#NewsBytesExplainer: महिला आरक्षण विधेयक कब-कब हुआ पेश और किन कारणों से नहीं हो पाया पारित?
क्या है खबर?
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में बहुप्रतीक्षित महिला आरक्षण को लेकर 'नारी शक्ति वंदन विधेयक' पेश कर दिया है।
इस विधेयक में लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। ये विधेयक कई बार संसद में पेश हो चुका है, लेकिन पिछले 27 साल से पारित नहीं हुआ।
आइए जानते हैं कि महिला आरक्षण विधेयक कब-कब संसद में पेश हुआ और किन कारणों से पारित नहीं हुआ है।
कब
1996 में पहली बार संसद में पेश हुआ था विधेयक
महिला आरक्षण विधेयक को पहली बार एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 12 सितंबर, 1996 को संसद में पेश किया था।
तब विधेयक 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में सदन में पेश हुआ था, जिसका मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव ने विरोध किया था।
इसके बाद विधेयक को लेकर एक संयुक्त संसदीय समिति ने दिसंबर, 1996 को लोकसभा को अपनी रिपोर्ट सौंपी, लेकिन 1997 में सरकार अल्पमत आ गई और 11वीं लोकसभा को भंग कर दिया गया था।
मई
1997 में फिर लोकसभा में चर्चा के लिए लाया गया था विधेयक
इसके बाद 16 मई, 1997 को इंद्र कुमार गुजराल के प्रधानमंत्री बनने के बाद संयुक्त मोर्चा सरकार द्वारा इस विधेयक को लोकसभा में चर्चा में फिर से चर्चा के लिए लाया गया था।
संसद के पिछले सत्र की तरह ही सत्तारूढ़ गठबंधन की सरकार के भीतर ही इस विधेयक का विरोध शुरू हो गया।
तब भी गठबंधन की सरकार के सहयोगियों में तत्कालीन जनता दल यूनाइटेड (JDU) अध्यक्ष शरद यादव ने इसका कड़ा विरोध किया था।
फिर
1998 में वाजपेयी सरकार में भी लाया गया था विधेयक
26 जून, 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रित गठबंधन (NDA) सरकार में महिला आरक्षण विधेयक को तत्कालीन कानून मंत्री एम थंबीदुरई ने सदन में पेश किया था।
इस दौरान गठबंधन में सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता सुरेंद्र कुमार यादव ने इस विधेयक की प्रतियां फाड़ दी थीं।
कई पार्टियों के गठबंधन की NDA सरकार में तत्कालीन रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार ने भी इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया था।
फिर
1999 और 2003 में NDA सरकार ने पेश किया था विधेयक
इसके बाद अप्रैल, 1999 में वाजपेयी सरकार गिरने के बाद लोकसभा भंग हो गई, जिसके कारण यह विधेयक फिर संसद में लटक गया।
वाजपेयी के नेतृत्व में NDA सरकार की सत्ता में वापसी के बाद महिला आरक्षण विधेयक को 1999 में ही फिर लोकसभा में पेश करने की कोशिश की, लेकिन इतिहास ने खुद को दोहराया और OBC नेताओं ने इसके आगे बढ़ने का रास्ता रोक दिया।
2003 में भी वाजपेयी सरकार विधेयक के लिए समर्थन जुटाने में नाकाम रही।
2008
2008 में UPA सरकार ने राज्यसभा में पेश किया था विधेयक
2008 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने राज्यसभा में विधेयक पेश किया। इस विधेयक को राज्यसभा में भाजपा और वाम दलों का पूर्ण समर्थन प्राप्त था।
UPA की सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और समाजवादी पार्टी (SP) ने 33 प्रतिशत महिला आरक्षित सीटों का एक बड़ा हिस्सा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को देने की मांग की।
9 मई, 2008 को यह विधेयक स्थायी समिति को भेज दिया गया।
UPA
2010 में राज्यसभा में पास हो गया था विधेयक
UPA सरकार में स्थायी समिति ने 17 दिसंबर, 2009 को राज्यसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। विधेयक को फरवरी, 2010 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिल गई और 9 मार्च, 2010 को ये विधेयक राज्यसभा में पास हो गया।
इसके बाद सरकार ने लोकसभा में इस विधेयक को दोबारा विचार के लिए नहीं रखा और 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद इसकी मियाद भी खत्म हो गई। इसी कारण ये विधेयक अब तक कानून नहीं बना पाया है।
प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
महिला आरक्षण विधेयक के 2010 में संसद में पेश होने के दौरान ऐतिहासिक क्षण देखा गया था। जब तीन प्रमुख पार्टियों की महिला नेता सोनिया गांधी, वृंदा करात और सुषमा स्वराज इस विधेयक के समर्थन में एकजुट हुई थीं।
इन्होंने लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव की तिकड़ी का विरोध किया था, जो शुरुआत से विधेयक के खिलाफ रहे हैं।
राज्यसभा में विधेयक के समर्थन में 186 वोट थे, जबकि विरोध में केवल एक वोट पड़ा था।