केंद्र का बड़ा फैसला, कम किए गए AFSPA के तहत आने वाले पूर्वोत्तर के क्षेत्र
क्या है खबर?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि असम, नागालैंड और मणिपुर में AFSPA (सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम) के तहत आने वाले अशांत इलाके घटाने का फैसला लिया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को इसका श्रेय देते हुए शाह ने कहा कि तेज गति से हो रहे विकास, बेहतर सुरक्षा व्यवस्था और उग्रवाद को समाप्त करने के लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों और समझौते के चलते यह संभव हो पाया है।
बयान
पूर्वोत्तर में शुरू हुआ विकास का नया दौर- शाह
इस मौके पर पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को बधाई देते हुए गृह मंत्री ने पूर्ववर्ती सरकारों पर भी निशाना साधा।
शाह ने कहा कि दशकों तक इस इलाके की उपेक्षा की गई थी, लेकिन अब यहां शांति, समृद्धि और अभूतपूर्व विकास का नया दौर शुरू हुआ है।
केंद्र सरकार ने यह फैसला ऐसे समय लिया है, जब पिछले साल नागालैंड में सुरक्षाबलों के हाथों ग्रामीणों की मौत के बाद इस कानून को हटाने की मांग हो रही है।
मणिपुर विधानसभा चुनाव
चुनावों के दौरान भी उठा था मुद्दा
हाल ही में संपन्न हुए मणिपुर विधानसभा के दौरान भी AFSPA का मुद्दा गर्माया रहा था। सभी पार्टियों ने राज्य से AFSPA हटाने की मांग का समर्थन करते हुए इस दिशा में कदम उठाने का वादा किया था।
चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में लौटे मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने चुनावों के दौरान वादा किया था कि उनकी सरकार बनने पर वो AFSPA को लेकर कुछ करेंगे। उनके सत्ता मे लौटने के बाद केंद्र की तरफ से यह ऐलान हो गया।
जानकारी
'अशांत क्षेत्र' का मतलब क्या?
AFSPA के तहत 'अशांत क्षेत्र' वह है, जहां नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग जरूरी है। 'अशांत क्षेत्र' घोषित करने की शक्ति पहले राज्यों के पास थी, लेकिन 1972 में यह केंद्र को पारित कर दी गई।
जानकारी
1958 में लाया गया था AFSPA
सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम यानी AFSPA को जुलाई, 1958 में अध्यादेश के रूप में लाया गया था। तीन महीने बाद यानी 11 सितंबर, 1958 को इसे संसद में पास करवाकर कानूनी जामा पहना दिया गया।
इस कानून के तहत देश के सुरक्षाबलों को संबंधित क्षेत्र में कार्रवाई के लिए विशेषाधिकार प्रदान किए जाते हैं।
इस कानून को देश के सबसे 'अशांत' क्षेत्रों में लागू किया जाता है। सबसे पहले इसे असम और मणिपुर में लागू किया गया था।
AFSPA
AFSPA से सुरक्षाबलों को मिलती हैं ये ताकतें
इस कानून ने सुरक्षाबलों को बेहिसाब ताकत दी है।
इसकी धारा-4 के तहत यदि कोई कानून के खिलाफ काम करता है तो सैनिक उसे गोली मार सकते हैं या शारीरिक बल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसी तरह बिना अनुमति किसी भी स्थान की तलाशी और खतरे की स्थिति में उसे नष्ट करने, किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार करने, कार्रवाई के दौरान बल प्रयोग करने और किसी भी वाहन को रोककर जांच और जब्ती का अधिकार होता है।
जानकारी
सुरक्षाबलों को मिली है विशेष सुरक्षा
इस कानून ने सुरक्षाबलों को विशेष सुरक्षा भी दी है। कानून की धारा-6 के तहत सुरक्षाबलों पर केंद्र की मंजूरी के बिना न तो कोई मुकदमा चलाया जा सकता है और न किसी तरह की कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
विरोध
विरोधी देते हैं कानून से मौलिक अधिकारों का हनन होने का तर्क
AFSPA की आलोचना के बीच 31 मार्च, 2012 को संयुक्त राष्ट्र ने भारत से कहा था कि लोकतंत्र में AFSPA का कोई स्थान नहीं है। इसे रद्द किया जाना चाहिए।
ह्मयूम राइट्स वॉच ने इसके दुरुपयोग को लेकर कड़ी आलोचना की थी।
मानवाधिकार संगठन, अलगाववादी और राजनीतिक दलों ने तो इससे मौलिक अधिकारों के हनन होने का तर्क दिया है।
2016 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा-6 के तहत सेना को "खुली छूट" नहीं दी जा सकती है।