैस और तेल पर खर्च होती है। इसके अलावा ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिए कंपनियों को टैक्स में भी छूट दी जाती है।
अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम ने क्लीन एनर्जी में निवेश किया है, लेकिन विशेषज्ञ इसे पर्याप्त नहीं मान रहे। दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने इससे निपटने को अपनी प्राथमिकता करार दिया है।
क्लीन एनर्जी
भारत और चीन भी बढ़ा रहे निवेश
भारत और चीन भी क्लीन एनर्जी में अपना निवेश बढ़ा रहे हैं, लेकिन दोनों अभी भी शीर्ष कार्बन उत्सर्जकों और फॉसिल फ्यूल के सबसे बड़ा आर्थिक मददगारों में बने हुए हैं।
वहीं सऊदी अरब और रूस तेल और प्राकृतिक का विशाल भंडार होने के कारण लंबे समय से फॉसिल फ्यूल पर सब्सिडी दे रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सऊदी अरब इस फंडिंग को रोकने के लिए G20 देशों में से सबसे कम कदम उठा रहा है।