सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह की धारा 124A के इस्तेमाल पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के कानून यानि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस कानून की समीक्षा और इस पर पुनर्विचार करने की अनुमति दे दी है, लेकिन जब तक कानून की समीक्षा पूरी नहीं होती, तब तक धारा 124A के अंतर्गत कोई भी केस दर्ज नहीं किया जा सकेगा। कोर्ट ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से ऐसा न करने का अनुरोध किया है।
राजद्रोह के लंबित मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
पहले से ही राजद्रोह के मामलों का सामना कर रहे आरोपियों को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोग जमानत के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। उसने सभी लंबित मामलों को फिलहाल ठंडे बस्ते में डालने का निर्देश भी दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर उसके आदेश के बावजूद किसी के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया जाता है तो वो कोर्ट जा सकते हैं जिसे तेजी से मामले को निपटाना होगा।
केंद्र सरकार ने किया कानून पर रोक लगाने का विरोध
इससे पहले सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार राजद्रोह के कानून पर रोक लगाने के पक्ष में नहीं है। उसने सुझाव दिया कि पुलिस अधीक्षक या इससे ऊंचे पद वाला पुलिस अधिकारी के अनुमति देने के बाद ही ये धारा लगाई जाए। लंबित मामलों पर उन्होंने कहा कि लंबित मामलों में आतंकवाद और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे संगीन अपराध भी शामिल हैं, इसलिए इन्हें रोकना ठीक नहीं रहेगा।
राजद्रोह के कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है कोर्ट
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट राजद्रोह के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिनमें राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस कानून के दुरुपयोग पर जोर दिया गया है। जुलाई, 2021 में कोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था और उससे पूछा था कि उसने इस औपनिवेशक कानून को अब तक खत्म क्यों नहीं किया है। सरकार ने पहले कानून का बचाव किया और फिर इसकी समीक्षा की बात कही।
क्या है राजद्रोह का कानून?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A को राजद्रोह का कानून कहा जाता है। इसके तहत अगर कोई व्यक्ति सरकार के विरोध में कुछ बोलता-लिखता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है या राष्ट्रीय चिन्हों और संविधान को नीचा दिखाने की गतिविधि में शामिल होता है तो उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है। देश के सामने संकट पैदा करने वाली गतिविधियों का समर्थन करने और इनका प्रचार-प्रसार करने पर भी राजद्रोह का मामला हो सकता है।
अंग्रेजों ने आजादी के आंदोलन को दबाने के लिए किया था इस कानून का इस्तेमाल
अंग्रेजों ने 1870 में धारा 124A को IPC में जोड़ा था और आजादी के समय तक भारतीय राष्ट्रवादियों और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया गया। इस कानून के तहत 1908 में बाल गंगाधर तिलक और 1922 में महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार किया गया था। आजादी के बाद भी विभिन्न सरकारें इस कानून का इस्तेमाल अपने आलोचकों को दबाने के लिए करती आई हैं। हालिया समय में इसका दुरूपयोग बढ़ गया है।