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    क्या है अंग्रेजों के जमाने का राजद्रोह कानून जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल?

    क्या है अंग्रेजों के जमाने का राजद्रोह कानून जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल?
    लेखन प्रमोद कुमार
    संपादन मुकुल तोमर
    Jul 15, 2021, 08:00 pm 1 मिनट में पढ़ें
    क्या है अंग्रेजों के जमाने का राजद्रोह कानून जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल?
    राजद्रोह की धारा 124A पर सवाल

    आज सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A यानि राजद्रोह के कानून पर सख्त टिप्पणी करते हुए इसे औपनिवेशक कानून बताया और आजादी के 75 साल बाद भी इसके वजूद में होने पर सवाल खड़े किए। लेकिन राजद्रोह की धारा 124A आखिर है क्या, इसका इतिहास क्या है, इस पर अक्सर विवाद क्यों होता है और आखिर क्यों इसे खत्म करने की मांग उठती है? आइये इन सवालों के जवाब जानते हैं।

    क्या है राजद्रोह की धारा 124A?

    धारा 124A के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति देश की सरकार के विरोध में कुछ बोलता या लिखता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन करता है या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ-साथ संविधान को नीचा दिखाने की गतिविधि में शामिल होता है तो उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है। वहीं देश के सामने संकट पैदा करने वाली गतिविधियों का समर्थन करने और प्रचार-प्रसार करने पर भी राजद्रोह का मामला हो सकता है।

    परिभाषा को लेकर है अस्पष्टता

    राजद्रोह की परिभाषा में यह नहीं बताया गया है कि इन गतिविधियों से होने वाले खतरे को कैसे मापा जाएगा। लंबे समय से इसके अस्पष्ट प्रावधानों को दूर करने की मांग की जा रही है, लेकिन अभी तक कोई प्रयास नहीं हुआ है।

    राजद्रोह की धारा का इतिहास

    साल 1837 में लॉर्ड टीबी मैकाले के नेतृत्व वाले पहले विधि आयोग ने IPC तैयार की थी। इसमें राजद्रोह से जुड़ा कोई कानून नहीं था। बाद में 1870 में अंग्रेजी सरकार ने IPC के छठे अध्याय में धारा 124A को शामिल किया। उसके बाद से आजादी के समय तक भारतीय राष्ट्रवादियों और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया गया। अंग्रेजी सरकार उन्हें चुप कराने के लिए इस कानून के तहत जेल में डाल देती थी।

    बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी पर लगी थी राजद्रोह की धारा

    आजादी से पहले बाल गंगाधर तिलक ने अपने समाचार पत्र केसरी में 'देश का दुर्भाग्य' शीर्षक से एक लेख लिखा था। इसके लिए 1908 में उन्हें धारा 124A के तहत छह साल की सजा सुनाई गई। 1922 में अंग्रेजी सरकार ने इसी धारा के तहत महात्मा गांधी के खिलाफ केस दर्ज किया था। उन्होंने भी अंग्रेज सरकार की आलोचना वाले लेख लिखे थे। गांधी ने कहा था कि यह कानून लोगों की स्वतंत्रता को दबाने के लिए बनाया गया है।

    1962 में आया था महत्वपूर्ण फैसला

    1962 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 124A को लेकर बड़ा फैसला दिया था। केदारनाथ सिंह पर बिहार सरकार ने राजद्रोह का मामला दर्ज किया था जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने इस पर सुनवाई की थी। बेंच ने अपने आदेश में कहा था कि किसी भाषण या अभिव्यक्ति की तभी राजद्रोह माना जाएगा, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े।

    इन घटनाओं में दर्ज किए गए राजद्रोह के मामले

    2008 में समाजशास्त्री आशीष नंदी ने गुजरात दंगों पर राज्य सरकार की आलोचना करते हुए लेख लिखा था जिस कारण उन पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया। हाई कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए मामले को हास्यास्पद बताया था। एक दूसरे मामले में 2012 में अपनी मांगों को लेकर हरियाणा के हिसार में जिलाधिकारी के दफ्तर के सामने धरने पर बैठे दलितों ने मुख्यमंत्री का पुतला जलाया तो उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा हुआ था।

    अन्य विवादित मामले

    2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्‍लांट का विरोध करने वाले 7,000 ग्रामीणों पर राजद्रोह की धाराएं लगाई थीं। इसके अलावा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर कार्टून बनाने के लिए यही धाराएं लगाई गई थीं।

    हरियाणा में शीशा तोड़ने के लिए लगाया गया राजद्रोह

    राजद्रोह के कानून के दुरूपयोग का सबसे ताजा मामला हरियाणा में सामने आया है जहां डिप्टी स्पीकर की गाड़ी का शीशा फोड़ने के लिए लगभग 100 किसानों पर राजद्रोह का केस दर्ज किया गया है। इन किसानों ने 11 जुलाई को कृषि कानूनों के विरोध में सिरसा में डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा की कार को घेरकर उस पर पथराव कर दिया था। इस पथराव में गंगवा के कार का शीशा टूट गया। इसके लिए किसानों पर राजद्रोह लगा दिया गया।

    क्यों कही जा रही है इस धारा को समाप्त करने की बात?

    जानकारों का कहना है कि संविधान की धारा 19 (1) में पहले से अभिव्यवक्ति की स्वतंत्रता पर सीमित प्रतिबंध लागू हैं। ऐसे में 124A की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए। उनका कहना है कि सरकारें इस कानून का उपयोग अपने आलोचनों का दबाने के लिए करती हैं और ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुचित पाबंदी है। भारत में यह कानून बनाने वाले अंग्रेज भी अपने देश में भी इसे खत्म कर चुके हैं।

    सरकार की आलोचना राजद्रोह नहीं- विधि आयोग

    2018 में विधि आयोग ने 'राजद्रोह ' विषय पर एक परामर्श पत्र में कहा था कि देश या इसके किसी पहलू की आलोचना को राजद्रोह नहीं माना जा सकता। यह आरोप केवल उन मामलों में लगाया जा सकता है जहां हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को अपदस्थ करने का इरादा हो। पत्र में कहा गया था कि देश या इसके किसी पहलू की आलोचना को राजद्रोह के रूप में नहीं देखा जा सकता और ना ही देखा जाना चाहिए।

    कांग्रेस ने किया था राजद्रोह की धारा को खत्म करने का वादा

    2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में राजद्रोह के कानून को खत्म करने का वादा किया था, लेकिन पार्टी चुनावों में बुरी तरह हार गई और उसका वादा घोषणा-पत्र तक सिमट कर रह गया। हालांकि कांग्रेस ने भी इसका दुरूपयोग किया है।

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