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    #NewsBytesExplainer: मुस्लिम आरक्षण पर क्या है कानून की स्थिति?
    कर्नाटक में राज्य सरकार ने मुस्लिमों को मिलने वाला आरक्षण खत्म कर दिया है

    #NewsBytesExplainer: मुस्लिम आरक्षण पर क्या है कानून की स्थिति?

    लेखन आबिद खान
    Apr 24, 2023
    08:15 pm

    क्या है खबर?

    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि अगर तेलंगाना में भाजपा की सरकार बनी तो राज्य में मुस्लिमों को मिलने वाला आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा। इससे पहले कर्नाटक की भाजपा सरकार भी अपनी तरफ से मुस्लिम आरक्षण खत्म कर चुकी है।

    इसके कारण मुस्लिम आरक्षण को लेकर बहस शुरू हो गई है।

    आइए समझते हैं कि मुस्लिम आरक्षण कानून की नजर में सही है या नहीं और इस पर कानूनी विशेषज्ञ क्या कहते हैं।

    कर्नाटक

    धर्म के आधार पर आरक्षण पर संविधान क्या कहता है?

    संवैधानिक मामलों के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, "संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार सभी लोग बराबर हैं। अनुच्छेद 15 के अनुसार सरकार धर्म, जाति, लिंग और जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती। अनुच्छेद 16 के अनुसार सार्वजनिक रोजगार में सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।"

    इस हिसाब से देखा जाए तो संविधान में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।

    जानकारी

    संविधान में जातिगत आरक्षण को लेकर क्या प्रावधान है?

    गुप्ता ने कहा, "अनुच्छेद 15 और 16 में अनुसूचित जाति, जनजाति, महिलाओं और OBC के लिए शिक्षा और रोजगार में आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। मंडल आयोग के आधार पर OBC को जाति के आधार आरक्षण पर दिया जा रहा है।"

    विवाद

    मुस्लिमों को आरक्षण पर क्या विवाद है?

    गुप्ता ने कहा, "मुस्लिम समुदाय में जाति प्रथा नहीं है, इसलिए उन्हें OBC आरक्षण देने पर विवाद है। सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी फैसले के बाद आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी निर्धारित हुई थी, जिसकी वजह से भी मुस्लिम समुदाय को आरक्षण देने पर कानूनी विवाद हो रहे हैं। आर्थिक कमजोर वर्ग (EWS) के दायरे में मुस्लिम समुदाय के लोग भी आते हैं। कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण को रद्द करने के पीछे यह भी तर्क दिया जा रहा है।"

    हाई कोर्ट

    मुस्लिम आरक्षण पर क्या रहा है कोर्ट का रुख?

    साल 2005 में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य में मुस्लिमों को आरक्षण देने संबंधी कानून को रद्द कर दिया था। 5 जजों की पीठ ने आरक्षण रद्द करने के समर्थन में फैसला सुनाया था।

    बाद में ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन यथास्थिति बहाल करने के आदेश से कुछ लोग लाभ के दायरे में आ गए थे।

    धर्म

    धर्म के आधार पर रद्द नहीं हुआ था मुस्लिम आरक्षण

    आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने मुस्लिमों का आरक्षण रद्द करने के पीछे धर्म को आधार नहीं बताया था।

    कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण के लिए सरकार ने सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया था और विशेषज्ञ समिति की जिस रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण दिया गया था, वो केवल 6 जिलों पर ही आधारित थी। इसका मतलब कोर्ट ने प्रक्रिया में कमी के कारण आरक्षण को रद्द किया था।

    ये मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

    जानकारी

    अभी किन-किन राज्य में मुस्लिमों को मिलता है आरक्षण?

    वर्तमान में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में मुस्लिमों को आरक्षण का लाभ मिलता है। तमिलनाडु में मुस्लिमों को 3.5 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 4 प्रतिशत और केरल में 12 प्रतिशत आरक्षण मिलता है।

    कर्नाटक

    हाल ही में कर्नाटक में खत्म किया गया था मुस्लिम आरक्षण

    24 मार्च को कर्नाटक की भाजपा सरकार ने ऐलान किया था कि राज्य में OBC मुसलमानों को मिलने वाला 4 प्रतिशत आरक्षण खत्म कर दिया गया है। इसे वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय में 2-2 प्रतिशत बांट दिया गया।

    इसके बाद लिंगायत समुदाय का आरक्षण 7 प्रतिशत और वोक्कालिगा समाज का आरक्षण 6 प्रतिशत हो गया था। मुस्लिमों को EWS श्रेणी के 10 प्रतिशत आरक्षण के तहत फायदा दिया जाएगा।

    फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा रखी है।

    कोर्ट

    इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?

    कर्नाटक सरकार को इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से फटकार लगी थी। कोर्ट ने कहा था कि सरकार का फैसला प्रथमदृष्टया त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है।

    न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा था कि कोर्ट में पेश किए गए रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार का फैसला 'पूरी तरह से गलत धारणा' पर आधारित है।

    पीठ ने सरकार से सवाल पूछा था कि किस जल्दबाजी में ये आदेश जारी किया गया।

    सीमा

    न्यूजबाइट्स प्लस

    1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में फैसला सुनाते हुए जातिगत आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत कर दी थी। इस फैसले के बाद ये कानून बन गया कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती।

    हालांकि, जुलाई, 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने ठोस वैज्ञानिक डाटा के आधार पर आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक करने की अनुमति दे दी थी। फिलहाल कई राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण की व्यवस्था है।

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