#NewsBytesExplainer: चीन ने कब-कब बदले अरुणाचल की जगहों के नाम और वो ऐसा क्यों करता है?
क्या है खबर?
चीन ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश की 11 जगहों के नामों को बदला है, जिसे लेकर भारत ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
मंत्रालय ने चीनी सरकार को दो टूक शब्दों में चेताया है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और जगहों के नाम बदलने से यह वास्तविकता नहीं बदलेगी।
आइये जानते हैं कि चीन ने ऐसा पहले कब-कब किया है और इसके पीछे उसकी मंशा क्या रहती है।
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दिसंबर, 2021 में चीन ने बदले थे 15 जगहों के नाम
चीन ने दिसंबर, 2021 में अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों के नाम बदलते हुए इन्हें चीनी, तिब्बती और रोमन वर्णमाला में मानकीकृत किया था। चीन सरकार की प्रांतीय परिषद ने तिब्बत के दक्षिणी हिस्से को जंगनान का नाम दिया था।
इन 15 स्थानों में 8 आवासीय क्षेत्र, 4 पहाड़, 2 नदियां और एक पहाड़ी दर्रा शामिल था। चीन का दावा था कि इन नामों की घोषणा राष्ट्रीय सर्वेक्षण के बाद की गई और यह नाम सैकड़ों साल से प्रचलित हैं।
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चीन ने 2017 में भी बदले थे नाम
अप्रैल, 2017 में भारत ने बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश यात्रा की इजाजत दी थी। इस 9 दिवसीय हाई प्रोफाइल दौरे का चीनी सरकार ने विरोध किया था और उसने अरुणाचल प्रदेश की 6 जगहों के नाम बदल कर चीनी, तिब्बती और रोमन वर्णों में मानकीकृत कर दिए थे।
इन जगहों का नाम वोग्यैनलिंग, मिला री, क्वाइदेनगार्बो री, मेनक्यूका, बूमो ला और नामाकापुब री रखा गया था, जिसकी चीनी सरकार ने पुष्टि की थी।
क्यों?
चीन क्यों बदलता है नाम और इससे क्या फर्क पड़ेगा?
चीन और भारत के बीच मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा माना जाता है, लेकिन चीन इसे खारिज करता है।
चीन समय-समय पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर घुसपैठ और अरुणाचल प्रदेश की जगहों के नाम बदलकर अपने दावों को मजबूत करने को कोशिशों में लगा रहता है।
विशेषज्ञ अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के नए नाम जारी करने को चीन का प्रतीकात्मक कदम मानते हैं। उनका कहना है कि इससे वास्तविक जमीन पर कुछ असर नहीं पड़ेगा।
विवाद
चीन के साथ अरुणाचल प्रदेश को लेकर क्या है विवाद?
चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा मानता है और अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करते हुए इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है।
दूसरी तरफ भारत का कहना है कि अरुणाचल उसका अभिन्न अंग है और इस पर भारत की संप्रभुता को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली हुई है।
चीन अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना अधिकार बताता है तो भारत कहता है कि चीन ने अक्साई चिन की करीब 38,000 वर्ग किलोमीटर पर अवैध कब्जा किया हुआ है।
कारण
क्या हैं अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन के बीच विवाद का कारण?
सीमा निर्धारित करने के लिए भारत और तिब्बत के बीच 1914 में बैठक हुई थी, जिसमें तिब्बत ने अरुणाचल प्रदेश के विवादित इलाकों को भारत का हिस्सा माना। 1935 में इन इलाकों को आधिकारिक तौर पर भारत में शामिल कर लिया गया।
हालांकि, चीन ने इसे स्वीकार नहीं किया और 1950 में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद से ही वह अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत बताकर इस पर दावा करता आ रहा है। यहां मुख्य विवाद तवांग पर है।
तवांग
तवांग पर क्या विवाद है?
अरुणाचल के तवांग में सदियों पुराना बौद्ध मंदिर है और चीन इसे तिब्बत के बौद्धों के लिए बेहद अहम मानता है। 1914 में हुई बैठक में ब्रिटिश शासकों और तिब्बत ने तवांग को भारत का हिस्सा माना था, लेकिन चीन इस फैसले का विरोध करते हुए बैठक से बाहर चला गया था।
इसके बाद 1962 के युद्ध में चीन ने तवांग पर कब्जा कर लिया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद उसे इसे भारत को लौटना पड़ा था।
झड़प
पिछले साल तंवाग में हुई थी दोनों देशों के सैनिकों में झड़प
पिछले साल 9 दिसंबर को अरुणाचल के तवांग सेक्टर में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। लगभग 200 चीनी सैनिकों ने 17,000 फुट ऊंची एक चोटी से भारतीय पोस्ट को हटाने की कोशिश की थी, जिसके बाद दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आ गए थे।
चीनी सैनिक कंटीले क्लब और लाठियां लेकर आए थे, लेकिन भारतीय सैनिकों ने उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया। इस झड़प में दोनों तरफ के सैनिक घायल हुए थे।
प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
भारत और चीन के बीच संबंध अप्रैल, 2020 में पूर्वी लद्दाख के भारतीय इलाकों में चीनी घुसपैठ के बाद से बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं।
जून, 2020 में हुई गलवान घाटी हिंसा के बाद संबंध और खराब हो गए। इस हिंसा में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे और चीन को भी भारी नुकसान हुआ था।
विवाद को सुलझाने के लिए कई दौर की बातचीत हुई है और कुछ इलाकों से सेनाएं पीछे हटी हैं, लेकिन तनाव बना हुआ है।