#NewsByetsExplainer: महिला आरक्षण विधेयक का इतिहास, कौन इसके समर्थन में और कौन इसके खिलाफ?
केंद्र सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा की है। यह सत्र 18 से 22 सितंबर तक बुलाया गया है, जिसमें सरकार महिला आरक्षण विधेयक भी पेश कर सकती है। इस विधेयक में लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है। ये विधेयक कई बार संसद में पेश किया गया है, लेकिन अभी तक पारित नहीं हुआ है। आइए इस विधेयक के इतिहास के बारे में विस्तार से जानते हैं।
महिला आरक्षण विधेयक क्या है?
इस विधेयक में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। इसी 33 प्रतिशत में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी हैं। महिला आरक्षण विधेयक एक संविधान संशोधन विधेयक है। यही कारण है कि इसे दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना जरूरी है। इसी वजह से ये विधेयक करीब 26 साल से अधर में लटका हुआ है।
पहली बार कब आया महिला आरक्षण का विचार?
भारत की स्वतंत्रता से पहले ही महिलाओं को राजनीतिक अधिकार देने के विचार ने जन्म ले लिया था। स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1931 में सरोजिनी नायडू ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर महिलाओं को राजनीतिक अधिकार देने की बात कही थी। उनका मानना था कि किसी पद पर महिलाओं को मनोनीत करना उनका अपमान है। वह चाहती थीं कि महिलाएं मनोनीत न हों, बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी जाएं। इसके बाद भारत में महिलाओं के आरक्षण की बात होने लगी।
पहली बार कब संसद में पेश हुआ था महिला आरक्षण विधेयक?
27 साल पहले पहली बार महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किया गया था। 12 जनवरी, 1996 को ये विधेयक लोकसभा में रखा गया था और इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की सरकार को विपक्ष के विरोध का सामना करना पड़ा था। इस विधेयक को लेकर एक संयुक्त संसदीय समिति ने दिसंबर, 1996 को लोकसभा को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, लेकिन 1997 में सरकार अल्पमत में आ गई और 11वीं लोकसभा को भंग कर दिया गया।
पहली बार के बाद कब-कब संसद में पेश किया गया विधेयक?
26 जून, 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को पेश किया, लेकिन ये पारित नहीं हो सका। इसके बाद NDA सरकार के कार्यकाल में 1999, 2002 और 2003 में भी ये विधेयक पारित नहीं हुआ। इसके बाद कांग्रेस की अगुवाई वाली UPA सरकार ने 2004, 2009 और 2010 में विधेयक को पारित कराने की कोशिश की। ये विधेयक राज्यसभा में मार्च, 2010 में पारित हो गया, लेकिन लोकसभा में नहीं हो पाया।
कौन-कौन-सी पार्टियां करती हैं महिला आरक्षण का विरोध?
इस विधेयक का नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) के अलावा समाजवादी पार्टी (SP) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जैसी पार्टियां विरोध करती आई हैं। 2009-10 में कांग्रेस महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पारित करने के करीब थी, लेकिन उसकी सहयोगी पार्टियों ने विधेयक के भीतर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की मांग रख दी। इसके चलते ये विधेयक फिर लटक गया।
कौन-कौन-सी पार्टियां महिला आरक्षण के समर्थन में?
भाजपा, कांग्रेस और वाम पार्टियां हमेशा से ही महिला आरक्षण के समर्थन में रही हैं। 2004 से पहले NDA सरकार के कार्यकाल में विधेयक को कई बार पारित कराने की कोशिश की गई, लेकिन वह सफल नहीं हो सकी। कांग्रेस हमेशा से महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने का श्रेय लेना चाहती थी। वह 2014 में सत्ता से बाहर हो गई, लेकिन 2017 में सोनिया गांधी ने मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था।
अभी क्या है लोकसभा में महिलाओं की स्थिति?
देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद से आज तक भारतीय राजनीति में महिलाओं की स्थिति काफी अच्छी नहीं रही। 1952 में बनी पहली लोकसभा में 499 सांसदों में से महिला सांसदों की संख्या महज 24 थी। इसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में यह संख्या घटती-बढ़ती रही, लेकिन कभी भी यह संख्या 14 प्रतिशत से अधिक नहीं हुई। मौजूदा 17वीं लोकसभा में महिला सासंदों की संख्या 78 यानी लगभग 14 प्रतिशत है, जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या है।
क्या स्थानीय निकायों में महिला आरक्षण की व्यवस्था है?
महिला आरक्षण की मांग को लेकर साल 1993 में संविधान में 73वां और 74वां संशोधन किया गया, जिसमें पंचायत और नगरीय निकायों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं। इस निर्णय से महिलाओं का राजनीति में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हुआ। इसके अलावा बीते सालों में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और केरल जैसे कई राज्यों ने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण तय करने लिए कानूनी प्रावधान किए गए हैं।
न्यूजबाइट्स प्लस
केंद्र सरकार ने मानसून सत्र खत्म होने के बाद 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। इस सत्र में सरकार महिला आरक्षण के अलावा 'एक देश, एक चुनाव' और समान नागरिक संहिता (UCC) से जुड़े विधेयक भी लेकर आ सकती है। खबर है कि सत्र के दौरान सरकार कुल 10 विधेयक पेश कर सकती है। ये वो विधेयक हैं, जिन्हें मानसून सत्र में मणिपुर मुद्दे पर हंगामे के चलते संसद में पेश नहीं किया जा सका।