चर्चित कानून: क्या है AFSPA और इसको लेकर क्यों रहा है लंबे समय से विवाद?
सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम (AFSPA) पर देश में लंबे समय से विवाद चल रहा है। कई संगठन और राजनेता इसकी आड़ में ज्यादती का आरोप लगाकर कानून को वापस लेने की मांग करते आए हैं। रविवार को नागालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की फायरिंग में 14 लोगों की मौत के बाद अब फिर से इस कानून की हटाने की मांग तेज हो गई है। आइए जानते हैं कि आखिर क्या है AFSPA और इसको लेकर विवाद क्यों है।
आखिर क्या है AFSPA?
सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम यानी AFSPA को जुलाई, 1958 में अध्यादेश के रूप में लाया गया था। तीन महीने बाद यानी 11 सितंबर, 1958 को इसे संसद में पास करवाकर कानूनी जामा पहना दिया गया। इस कानून के तहत देश के सुरक्षाबलों को संबंधित क्षेत्र में कार्रवाई के लिए विशेषाधिकार प्रदान किए जाते हैं। इस कानून को देश के सबसे 'अशांत' क्षेत्रों में लागू किया जाता है। सबसे पहले इसे असम और मणिपुर में लागू किया गया था।
AFSPA से सुरक्षाबलों को क्या ताकत मिलती है?
इस कानून ने सुरक्षाबलों को बेहिसाब ताकत दी हैं। इसकी धारा-4 के तहत यदि कोई कानून के खिलाफ काम करता है तो सैनिक उसे गोली मार सकते हैं या शारीरिक बल का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसी तरह बिना अनुमति किसी भी स्थान की तलाशी और खतरे की स्थिति में उसे नष्ट करने, किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार करने, कार्रवाई के दौरान बल प्रयोग करने और किसी भी वाहन को रोककर जांच और जब्ती का अधिकार होता है।
AFSPA के तहत सुरक्षाबलों को मिली है विशेष सुरक्षा
इस कानून ने सुरक्षाबलों को विशेष सुरक्षा भी दी है। कानून की धारा-6 के तहत सुरक्षाबलों पर केंद्र की मंजूरी के बिना न तो कोई मुकदमा चलाया जा सकता है और न किसी तरह की कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
क्या है AFSPA को लागू किए जाने की प्रक्रिया?
किसी भी क्षेत्र में यदि उग्रवादी तत्वों की अत्यधिक सक्रियता या विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों, समुदायों के बीच विवादों महसूस होने पर संबंधित राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र द्वारा उस क्षेत्र को 'अशांत' घोषित कर वहां AFSPA लागू किया जाता है तथा केंद्रीय सुरक्षाबलों की तैनाती की जाती है। इसके लिए राज्यपाल को आधिकारिक राजपत्र में इस संबंध में एक उपयुक्त अधिसूचना भी जारी करनी होती है।
कब कहां लागू किया गया AFSPA?
केंद्र सरकार ने सबसे पहले 11 सितंबर, 1958 को अलगाववाद, हिंसा और विदेशी आक्रमणों से रक्षा के लिए असम और मणिपुर में AFSPA लागू किया था। उसके बाद 1972 में कुछ संशोधनों के बाद त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में इसे लागू कर दिया। इसी तरह 1983 में केंद्र सरकार AFSPA (पंजाब एंड चंडीगढ़) अध्यादेश लेकर आई और 6 अक्टूबर, 1983 इसे कानून का रूप देकर पूरे राज्य में लागू कर दिया था।
जम्मू-कश्मीर में लागू किया गया AFSPA?
1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में आतंक अपने चरम पर पहुंच गया था। इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने इसी तरह का एक कानून पास करने का फैसला लिया। इस तरह से 5 जुलाई, 1990 को सरकार ने पूरे जम्मू-कश्मीर में इसे लागू कर दिया।
किन राज्यों से हटाया जा चुका है AFSPA?
AFSPA के विरोध को लेकर केंद्र अब तक कई राज्यों से इसे हटा चुकी है। सरकार ने पहले करीब 14 सालों तक लागू रहने के बाद 1997 में पंजाब से AFSPA को वापस ले लिया था। इसी तरह मेघालय की सुरक्षा स्थिति में उल्लेखनीय सुधार को देखते हुए सरकार ने साल 2018 में इसे वहां से भी हटा दिया था। सरकार का कहना था कि मेघायल में साल 2000 की तुलना में 2018 में 85 प्रतिशत कम हमले हुए थे।
AFSPA को लेकर क्यों रहा है विरोध?
विभिन्न मानवाधिकार संगठन, अलगाववादी और राजनीतिक दल सालों से AFSPA का विरोध करते हैं। इसके पीछे प्रमुख कारण AFSPA लागू राज्यों में कुछ विवादास्पद मामलों का सामने आना रहा है। मणिपुर में नवंबर 2000 में असम राइफल्स के जवानों पर 10 निर्दोष लोगों को मारने का आरोप लगा था। उसके बाद से इसका विरोध बढ़ गया था। उस दौरान कानून को खत्म करने की मांग को लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठी थी।
विरोधी देते हैं कानून से मौलिक अधिकारों का हनन होने का तर्क
AFSPA की आलोचना के बीच 31 मार्च, 2012 को संयुक्त राष्ट्र ने भारत से कहा था कि लोकतंत्र में AFSPA का कोई स्थान नहीं है। इसे रद्द किया जाना चाहिए। ह्मयूम राइट्स वॉच ने इसके दुरुपयोग को लेकर कड़ी आलोचना की थी। मानवाधिकार संगठन, अलगाववादी और राजनीतिक दलों ने तो इससे मौलिक अधिकारों के हनन होने का तर्क दिया है। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा-6 के तहत सेना को "खुली छूट" नहीं दी जा सकती है।
नागालैंड में 14 लोगों की मौत के बाद फिर से उठा AFSPA को लेकर विवाद
नागालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की फायरिंग में 14 लोगों की मौत होने के बाद AFSPA को लेकर फिर से विवाद खड़ा हो गया है। शनिवार को एक उग्रवाद-रोधी अभियान के दौरान सुरक्षाबलों ने काम से लौट रहे ग्रामीणों को गलती से उग्रवादी समझ कर उनके वाहन पर फायरिंग कर दी थी। इसको लेकर नागा जनजाति 'कोनयाक' ने सरकार को ज्ञापन भेजकर दोषी सैनिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और AFSPA हटाने सहित पांच मांगे रखी है।
समझौते के बावजूद नगालैंड में लागू है AFSPA
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में नगा विद्रोही संगठन NSCN-IM के महासचिव थुंगलेंग मुइवा और सरकार के वार्ताकार आरएन रवि के बीच 3 अगस्त, 2015 को एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इसमें AFSPA को हटाया जाना भी शामिल था, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। लगातार होते विरोध के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जून, 2021 में कानून की समीक्षा करते हुए इसे छह महीने यानी 31 दिसंबर तक के लिए बढ़ा दिया था।