कौन हैं अर्जुन राम मेघवाल, जिन्हें मोदी कैबिनेट में मिला कानून मंत्रालय का कार्यभार?
केंद्र सरकार ने गुरुवार को अपनी कैबिनेट में बड़ा फेरबदल किया। किरेन रिजिजू को कानून मंत्रालय की जिम्मेदारियों से मुक्त करते हुए भू-विज्ञान मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अब कानून मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार अर्जुन राम मेघवाल को सौंपा गया है, जो पहले से ही संसदीय कार्य मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय के राज्य मंत्री हैं। आइए मेघवाल के बारे में जानते हैं, जिन्हें लोकसभा चुनाव से पहले मोदी कैबिनेट में तवज्जो दी गई है।
राजस्थान में जन्मे थे मेघवाल, IAS रहे
अर्जुन राम मेघवाल का जन्म 7 दिसंबर, 1954 को राजस्थान में हुआ। उन्होंने बीकानेर के राजकीय डूंगर कॉलेज से 1977 में विधि से स्नातक और 1979 में कला से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। मेघवाल ने 1982 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की परीक्षा पास की। इसके बाद उनका राजस्थान उद्योग सेवा के लिए चयन हुआ। उन्होंने कई सालों तक राजस्थान के कई जिलों में उद्योग विभाग के महाप्रबंधक के रूप में अपनी सेवाएं दीं।
मेघवाल ने 2009 में लड़ा था पहला लोकसभा चुनाव
मेघवाल भारतीय प्रशासनिक सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद राजनीति में आए। मेघावल ने साल 2009 पहली बार भाजपा के टिकट पर बीकानेर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद वह 2014 और 2019 का चुनाव भी यहां से जीत चुके हैं। मेघवाल को साल 2016 में नरेंद्र मोदी की सरकार में वित्त राज्य मंत्री बनाया गया था, जिसके बाद वह कुछ समय के लिए जल संसाधन राज्य मंत्री भी रहे।
मेघवाल को 2013 में मिला था सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार
मेघवाल को साल 2013 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार भी मिल चुका है। वह अभी मोदी सरकार में केंद्रीय संसदीय कार्य और संस्कृति राज्य मंत्री का कार्यभार संभाल रहे हैं, जिसके बाद उन्हें कानून मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। राजस्थान की राजनीति में मेघवाल की गिनती एक जमीनी नेता की है। उनके सरल स्वभाव और पहनावे में राजस्थान की झलक दिखती है। मेघवाल पगड़ी बांधकर साइकिल पर सवार होकर संसद आने वाले नेताओं में से एक हैं।
मोदी सरकार में मेघवाल को तवज्जो दिये जाने के मायने
मोदी सरकार द्वारा मेघवाल को और अधिक तवज्जो दिये जाने के कई मायने निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मेघवाल राजस्थान में भाजपा का बड़ा दलित चेहरा हैं। राजस्थान में इस साल ही चुनाव होने हैं और कर्नाटक में भाजपा को मिली हार के पीछे दलित वोट बैंक का खिसकना एक कारण माना जा रहा है। माना जा रहा है कि मेघवाल के जरिए भाजपा की कोशिश राज्य में दलित वोट बैंक को साधने की है।
दलित वोट बैंक राजस्थान में कितना अहम?
राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीट हैं, जिनमें से 34 सीट अनुसूचित जाति और 25 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। 2011 के आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी 31 प्रतिशत से ज्यादा है। पिछले चुनावों में देखा गया है कि जिस पार्टी ने इन आरक्षित सीटों पर कब्जा जमाया है, उसकी ही सरकार बनी है। भाजपा इसी दलित वोट बैंक को साधना चाहती है।