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सामान्य वर्ग को आरक्षण पर फिलहाल रोक नहीं, सुप्रीम कोर्ट करेगा संविधान संशोधन का परीक्षण

सामान्य वर्ग को आरक्षण पर फिलहाल रोक नहीं, सुप्रीम कोर्ट करेगा संविधान संशोधन का परीक्षण

Jan 25, 2019
11:46 am

क्या है खबर?

सुप्रीम कोर्ट में आज सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के कानून पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस पर रोक लगाने से मना कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए किए गए 124वें संविधान संशोधन का परीक्षण करेगा। साथ ही कोर्ट ने इस संबंध में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

ट्विटर पोस्ट

मुख्य न्यायाधीश ने सुना मामला

जानकारी

सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर

'यूथ फॉर इक्वालिटी' NGO समेत कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार के इस कदम को चुनौती दी थी। NGO ने तर्क दिया था कि यह संशोधन आरक्षण को लेकर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के विपरित है।

मद्रास हाई कोर्ट

मद्रास हाई कोर्ट ने भी मांगा है सरकार से जवाब

मद्रास हाई कोर्ट ने भी सामान्य वर्ग को आरक्षण मामले को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। इसके लिए कोर्ट ने केंद्र सरकार को 18 फरवरी तक का समय दिया है। बता दें, द्रविड मुनेत्र कझगम (DMK) नेता आरएस भारती ने कोर्ट में रिट याचिका दायर कर इस आरक्षण को चुनौती दी थी। बता दें तमिलनाडु की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने आरक्षण के नए नियम का विरोध किया है।

कानून

12 जनवरी को राष्ट्रपति ने दी थी मंजूरी

केंद्र सरकार ने इसी महीने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण संबंधी कानून लागू करने की अधिसूचना जारी की थी। इसका मतलब है कि आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को आरक्षण देने वाला यह नियम अब प्रभाव में आ चुका है। आर्थिक पिछड़ों को आरक्षण पर सरकार ने 7 जनवरी को मंजूरी दी थी। इसके बाद लोकसभा और राज्यसभा में संविधान संशोधन बिल पास होने के बाद 12 जनवरी को राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर किए थे।

आरक्षण का लाभ

बहुत बड़ा है दायरा

10 प्रतिशत आरक्षण का फायदा वही उम्मीदवार उठा सकते हैं जो इसके दायरे में आते हो। नियम के अनुसार, वो उम्मीदवार इसका फायदा उठा सकते हैं जिनकी सालाना कमाई Rs. 8 लाख तक हो, जिनके पास 5 एकड़ तक कृषि भूमि हो, 1000 स्क्वायर फीट से बड़ा घर न हो और अधिसूचित जमीन 100 गज से कम हो। विशेषज्ञों का मानना है कि यह दायरा व्यावहारिक नहीं है क्योंकि इसके प्रभाव में देश की लगभग 98 प्रतिशत आबादी आती है।