दुनिया-जहां: चीन अरुणाचल को अपना हिस्सा क्यों मानता है और क्यों बदले उसने जगहों के नाम?
क्या है खबर?
चीन ने पिछले महीने एक बार फिर भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश की कुछ जगहों के नाम बदलकर नए 'मानकीकृत' नाम जारी किए।
इससे पहले वह अरुणाचल में भारतीय नेताओं के दौरे पर नाराजगी व्यक्त कर चुका है। ऐसा कई बार हो चुका है, जब चीन ने भारतीय नेताओं के अरुणाचल जाने पर आपत्ति जताई है।
आइये अरुणाचल के मुद्दे पर चीन की बौखलाहट और यह समझने की कोशिश करते हैं कि वह जगहों का नाम क्यों बदल रहा है।
विवाद
अरुणाचल को तिब्बत का हिस्सा मानता है चीन
दरअसल, चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा मानता है। वह अरुणाचल प्रदेश पर दावा करते हुए इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है।
दूसरी तरफ भारत का कहना है कि अरुणाचल उसका अभिन्न अंग है। अरुणाचल समेत भारत की संप्रभुता को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली हुई है।
चीन अरुणाचल प्रदेश की 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना अधिकार बताता है तो भारत कहता है कि चीन ने अक्साई चिन की करीब 38,000 वर्ग किलोमीटर पर अवैध कब्जा किया हुआ है।
इतिहास
क्या है इतिहास?
BBC के अनुसार, सन 1912 तक भारत और तिब्बत के बीच सीमा का निर्धारण नहीं किया गया था। इन इलाकों पर न तो अंग्रेजों का नियंत्रण था और न ही उनसे पहले मुगलों का शासन था। समय बीतने के साथ यहां पर सीमा का निर्धारण होने की मांग उठने लगी।
अरुणाचल के तवांग में जब सदियों पुराना बौद्ध मंदिर मिला तो सीमा के आकलन का काम शुरू हुआ। चीन तिब्बत के बौद्धों के लिए तवांग को बेहद अहम मानता है।
सीमा निर्धारण
1914 में हुई बैठक
साल 1914 में सीमा रेखा के निर्धारण के लिए शिमला में भारत के ब्रिटिश शासकों, तिब्बत और चीन की बैठक हुई थी। उस वक्त तिब्बत एक स्वतंत्र देश था।
इस बैठक में ब्रिटिश शासकों ने दक्षिणी हिस्से और तवांग को भारत का हिस्सा माना। तिब्बत इस पर सहमत था, लेकिन चीन को यह फैसला मंजूर नहीं था और वह बैठक बीच में छोड़कर चला गया था।
आगे चलकर 1935 में यह इलाका भारत के नक्शे में शामिल हो गया था।
जानकारी
1950 में चीन ने तिब्बत पर किया कब्जा
1949 में चीनी गणतंत्र के गठन के बाद 1950 में चीन ने तिब्बत को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया था। इससे पहले तिब्बत को भारत के ज्यादा करीब माना जाता था, लेकिन चीनी कब्जे के बाद वह स्वतंत्र देश नहीं रहा। 1954 में भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना था।
इसके कुछ समय बाद चीन ने भारतीय इलाकों में अतिक्रमण की शुरुआत कर दी और 1959 में पहली बार दोनों देशों के बीच सैन्य मुठभेड़ हुई।
जानकारी
1962 के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद पीछे हटा चीन
1962 के युद्ध में चीन ने तवांग समेत कई हिस्सों पर कब्जा किया था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते उसे वापस हटना पड़ा। तब उसने यह कहकर तवांग पर दावा व्यक्त करना शुरू किया कि वह मैकमोहन रेखा को नहीं मानता।
जानकारी
चीन ने अरुणाचल प्रदेश की जगहों के नए नाम क्यों जारी किए?
चीन ने इसी साल की शुरुआत से लागू हुए नए 'लैंड बॉर्डर कानून' के तहत अरुणाचल प्रदेश की कई जगहों के नए नाम जारी किए हैं।
बीते मंगलवार को चीन ऐलान किया कि उसने अरुणाचल के आठ शहरों, दो नदियों, एक पहाड़ी दर्रे और चार पहाड़ों के नामों को चीनी, तिब्बती और रोमन में जारी किया है।
अब से चीन के आधिकारिक नक्शे में अरुणाचल के इन 15 स्थानों को नए नामों से जाना जाएगा।
असर
क्या इससे कुछ फर्क पड़ेगा?
अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के नए नाम जारी करने को विशेषज्ञ चीन का प्रतीकात्मक फैसला मानते हैं और कहते हैं कि इससे जमीन पर कुछ असर नहीं पड़ेगा।
इस नए कानून में चीन ने अपने नागरिकों और सेना को संप्रुभता की सुरक्षा करने के लिए कई जिम्मेदारिया दी हैं।
भारत ने पिछले साल अक्टूबर में इस कानून पर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि इससे द्विपक्षीय रिश्तों पर असर पड़ सकता है।
नए नाम
पहले ऐसा कब हुआ था?
इससे पहले चीन ने 2017 में अरुणाचल के छह स्थानों के नए नाम जारी किए थे।
उसी साल अप्रैल में दलाई लामा ने अरुणाचल की यात्रा की थी। तब चीन की तरफ से नए नाम जारी किए जाने को उसकी प्रतिक्रिया मानी गई थी। चीन ने बीजिंग में भारतीय राजदूत के सामने अपना विरोध भी दर्ज कराया था।
दूसरी तरफ भारत ने इसे धार्मिक यात्रा बताते हुए कहा था कि लोकतांत्रिक भारत में धार्मिक नेताओं पर पाबंदी नहीं है।
जानकारी
दलाई लामा का विरोध क्यों करता है चीन?
चीन दलाई लामा को अलगाववादी बताता आया है। तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद दलाई लामा विस्थापित होकर तवांग के रास्ते भारत आए थे। यहां हिमाचल प्रदेश में उन्हें शरण दी गई थी।
भारत में रहते हुए दलाई लामा लगातार तिब्बत स्वायत्ता की मांग उठाते रहे हैं और चीन का विरोध जारी रखा है।
तवांग दौरे के बाद दलाई लामा ने साफ किया था कि भारत ने कभी बीजिंग के खिलाफ उनका इस्तेमाल नहीं किया।