#NewsBytesExplainer: अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत-चीन के बीच क्या विवाद है?
अमेरिका के दो सांसदों ने गुरुवार को अमेरिकी संसद में एक दुर्लभ प्रस्ताव पेश करते हुए अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताया और सैन्य बल के जरिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यथास्थिति बदलने के लिए चीन की निंदा की। यह अपनी तरह का पहला प्रस्ताव है और इसे अमेरिका की दोनों प्रमुख पार्टियों का समर्थन प्राप्त है। आइए आपको बताते हैं कि अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत और चीन के बीच क्या विवाद है।
चीन क्यों करता है अरुणाचल पर दावा?
चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा मानता है और अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करते हुए इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है। दूसरी तरफ भारत का कहना है कि अरुणाचल उसका अभिन्न अंग है और इस पर भारत की संप्रभुता को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली हुई है। चीन अरुणाचल प्रदेश की 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना अधिकार बताता है तो भारत कहता है कि चीन ने अक्साई चिन की करीब 38,000 वर्ग किलोमीटर पर अवैध कब्जा किया हुआ है।
दोनों देशों की अलग-अलग मान्यताओं का क्या कारण है?
सीमा निर्धारित करने के लिए भारत और तिब्बत के बीच 1914 में बैठक हुई थी, जिसमें तिब्बत ने अरुणाचल प्रदेश के विवादित इलाकों को भारत का हिस्सा माना। 1935 में इन इलाकों को आधिकारिक तौर पर भारत के नक्शे में शामिल कर लिया गया। हालांकि, चीन ने इसे स्वीकार नहीं किया और 1950 में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद से ही वह अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत बताकर इस पर दावा करता आ रहा है। मुख्य विवाद तवांग पर है।
तवांग पर क्या विवाद है?
अरुणाचल के तवांग में सदियों पुराना बौद्ध मंदिर है और चीन इसे तिब्बत के बौद्धों के लिए बेहद अहम मानता है। 1914 में हुई एक बैठक में ब्रिटिश शासकों और तिब्बत ने तवांग को भारत का हिस्सा माना था, लेकिन चीन इस फैसले का विरोध करते हुए बैठक से बाहर चला गया था। इसके बाद 1962 के युद्ध में चीन ने तवांग पर कब्जा कर लिया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद उसे इसे भारत को लौटना पड़ा था।
अरुणाचल को लेकर भारत-चीन कब-कब सामने आए?
1962 युद्ध के बाद चीन ने जून, 1986 में अरुणाचल के तवांग में घुसपैठ की थी और यहां सुमदोरोंग नदी के किनारे पर स्थायी कैंप बना लिए थे। राजनयिक प्रयास विफल रहने के बाद भारत ने भी इलाके में अपनी तैनाती बढ़ा दी और दोनों देशों ने लगभग 20,000-20,000 जवान तैनात कर दिए। इसके अलावा भारत ने दिसंबर, 1986 में अरुणाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा भी दे दिया। यह गतिरोध नौ साल चला और 1995 में जाकर खत्म हुआ।
हालिया समय में क्या-क्या हुआ है?
2000 के बाद जब भी दलाई लामा या भारतीय प्रधानमंत्री ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया है, तब-तब चीन ने इसका विरोध किया। इलाके में दोनों देशों के सैनिक भी कई मौकों पर आमने-सामने आ चुके हैं, हालांकि कोई भी विवाद बड़ा नहीं हुआ। 2017 में जब दलाई लामा ने अरुणाचल का दौरा किया था, तब इसका विरोध करते हुए चीन ने राज्य की छह जगहों के नए चीनी नाम जारी किए थे।
भारतीय सीमा में गांव बसाने का क्या मामला है?
लद्दाख में घुसपैठ के बाद चीन ने अरुणाचल प्रदेश में भी घुसपैठ की है और यहां भारतीय सीमा के अंदर घुसकर दो गांव बसा लिए हैं। चीन ने एक गांव अरुणाचल प्रदेश के शी-योमी जिले में बनाया है और इसमें लगभग 60 घर हैं। ये गांव भारतीय सीमा के छह-सात किलोमीटर अंदर है। चीन द्वारा बसाए गए दूसरे गांव में लगभग 100 घर हैं। इसके अलावा चीन ने अरुणाचल प्रदेश की 15 जगहों के नाम भी बदल दिए हैं।
दिसंबर में तवांग में हुई थी दोनों देशों के सैनिकों में झड़प
LAC पर तनाव के बीच पिछले साल 9 दिसंबर को अरुणाचल के तवांग सेक्टर में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। लगभग 200 चीनी सैनिकों ने 17,000 फुट ऊंची एक चोटी से भारतीय पोस्ट को हटाने की कोशिश की थी, जिसके बाद ये झड़प हुई। चीनी सैनिक कंटीले क्लब और लाठियां लेकर आए थे, लेकिन भारतीय सैनिकों ने उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया। झड़प में दोनों तरफ के सैनिक घायल हुए थे।
अमेरिकी संसद में पेश प्रस्ताव में क्या कहा गया?
तवांग झड़प की पृष्ठभूमि में ही अमेरिकी संसद में प्रस्ताव पेश किया गया है। इसमें कहा गया है कि अमेरिका मैकमोहन लाइन को चीन और भारत के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा मानता है और वह अरुणाचल प्रदेश को विवादित क्षेत्र नहीं, बल्कि भारत का अभिन्न अंग मानता है। इसमें LAC पर यथास्थिति बदलने के लिए सैन्य बल के प्रयोग, विवादित इलाकों में गावों के निर्माण, अरुणाचल प्रदेश की जगहों को चीनी नाम देने के लिए चीन की निंदा की गई है।
क्यों अहम है प्रस्ताव?
यूं तो अमेरिका पहले से ही अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा मानता आया है, लेकिन ये पहली बार है जब मुद्दे पर इतना विस्तृत प्रस्ताव पेश किया गया है। इस प्रस्ताव की अहमियत इस बात से और बढ़ जाती है कि इसे अमेरिका की दोनों मुख्य पार्टियों का समर्थन हासिल है और उनके सांसदों ने मिलकर इसे पेश किया है। प्रस्ताव में चीन की आलोचना के साथ-साथ भारत का खुलेआम समर्थन करना भी एक अहम बात है।