भारत-रूस के बीच हो सकता है 33,000 करोड़ का रक्षा समझौता, मिलेगी ये आधुनिक रडार प्रणाली
भारत और रूस के बीच एक अहम रक्षा समझौते को लेकर बातचीत अंतिम चरण में है। करीब 33,000 करोड़ रुपये के इस समझौते में भारत रूस से अत्याधुनिक 'वोरोनिश' रडार प्रणाली खरीदने की योजना बना रहा है। भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस समय 3 दिवसीय रूस दौरे पर हैं। NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, कथित तौर पर इसी यात्रा के दौरान इस समझौते को अंतिम रूप दिया जा सकता है।
रडार बनाने वाली कंपनी ने किया था भारत का दौरा
रशिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, इस सौदे को लेकर रूस और भारत के बीच लंबे समय से बातचीत चल रही है। पिछले महीने वोरोनिश बनाने वाली कंपनी अल्माज-एंटे की एक टीम ने संभावित साझेदारों के साथ बातचीत करने के लिए भारत का दौरा भी किया था। द संडे गार्जियन के मुताबिक, भारत मेक इन इंडिया पहल के तहत कम से कम 60 प्रतिशत रडार प्रणाली का निर्माण स्थानीय स्तर पर करना चाह रहा है।
कितनी ताकतवर है वोरोनिश रडार प्रणाली?
वोरोनिश एक लंबी दूरी की प्रारंभिक रडार चेतावनी प्रणाली है। यह बैलिस्टिक मिसाइलों, लड़ाकू विमानों और अंतर-महाद्विपीय बैलेस्टिक मिसाइल (ICBM) जैसे खतरों की पहचान करने और नजर रखने में सक्षम है। ये एक साथ 500 से ज्यादा ऑब्जेक्ट्स को ट्रैक कर सकती है। इसकी सबसे खास बात इसकी रेंज है। ये 6,000 से 8,000 किलोमीटर के दायरे में हवाई खतरों को ट्रैक कर सकता है। केवल रूस, चीन और अमेरिका के पास ही इतनी लंबी रेंज की रडार प्रणाली है।
भारत को क्या होगा फायदा?
अगर भारत को ये प्रणाली मिलती है तो भारत चीन, दक्षिण और मध्य एशिया और हिंद महासागर के ज्यादातर हिस्सों से किसी भी हवाई खतरे का पता लगाने में सक्षम होगा। इससे एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में खतरों का पता लगाने और निगरानी क्षमताओं में सुधार करने की भारत की क्षमता में भी सुधार होगा। लगातार बढ़ती क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत की वायु रक्षा बुनियादी ढांचे के लिए ये काफी अहम साबित होगा।
कर्नाटक में तैनात की जाएगी प्रणाली
अगर यह सौदा पक्का हो जाता है तो भारत इस प्रणाली को कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में स्थापित करने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए निर्धारित स्थान का सर्वे भी किया जा चुका है। चित्रदुर्ग में पहले से ही भारत की कुछ सबसे उन्नत और शीर्ष गुप्त रक्षा और एयरोस्पेस सुविधाएं मौजूद हैं। भारत की ओर से रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के अंतर्गत आने वाला इलेक्ट्रॉनिक्स और रडार विकास प्रतिष्ठान (LRDE) इस परियोजना को संभाल रहा है।