तीनों कृषि कानून रद्द हुए, राष्ट्रपति ने विधेयक को दी औपचारिक मंजूरी
क्या है खबर?
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार को तीन कृषि कानून वापस लेने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी है। इसी के साथ अब तीनों कृषि कानून समाप्त हो गए हैं।
संसद ने 29 नवंबर को इस विधेयक को पारित कर औपचारिक मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा था।
कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी किसान आंदोलन खत्म नहीं हुआ है और किसान मुआवजे समेत दूसरी मांगों के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं।
पृष्ठभूमि
सोमवार को संसद से पारित हुआ विधेयक
कृषि कानूनों को रद्द करने वाला विधेयक सोमवार को बिना चर्चा के ही संसद से पारित हो गया। पहले इसे मात्र कुछ मिनटों के अंदर लोकसभा से पारित किया गया और फिर राज्यसभा में भी यही प्रक्रिया अपनाई गई।
विपक्ष मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रहा था और बिना चर्चा के विधेयक को पारित किए जाने पर उसने हंगामा भी किया। हालांकि, विधेयक को हंगामे के बीच ही पारित कर दिया गया।
जानकारी
प्रधानमंत्री मोदी ने किया था कानूनों वापसी का ऐलान
बता दें कि किसानों के कड़े विरोध और एक साल के किसान आंदोलन को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था।
अपने ऐलान में उन्होंने देश से माफी भी मांगी थी और संसद के अगले सत्र में कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की थी।
उनके ऐलान के बाद ही कृषि मंत्रालय और उपभोक्ता मंत्रालय ने इससे संबंधित विधेयक पर काम शुरू कर दिया था।
कृषि कानून
क्या थे विवादित तीनों कानून?
मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए पिछले साल सितंबर में तीन नए कृषि कानून लाई थी।
इनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद के लिए व्यापारिक इलाके बनाने, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडारण सीमा खत्म करने समेत कई प्रावधान किए गए थे।
कई राज्यों के किसान एक साल से इन कानूनों का विरोध कर रहे थे। उनका तर्क था कि इनके जरिये सरकार मंडियों और MSP से छुटकारा पाना चाहती थी।
किसान आंदोलन
अब इन मांगों के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं किसान
आंदोलन कर रहे किसानों का कहना है कि कृषि कानून वापस करवाना उनकी एक मांग थी। अब सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने की प्रक्रिया और मुआवजे समते दूसरे मुद्दों पर बातचीत शुरू करनी चाहिए।
इसी बीच यह खबर आई है कि सरकार ने बातचीत शुरू करने के लिए किसान संगठनों से पांच लोगों के नाम सुझाने को कहा है। इस बारे में संयुक्त किसान मोर्चा 4 दिसंबर को बैठक करेगा।
जानकारी
सरकार ने किया मुआवजा देने से इनकार
शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन यानी बुधवार को विपक्ष ने सवाल पूछा था कि क्या सरकार के पास आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों का कोई आंकड़ा है और क्या सरकार उनके परिजनों को आर्थिक सहायता देने पर विचार कर रही है?
इसके लिखित जवाब में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि कृषि मंत्रालय के पास ऐसी मौतों का कोई रिकॉर्ड नहीं है और ऐसे में मुआवजे का सवाल नहीं उठता है।