भारत में निर्मित एंटी-ड्रोन गन 'वज्र-शॉट' सशस्त्र बलों के लिए क्यों है महत्वपूर्ण?
आधुनिक दौर में ड्रोन दुनिया भर में सैन्य अभियानों का अहम हिस्सा बन गए हैं। आतंकी गतिविधियों और तस्करी में भी इनका इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में ड्रोन-रोधी तकनीक बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत में 'वज्र-शॉट' नाम से एक नई एंटी-ड्रोन गन तैयार की गई है। इसका निर्माण चेन्नई स्थित बिग बैंग बूम सॉल्यूशंस ने किया है। आइए जानते हैं कि यह गन भारती सशस्त्र बालों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है।
दिल्ली में आयोजित NIIO सेमिनार में प्रदर्शित की गई 'वज्र-शॉट'
दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित भारतीय नौसेना के नवाचार और स्वदेशीकरण संगठन (NIIO) की आयोजित सेमिनार 'स्वावलंबन 2024' में इस 'वज्र-शॉट' को प्रदर्शित किया गया है। उसके बाद से ही यह गन चर्चा का विषय बन गई है।
'वज्र-शॉट' क्या है?
'वज्र-शॉट' एक हाथ में पकड़ी जाने वाली एंटी-ड्रोन गन है, जो ड्रोन सिग्नल को पहचान कर उसे जाम कर सकती है, जिससे ड्रोन और उनके संचालकों के बीच संचार बाधित हो सकता है। इसकी इसकी रेंज 4 किलोमीटर तक है। इसमें दिए गए सॉफ्टवेयर की मदद से इसे आवश्यकतानुसार संचालित किया जा सकता है। यही कारण है कि यह विभिन्न प्रकार के ड्रोन्स को बेअसर करने में प्रभावी है। वजन में हल्की होने के कारण इसका इस्तेमाल आसान है।
9 घंटे तक काम करती है 'वज्र-शॉट' की बैटरी
इस एंटी-ड्रोन गन का वजन साढ़े 3 किलो हैं। इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। इसमें साधारण LED डिस्प्ले है और इसकी बैटरी लगातार 9 घंटे तक काम कर सकती है। कंपनी के एक प्रतिनिधि ने बताया कि इस गन के लिए अब तक लगभग 2.5 करोड़ डॉलर (210 करोड़ रुपये) के ऑर्डर मिल चुके हैं। इसमें हाथ से पकड़े जाने वाले ड्रोन डिटेक्टर का समावेश किया जा सकता है, जो इसे वज्र सुपर शॉट में बदलता है।
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अन्य ड्रोन रोधी प्रणालियों से कैसे है अलग?
भारत के अलावा, अमेरिका के पास ड्रोन डिफेंडर है, जिसे बैटल ने निर्मित किया गया है। यह प्रणाली ड्रोन और पायलट के बीच रेडियो संदेशों के बाधित होने पर काम करती है। यह ड्रोन को उसके सीमा से बाहर जाने का भी संदेश देती है। इससे ड्रोन सुरक्षित जगह पर आ जाता है। इसके जरिए ड्रोन तब तक उड़ता रहता है, जब तक यह पायलट नियंत्रण लिंक से दोबारा नहीं जुड़ जाता या फिर उसे वापस नहीं मिल जाता है।
'वज्र-शॉट' से भारी है ड्रोन डिफेंडर
ड्रोन डिफेंडर का वजन करीब 4 किलोग्राम है, जो वज्र-शॉट से थोड़ा ज्यादा है। हालांकि, बैटल का कहना है कि ड्रोन डिफेंडर को इस्तेमाल करने के लिए किसी खास ट्रेनिंग की जरूरत नहीं है, लेकिन वज्र-शॉट की तुलना में इसका इस्तेमाल ज्यादा जटिल है।
चीन और रूस के पास भी है ऐसी तकनीक
चीन के पास स्काईफेंड ब्लैडर है, जो एक पोर्टेबल जैमर है। यह मानवरहित हवाई वाहनों (UAV) को निशाना बनाता है। इसका वजन वज्र-शॉट से थोड़ा ज़्यादा है और इसकी रेंज 1,500 मीटर ही है। इसी तरह रूस के पास वज्र-शॉट जैसी REX-1 गन है। यह एक हाथ से पकड़ा जाने वाला उपकरण है, जो रेडियो और विद्युत चुम्बकीय तरंगों की मदद से ड्रोन को बेअसर करता है। हालांकि, इसका वजन वज्र-शॉट से ज्यादा है।
वज्र-शॉट क्यों महत्वपूर्ण है?
ड्रोन ने वैश्विक स्तर पर युद्ध की गतिशीलता को बदल दिया है। गाजा और यूक्रेन में भी ड्रोन का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में वज्र-शॉट जैसी ड्रोन-रोधी तकनीक की आवश्यकता बढ़ गई है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, ड्रोन के व्यापक उपयोग ने यूक्रेन जैसे छोटे देशों को भी युद्ध करने में सक्षम बना दिया है। 2018 और 2023 के बीच ड्रोन का उपयोग करने वाले देशों की संख्या 150 प्रतिशत बढ़कर 16 से 40 हो गई है।
ड्रोन हमलों की संख्या में हुआ इजाफा
विजन ऑफ ह्यूमैनिटी की रिपोर्ट से पता चलता है कि ड्रोन हमलों और मौतों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। 2023 में ड्रोन हमलों से 3,000 से अधिक मौतें हुई थी। यह 2018 में हुई मौतों की तुलना में 168 प्रतिशत अधिक है। इसी तरह ड्रोन हमलों की संख्या में कहीं अधिक वृद्धि देखी गई है। साल 2023 में दुनियाभर में कुल 4,957 ड्रोन हमले दर्ज किए गए हैं, जबकि साल 2018 में यह संख्या केवल 421 ही थी।
भारतीय सशस्त्र बलों ने भी दिया ड्रोन-रोधी तकनीक की आवश्यकता पर जोर
भारत में सैन्य विशेषज्ञ भी युद्धों में बढ़ रहे ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर काफी चिंतित हैं। फरवरी 2021 में तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने कहा था कि ड्रोन युद्ध का भविष्य हैं। 20वीं सदी के युद्ध के मैदान काम आने वाले युद्धक टैंक, लड़ाकू विमान और सतही लड़ाकू विमान नए क्षेत्रों में उभरती युद्ध चुनौतियों के सामने अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण हो गए हैं। ऐसे में ड्रोन विरोधी तकनीक काफी महत्वपूर्ण हो गई है।