शरजील इमाम को 2019 के देशद्रोह के मामले में मिली जमानत, लेकिन अभी नहीं होंगे रिहा
दिल्ली की एक कोर्ट ने 2019 के देशद्रोह से संबंधित मामले में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) के पूर्व छात्र शरजील इमाम को जमानत दे दी है। मामले में शरजील पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप है जिसके कारण जामिया नगर में हिंसा हुई। जमानत मिलने के बावजूद शरजील अभी जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे क्योंकि उन पर अन्य मामले भी चल रहे हैं जिनमें उन्हें जमानत मिलना बाकी है।
शरजील को धारा 436-A के तहत मिली जमानत
ट्रायल कोर्ट ने शरजील को धारा 436-A के तहत जमानत दी है। इस धारा में प्रावधान है कि अगर किसी आरोपी ने मामले की सुनवाई पूरी होने से पहले आधी सजा पूरी कर ली है तो उसे जमानत दी जा सकती है।
क्या है जामिया नगर में हिंसा का मामला?
15 दिसंबर, 2019 को दिल्ली के जामिया नगर स्थित जामिया यूनिवर्सिटी में नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन हुआ था। इन्हीं प्रदर्शनों के दौरान यूनिवर्सिटी के बाहर हिंसा भड़क गई और उपद्रवियों ने बसों को आग के हवाले कर दिया। उपद्रवियों ने पुलिस पर पत्थरबाजी भी की, जिसके बाद पुलिस ने भीड़ पर काबू पाने के लिए फायरिंग की। तब पुलिस पर बिना इजाजत यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसने और छात्रों पर लाठीचार्ज करने का आरोप लगा था।
शरजील इमाम पर क्या आरोप हैं?
इस मामले की जांच के बाद पुलिस ने कहा था कि शरजील ने हिंसा से पहले कॉलेज में भड़काऊ भाषण दिया था। इसके बाद ही यह हिंसा भड़की थी। इसको लेकर पुलिस ने 25 जनवरी, 2020 को शरजील के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124 ए (देशद्रोह) और 153 ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास के आधार पर दुश्मनी या दुश्मनी की भावनाओं को बढ़ावा देने या बढ़ावा देने का प्रयास) के तहत मामला दर्ज किया था।
पुलिस ने बिहार से किया था शरजील को गिरफ्तार
इस मामले में पुलिस ने 28 जनवरी, 2020 को बिहार के जहानाबाद में दबिश देकर शरजील को गिरफ्तार किया गया था। उस दौरान शरजील पर शाहीन बाग में हो रहे प्रदर्शन से जुड़े होने का भी आरोप लगा था, लेकिन वहां प्रदर्शनकारियों ने इससे इनकार कर दिया था। पुलिस ने 18 फरवरी, 2020 को कोर्ट में चार्जशीट पेश करते हुए जामिया हिंसा के लिए शरजील को ही पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया था। वह तब से ही जेल में हैं।
शरजील ने अक्टूबर में भी दाखिल की थी जमानत याचिका
मामले में शरजील ने अक्टूबर, 2021 में भी जमानत याचिका दायर की थी। उन्होंने याचिका में तर्क दिया था कि वह देशद्रोही नहीं हैं और उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप कानून द्वारा स्थापित सरकार के न होकर किसी सम्राट की तानाशाही हैं, इसलिए उन्हें मामले में जमानत दी जानी चाहिए। हालांकि साकेत कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट में भी जमानत याचिका दायर की थी।