क्या कर्नाटक के बाद अब मध्य प्रदेश पर है भाजपा की नजर? मिल रहे संकेत
कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) गठबंधन की सरकार गिरने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार है। इसका संकेत विधानसभा की कार्यवाही के दौरान नेता विपक्ष गोपाल भार्गव के बयान से मिला, जिन्होंने कहा कि अगर ऊपर से नंबर 1 और नंबर 2 ने आदेश दिया तो कांग्रेस सरकार 24 घंटे भी नहीं चलेगी। इस पर कमल नाथ ने जवाब दिया कि उनके नंबर 1 और 2 समझदार हैं।
कमल नाथ ने दी अविश्वास प्रस्ताव लाने की चुनौती
बुधवार को भार्गव ने विधानसभा में कहा, "हमारे ऊपर वाले नंबर 1 और नंबर 2 का आदेश हुआ तो 24 घंटे भी आपकी सरकार नहीं चलेगी।" राज्य के मुख्यमंत्री कमल नाथ ने भी इसका बखूबी जवाब दिया। उन्होंने कहा, "आपके ऊपर वाले नंबर 1 और 2 समझदार हैं, इसलिए आदेश नहीं दे रहे हैं। आप चाहें तो अविश्वास प्रस्ताव ले आएं।" इससे पहले मंगलवार को भी भार्गव ने मध्य प्रदेश सरकार पर निशाना साधा था।
"वैचारिक सिद्धांत नहीं, लालच पर आधारित है गठबंधन"
मंगलवार को भार्गव ने कहा था, "हम कमल नाथ सरकार को गिराने के लिए इंतजार कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में स्थिति कर्नाटक से भी ज्यादा खराब है। ये सरकार 7 महीने तक चल गई, यही चौंकाने वाली बात हैं।" उन्होंने आगे कहा, "ये गठबंधन किसी वैचारिक सिद्धांत नहीं, बल्कि लालच पर आधारित है। जिस दिन उनकी मांगे पूरी नहीं होंगी, सरकार गिर जाएगी।" इस बीच उन्होंने कर्नाटक में सरकार गिराने में भाजपा का हाथ होने से इनकार किया।
क्या है मध्य प्रदेश विधानसभा का हाल?
पिछले साल दिसंबर में आए विधानसभा चुनाव के परिणाम में राज्य की 230 सीटों में से कांग्रेस को सबसे ज्यादा 114 सीटें प्राप्त हुई थीं, जबकि भाजपा को उससे थोड़ी कम 108 सीटें मिली थीं। कांग्रेस भले ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो, लेकिन वह बहुमत के आंकड़े 116 सीट से पीछे रह गई थी। इसके बाद उसने 4 निर्दलीय, 2 बहुजन समाज पार्टी और एक समाजवादी पार्टी विधायक के समर्थन से सरकार बनाई थी।
मध्य प्रदेश में लागू किया जा सकता है कर्नाटक मॉडल
असल में कर्नाटक में भाजपा ने दल-बदल विरोधी कानून का तोड़ निकाल कर विरोधी सरकारों का गिराने का परीक्षण किया था। इसके लिए उसने विरोधी पार्टियों के विधायकों से इस्तीफा दिलवा कर मौजूदा सरकार को गिराने और फिर विधानसभा में संख्याबल कम होने पर खुद सरकार बनाने का रास्ता अपनाया। मध्य प्रदेश में भी भाजपा के विधायकों की संख्या बहुमत से बहुत ज्यादा कम नहीं है, इसलिए वहां कर्नाटक मॉडल अपनाया जा सकता है।
राजस्थान पर नजरें होने की भी खबरें
खबरें तो ये भी है कि भाजपा की नजर राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर भी है। लेकिन राजस्थान में उसके लिए अपने 'ऑपरेशन कमल' को अंजाम दे पाना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि दोनों पार्टियों की सीटों में बड़ा अंतर है। 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 100 सीटें हैं और उसे कुल 112 विधायकों का समर्थन हासिल हैं। वहीं भाजपा के पास 72 सीटें हैं और उसके लिए कर्नाटक के फॉर्मूले को यहां लागू करना बेहद मुश्किल है।