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    इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- निजी रिश्तों को लेकर आपत्ति नहीं जता सकता राज्य

    इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- निजी रिश्तों को लेकर आपत्ति नहीं जता सकता राज्य

    लेखन प्रमोद कुमार
    Nov 24, 2020
    12:01 pm

    क्या है खबर?

    देश में 'लव जिहाद' को लेकर कानून बनाने की चर्चाओं के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अहम फैसला दिया है।

    कोर्ट ने कहा कि निजी रिश्तों में दखल दो व्यक्तियों की पसंद की आजादी के अधिकार पर अतिक्रमण होगा।

    इसी टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम व्यक्ति के खिलाफ उसकी पत्नी, जिसने शादी करने के लिए पिछले साल इस्लाम अपनाया था, के घरवालों की तरफ से दायर किया गया मामला रद्द कर दिया है।

    पृष्ठभूमि

    क्या है मामला?

    कोर्ट ने यह फैसला कुशीनगर के विष्णुपुरा थाना क्षेत्र निवासी सलामत अंसारी और तीन अन्य की तरफ से दायर याचिका पर सुनाया है।

    दरअसल, सलामत और प्रियंका खरवार ने परिवार की मर्जी के खिलाफ 19 अगस्त, 2019 को शादी की थी। शादी से पहले प्रियंका ने इस्लाम अपना लिया था।

    प्रियंका के पिता ने इस मामले में सलामत के खिलाफ अपहरण का आरोप लगाते हुए FIR कराई थी। मामले में POCSO एक्ट की धाराएं भी लगाई गई थीं।

    टिप्पणी

    "हम प्रियंका और सलामत को हिंदू-मुस्लिम के रूप में नहीं देखते"

    याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की डिविजन बेंच ने कहा, "हम प्रियंका खरवार और सलामत अंसानी को हिंदू-मुसलमान नहीं बल्कि दो व्यस्क व्यक्तियों के रूप में देखते हैं, जो अपनी मर्जी और पसंद से एक-दूसरे के साथ खुशी-खुशी रह रहे हैं। अदालत और खासकर संवैधानिक अदालतें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति को दी गई जीने की आजादी की सुरक्षा का काम करती हैं।"

    टिप्पणी

    बालिग लोगों के संबंध को लेकर राज्य नहीं जा सकता आपत्ति- हाई कोर्ट

    हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि दो युवाओं को अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। कानून दो बालिग व्यक्तियों को साथ रहने की इजाजत देता है। चाहे वो समान या विपरित लिंग के भी क्यों न हो।

    कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया है कि कोई व्यक्ति या परिवार उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल नहीं दे सकता। यहां तक की राज्य भी दो बालिग लोगों के संबंध को लेकर आपत्ति नहीं जता सकता।

    जानकारी

    'लव जिहाद' की चर्चाओं के बीच फैसले की अहमियत बढ़ी

    हाई कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा समेत कई भाजपा शासित राज्य 'लव जिहाद' के खिलाफ कानून लाने की बात कर रहे हैं।

    जानकारी के लिए बता दें कि 'लव जिहाद' शब्द का इस्तेमाल दक्षिणपंथी संगठन अंतर-धार्मिक शादी के लिए करते हैं।

    इसमें उनका आरोप होता है कि मुस्लिम पुरुष से शादी कराने के लिए महिला को बहला-फुसलाकर या जबरन उसका धर्म-परिवर्तन किया जाता है।

    जानकारी

    'लव जिहाद' को नहीं मानती केंद्र सरकार

    हालांकि, केंद्र सरकार ऐसी किसी शब्दावली को नहीं मानती। सरकार ने संसद को बताया था कि मौजूदा कानूनों में 'लव जिहाद' को परिभाषित नहीं किया गया है। और किसी केंद्रीय एजेंसी के सामने ऐसा कोई मामला नहीं आया है।

    दूसरा मामला

    'लव जिहाद' की जांच के लिए बनाई SIT को नहीं मिली कोई साजिश

    दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में 'लव जिहाद' के मामलों की जांच के लिए गठित की गई विशेष जांच टीम (SIT) ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

    SIT ने कहा कि उसने जिन मामलों की जांच की है, उनमें कोई साजिश नहीं थी और ऐसे कोई सबूत नहीं हैं कि मामलों में शामिल मुस्लिम युवाओं को विदेशों से पैसा मिला है।

    SIT ने उन आरोपों का भी खंडन किया है कि कोई संगठन इन युवाओं की मदद कर रहा था।

    जानकारी

    कानपुर रेंज के IG ने गठित की थी SIT

    विश्व हिंदू परिषद और दूसरे हिंदू संगठनों के नेताओं की शिकायत पर कानपुर रेंज के IG मोहित अग्रवाल ने SIT का गठन किया था।

    इन नेताओं ने आरोप लगाया था कि साजिश के तहत मुस्लिम युवा हिंदू लड़कियों का धर्म-परिवर्तन करने के लिए उन्हें बहला-फुसला रहे हैं।

    इन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि इन युवाओं को इस काम के लिए विदेशों से पैसा मिलता है और ये असली पहचान छिपाकर लड़कियों से मिलते हैं।

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