नेपाली संसद में पेश हुआ भारतीय क्षेत्र को नेपाल में दिखाने वाले नक्शे से संबंधित बिल
क्या है खबर?
भारतीय क्षेत्र को नेपाली क्षेत्र के तौर पर दर्शाने वाले नए नक्शे को मंजूरी दिलाने के लिए नेपाली सरकार ने अपनी संसद में संविधान संशोधन बिल पेश कर दिया है। देश के कानून मंत्री शिवमाया तुम्बाहांगफे ने सरकार की ओर ये बिल पेश किया।
संसद में पेश किए जाने के बाद इस बिल को पारित किया जाना महज एक औपचारिकता है क्योंकि विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस भी इस बिल का समर्थन कर चुकी है।
मामला
लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को दिखाया गया नेपाल का हिस्सा
नेपाल के नए नक्शे में भारत के हिस्से में आने वाले लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र के तौर पर दर्शाया गया है। सरकार ने इसे पहले ही मंजूरी दे दी थी और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अन्य सभी पार्टियों से भी सर्वसम्मति से इस बिल का समर्थन करने का कहा था।
नेपाली कांग्रेस ने इस पर विचार करने के लिए समय मांगा था और कल ही उसने बिल का समर्थन करने का ऐलान किया था।
प्रक्रिया
अगले 10 दिन में पारित हो सकता है बिल
बिल में नेपाली संविधान की तीसरी अनुसूची में बदलाव किया गया है और संसद से मंजूरी के बाद इसे सभी आधिकारिक दस्तावेजों में इस्तेमाल किया जाएगा।
NDTV के सूत्रों के मुताबिक, नेपाल में एक संविधान संशोधन बिल पारित होने में लगभग एक महीने का समय लगता है, लेकिन इस बिल को 10 दिन में पारित किया जा सकता है।
विपक्ष के समर्थन के बाद सरकार इसे पारित करने के लिए जरूरी दो-तिहाई बहुमत आसानी से जुटा लेगी।
विवाद
क्यों है भारत और नेपाल में विवाद?
भारत-नेपाल की 1816 की 'सुगौली संधि' के तहत महाकाली नदी के पश्चिम में स्थित पूरा हिस्सा भारत का है, वहीं पूर्व का हिस्सा नेपाल में आता है।
विवाद इस बात को लेकर है कि महाकाली नदी कहां से शुरू होती है। नेपाल लिम्पियाधुरा से निकलने वाली धारा को महाकाली नदी का स्त्रोत मानता है और कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को अपना हिस्सा बताता है।
वहीं भारत लिपुलेख के दक्षिण से निकलने वाली धारा को इसकी मुख्यधारा मानता है।
विवाद
लिपुलेख दर्रे में भारत के सड़क निर्माण से शुरू हुआ मौजूदा विवाद
मौजूदा विवाद की शुरूआत भारत के लिपुलेख दर्रे तक एक सड़क बनाने के कारण हुई है। नेपाल इसे अपना हिस्सा बताते हुए इस सड़क निर्माण का विरोध कर रहा है और कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख तीनों को अपने नक्शे में शामिल करने का फैसला लिया है। अभी तक वह केवल कालापानी को अपने नक्शे में शामिल करता था।
भारत का कहना है कि वह क्षेत्रीय सीमा में ऐसी कृत्रिम वृद्धि को स्वीकार नहीं करेगा।
जानकारी
रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण है लिपुलेख दर्रा
बता दें कि 17,060 फुट की ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रा रणनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है और भारत और नेपाल के अलावा इसकी सीमाएं चीन (तिब्बत) से भी लगती हैं। इसलिए माना जा रहा है कि नेपाल के इस विरोध के पीछे चीन है।