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हाई कोर्ट ने योगी सरकार से पूछा- किस कानून के तहत दारापुरी को भेजा रिकवरी नोटिस?

हाई कोर्ट ने योगी सरकार से पूछा- किस कानून के तहत दारापुरी को भेजा रिकवरी नोटिस?

Jul 12, 2020
01:46 pm

क्या है खबर?

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा है कि उसने किस नियम के तहत रिटायर्ड IPS अधिकारी श्रवण राम दारापुरी के खिलाफ 64 लाख रुपये की रिकवरी का नोटिस जारी किया है। बेंच ने सरकार ने इस पर भी सफाई देने को कहा है कि जिस समय यह घटना हुई, उस समय क्या कोई ऐसा कानून लागू था, जिसके तहत ऐसा नोटिस दिया जा सके। मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को होगी।

मामला

नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शनों से जुड़ा है मामला

बीते साल 19 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ देशभर में कई सामाजिक और राजनीतिक दलों ने विरोध प्रदर्शनों का आह्वान किया था। इस दौरान कई जगहों पर हिंसक झड़प हुई और कई लोगों की मौत हुई थी। इसी दिन लखनऊ में कई हिंसक झड़पें हुई थीं, जिनमें एक व्यक्ति की मौत हुई थी और कई लोगों को चोटें आई थीं। पुलिस ने दारापुरी पर हिंसा भड़काने और साजिश रचने का मामला दर्ज किया था।

मामला

गिरफ्तार भी हुए थे दारापुरी

उत्तर प्रदेश पुलिस में महानिरीक्षक के पद से रिटायर हुए दारापुरी सामाजिक मामलों और आंदोलनों में हिस्सा लेते रहे हैं। पुलिस ने उनके खिलाफ धारा 120 बी के तहत मामला दर्ज किया और उन्हें जेल भेज दिया। बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी। प्रशासन ने हिंसा में कथित तौर पर शामिल आरोपी लोगों पर सरकारी संपत्ति का नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हुए रिकवरी नोटिस भेजने शुरू किए थे। ऐसा ही एक नोटिस दारापुरी को मिला था।

चुनौती

दारापुरी ने नोटिस को कोर्ट में चुनौती दी

लखनऊ जिला प्रशासन की ओर से जारी 64 लाख रुपये की रिकवरी नोटिस को कोर्ट में चुनौती देते हुए दारापुरी ने कहा कि उन्हें गैरकानूनी तरीके से यह नोटिस जारी किया गया है। उनका कहना था कि जिस घटना के लिए उन्हें नोटिस भेजा गया है, वो उसमें शामिल हीं नहीं थे। साथ ही दारापुरी ने कहा कि नोटिस जारी करने से पहले प्रशासन ने उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया।

जानकारी

सिंगल बेंच कर रही सुनवाई

जस्टिस राजन राय की सिंगल बेंच ने दारापुरी की याचिका पर सुनवाई करते हुए अब सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने ये भी जानना चाहा है कि क्या दारापुरी को रिकवरी नोटिस जारी करने से पूर्व उन्हें सुनवाई का मौका दिया गया था।