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    महात्मा गांधी से कन्हैया कुमार तक, ये हैं राजद्रोह की धारा 124A के सबसे चर्चित मामले

    महात्मा गांधी से कन्हैया कुमार तक, ये हैं राजद्रोह की धारा 124A के सबसे चर्चित मामले
    लेखन मुकुल तोमर
    May 11, 2022, 04:29 pm 1 मिनट में पढ़ें
    महात्मा गांधी से कन्हैया कुमार तक, ये हैं राजद्रोह की धारा 124A के सबसे चर्चित मामले
    राजद्रोह की धारा 124A के सबसे चर्चित मामले

    सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राजद्रोह के कानून यानि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। धारा पर ये रोक तब तक के लिए लगाई गई है, जब तक केंद्र सरकार इसकी समीक्षा नहीं कर लेती। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई। चलिए आपको अंग्रेजों के जमाने के इस राजद्रोह कानून के दुरुपयोग के कुछ चर्चित मामलों के बारे में बताते हैं।

    बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी के खिलाफ इस्तेमाल हुआ राजद्रोह कानून

    आजादी से पहले अंग्रेजों ने राजद्रोह कानून का जमकर दुरुपयोग किया था और बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी जैसे स्वतंत्रतता सेनानियों के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया गया। तिलक ने अपने समाचार पत्र में 'देश का दुर्भाग्य' शीर्षक से एक लेख लिखा था। इसके लिए 1908 में उन्हें धारा 124A के तहत छह साल की सजा सुनाई गई। 1922 में अंग्रेजी सरकार की आलोचना करने के लिए इसी धारा के तहत महात्मा गांधी के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।

    1962 का प्रसिद्ध केदारनाथ बनाम बिहार सरकार केस

    1962 में बिहार की कांग्रेस सरकार ने केदारनाथ सिंह के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया था। उन पर ये मुकदमा एक रैली में पूंजीवादी नीतियों के लिए कांग्रेस की आलोचना करने और फॉरवर्ड कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन करने के लिए दर्ज किया गया था। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी भाषण या अभिव्यक्ति की तभी राजद्रोह माना जाएगा, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े।

    हालिया समय के चर्चित मामले कौन से हैं?

    2008 में समाजशास्त्री आशीष नंदी ने गुजरात दंगों पर राज्य सरकार की आलोचना करते हुए लेख लिखा था जिसके कारण उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया। हाई कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए मामले को हास्यास्पद बताया था। एक दूसरे मामले में 2012 में अपनी मांगों को लेकर हरियाणा के हिसार में जिलाधिकारी के दफ्तर के सामने धरने पर बैठे दलितों ने मुख्यमंत्री का पुतला जलाया तो उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा हुआ था।

    इन लोगों पर भी लगा राजद्रोह

    2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्‍लांट का विरोध करने वाले 7,000 ग्रामीणों पर राजद्रोह की धारा लगाई थी। सितंबर, 2012 में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर कार्टून बनाने के लिए यही धारा लगाई गई थी।

    2016 का JNU नारेबाजी का केस राजद्रोह का सबसे चर्चित मामला

    हालिया समय के राजद्रोह के सबसे चर्चित मामलों में 2016 में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में देश विरोधी नारों का मामला शामिल है। इस मामले में कन्हैया कुमार और उमर खालिद समेत लगभग 10 आरोपियों पर राजद्रोह की धारा 124A लगाई गई थी। हालांकि अभी तक ये आरोप साबित नहीं हो पाए हैं। कन्हैया और खालिद पर देश विरोधी नारेबाजी में शामिल होने का आरोप है, वहीं वो दोनों इससे इनकार करते रहे हैं।

    राजद्रोह के दुरुपयोग के अन्य मामले?

    हालिया समय में मामूली बयानों के लिए भी राजद्रोह लगाने के कई मामले आए हैं। पिछले साल जुलाई में हरियाणा में डिप्टी स्पीकर की गाड़ी का शीशा फोड़ने के लिए लगभग 100 किसानों पर राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था। सितंबर में योगी सरकार के खिलाफ टिप्पणी के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। कर्नाटक में CAA विरोधी नाटक के लिए स्कूल के खिलाफ राजद्रोह का केस हुआ था।

    महाराष्ट्र में सांसद और विधायक के खिलाफ राजद्रोह का मामला

    पिछले महीने ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर 'मातोश्री' के बाहर हनुमान चालीसा के पाठ को लेकर हुए विवाद में अमरावती की सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था।

    राजद्रोह के दुरुपयोग पर क्या कहते हैं आंकड़े?

    राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2015 से 2020 के बीच देश में राजद्रोह के 356 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें कुल 548 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। 2020 में 73, 2019 में 93, 2018 में 70, 2017 में 51, 2016 में 35 और 2015 में 30 मामले दर्ज किए गए। 2020 में 33.3 प्रतिशत, 2019 में 3.3 प्रतिशत, 2018 में 15.4 प्रतिशत, 2017 में 16.7 प्रतिशत और 2016 में 33.3 प्रतिशत मामलों में आरोपी दोषी पाए गए।

    क्यों की जा रही धारा 124A को समाप्त करने की मांग?

    जानकारों का कहना है कि संविधान की धारा 19 (1) में पहले से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीमित प्रतिबंध लागू है। ऐसे में धारा 124A की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा धार्मिक उन्माद फैलाने, सामाजिक द्वेष पैदा करने और शांति व्यवस्था बिगाड़ने जैसे गलत कामों के लिए कानून बने हुए हैं तो इस धारा की जरूरत ही नहीं है। भारत में यह कानून बनाने वाले अंग्रेज भी अपने देश में भी इसे खत्म कर चुके हैं।

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