#NewsBytesExplainer: अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से AFSPA हटाने के संकेत दिए, क्या है ये विवादित कानून?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर से सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम (AFSPA) कानून हटाने पर विचार कर रही है। उन्होंने ये भी बताया कि सरकार जम्मू-कश्मीर से सेना को वापस बुलाने की भी योजना बना रही है। बता दें कि लंबे समय से जम्मू-कश्मीर से AFSPA हटाने की मांग हो रही है। आइए इस कानून के बारे में विस्तारपूर्वक जानते हैं।
AFSPA कानून क्या है?
AFSPA यानी आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट, इसे ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों के आंदोलनों को कुचलने के लिए लागू किया था। इसके तहत सैन्य बलों को विशेष अधिकार दिए गए हैं। भारत के आजाद होने के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राज्यों की स्थिति को देखते हुए इसे जारी रखने का फैसला लिया था। 1958 में एक अध्यादेश के जरिए AFSPA के वर्तमान स्वरूप को लाया गया। संसद की स्वीकृति के बाद सितंबर, 1958 को AFSPA एक कानून बना।
AFSPA में सैन्य बलों को क्या विशेष अधिकार दिए गए हैं?
AFSPA में सैन्य बलों को कई विशेष अधिकार मिले हैं। सबसे बड़ा अधिकार है कि सैनिक कानून तोड़ने वाले किसी व्यक्ति पर बल प्रयोग कर सकते हैं और यहां तक कि गोली भी चला सकते हैं। हालांकि, ऐसा करने से पहले चेतावनी देना जरूरी है। इसके अलावा सैन्य बल बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते हैं और तलाशी ले सकते हैं। सुरक्षा बलों के खिलाफ केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना कोई मुकदमा दर्ज नहीं हो सकता।
कहां लागू किया जाता है AFSPA और इसकी प्रक्रिया क्या है?
किसी भी क्षेत्र में उग्रवादी तत्वों की अत्यधिक सक्रियता या विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषायी, क्षेत्रीय समूहों, जातियों और समुदायों के बीच विवाद महसूस होने पर संबंधित राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र द्वारा उस क्षेत्र को 'अशांत' घोषित कर वहां AFSPA लागू किया जाता है और केंद्रीय सुरक्षाबलों की तैनाती की जाती है। राज्यपाल को आधिकारिक राजपत्र में इस संबंध में एक उपयुक्त अधिसूचना भी जारी करनी होती है।
कब कहां लागू किया गया AFSPA?
केंद्र सरकार ने सबसे पहले 11 सितंबर, 1958 को अलगाववाद, हिंसा और विदेशी आक्रमणों से रक्षा के लिए असम और मणिपुर में AFSPA लागू किया था। इसके बाद 1972 में कुछ संशोधनों के बाद त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर में इसे लागू कर दिया गया। इसी तरह 1983 में केंद्र सरकार AFSPA (पंजाब और चंडीगढ़) अध्यादेश लेकर आई और 6 अक्टूबर, 1983 को इसे कानून का रूप देकर दोनों जगह लागू कर दिया गया।
जम्मू-कश्मीर में लागू है AFSPA
1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में आतंक अपने चरम पर पहुंच गया था। इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने इसी तरह का एक कानून पास करने का फैसला लिया, जिसके जरिए 5 जुलाई, 1990 को सरकार ने पूरे जम्मू-कश्मीर में AFSPA लागू कर दिया था।
अभी किन-किन राज्यों में लागू है AFSPA?
सरकार समय-समय पर हालात को देखते हुए AFSPA कानून को हिंसाग्रस्त क्षेत्र से हटाती या लागू करती रहती है। फिलहाल असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और नागालैंड के कुछ हिस्सों में ये कानून लागू है। त्रिपुरा से 2015 में और मेघालय से 2018 में इस कानून को हटा लिया गया था। इससे पहले 14 साल तक लागू रहने के बाद 1997 में पंजाब और चंडीगढ़ से भी इसे हटा दिया गया था।
क्यों होता है AFSPA का विरोध?
विभिन्न मानवाधिकार संगठन, अलगाववादी और राजनीतिक पार्टियां AFSPA का विरोध करते आ रहे हैं। वो इसके पीछे मौलिक अधिकारों के हनन का तर्क देते हैं। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि धारा 6 के तहत सेना को 'खुली छूट' नहीं दी जा सकती है। 2021 में संयुक्त राष्ट्र ने भी कहा था कि लोकतंत्र में AFSPA का कोई स्थान नहीं है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। इसके दुरुपयोग के मामले इसके विरोध का कारण बनते हैं।
AFSPA के विरोध के चर्चित मामले
AFSPA के विरोध का सबसे बड़ा नाम इरोम शर्मिला का है। साल 2000 में मणिपुर में 10 लोगों को सैन्य बलों ने गोली मार दी थी। इस घटना के विरोध में इरोम शर्मिला ने 16 साल तक भूख हड़ताल की थी। इसके अलावा 2004 में मणिपुर की थंगजाम मनोरमा की रेप के बाद हत्या कर दी गई थी, जिसका आरोप सेना के जवानों पर लगा। इस घटना के विरोध में करीब 30 महिलाओं ने नग्न होकर प्रदर्शन किया था।