नागालैंड: स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद छह महीने आगे बढ़ा गया AFSPA
केंद्र सरकार ने नागालैंड में विवादित AFSPA (सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम) को छह महीने तक बढ़ा दिया है। स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद केंद्र ने इस कानून की अवधि को आगे बढ़ाया है। सरकारी आदेश में लिखा गया है कि केंद्र सरकार नागालैंड क्षेत्र को अशांत और खतरनाक स्थिति में मानती है, जहां नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का प्रयोग करना आवश्यक है। यह आदेश आज से ही प्रभावी हो गया है।
आखिर क्या है AFSPA?
सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम यानी AFSPA को जुलाई, 1958 में अध्यादेश के रूप में लाया गया था। तीन महीने बाद 11 सितंबर, 1958 को इसे संसद में पास करवाकर कानूनी जामा पहना दिया गया। इस कानून के तहत देश के सुरक्षाबलों को संबंधित क्षेत्र में कार्रवाई के लिए विशेषाधिकार प्रदान किए जाते हैं। इस कानून को देश के सबसे 'अशांत' क्षेत्रों में लागू किया जाता है और सबसे पहले इसे असम और मणिपुर में लागू किया गया था।
राज्य में हो रही AFSPA हटाने की मांग
नागालैंड में लंबे समय से AFSPA हटाने की मांग हो रही है। मोन जिले में सुरक्षाबलों की फायरिंग में 14 लोगों की मौत के बाद इस मांग ने जोर पकड़ा है। 20 दिसंबर को नागालैंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से उत्तर पूर्वी राज्यों और खासतौर पर राज्य से AFSPA कानून हटाने की मांग वाले प्रस्ताव को पारित किया था। कानून हटाने की मांग को लेकर नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की थी।
केंद्र ने गठित की है समिति
नेफियू रियो और अमित शाह से मुलाकात के बाद गृह मंत्रालय ने AFSPA हटाने पर विचार करने के लिए एक समिति गठित करने का निर्णय किया है। इसकी अध्यक्षता गृह मंत्रालय के पूर्वोत्तर के अतिरिक्त सचिव करेंगे। इसमें नागालैंड के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक, असम राइफल्स (उत्तर) के महानिरीक्षक और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह समिति 45 दिनों में यह निर्णय करेगी कि नागालैंड से वर्तमान स्थिति में AFSPA हटाया जा सकता है या नहीं।
AFSPA से सुरक्षाबलों को मिलती है विशेष ताकत
इस कानून ने सुरक्षाबलों को बेहिसाब ताकत दी है। इसकी धारा-4 के तहत यदि कोई कानून के खिलाफ काम करता है तो सैनिक उसे गोली मार सकते हैं या शारीरिक बल का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसी तरह बिना अनुमति किसी भी स्थान की तलाशी और खतरे की स्थिति में उसे नष्ट करने, किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार करने, कार्रवाई के दौरान बल प्रयोग करने और किसी भी वाहन को रोककर जांच और जब्ती का अधिकार होता है।
सुरक्षाबलों को मिली है विशेष सुरक्षा
इस कानून ने सुरक्षाबलों को विशेष सुरक्षा भी दी है। कानून की धारा-6 के तहत सुरक्षाबलों पर केंद्र की मंजूरी के बिना न तो कोई मुकदमा चलाया जा सकता है और न किसी तरह की कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
क्यों हो रहा AFSPA का विरोध?
विभिन्न मानवाधिकार संगठन और राजनीतिक दल सालों से AFSPA का विरोध करते आए हैं। इसके पीछे प्रमुख कारण AFSPA लागू राज्यों में कुछ विवादास्पद मामलों का सामने आना रहा है। मणिपुर में नवंबर 2000 में असम राइफल्स के जवानों पर 10 निर्दोष लोगों को मारने का आरोप लगा था। उसके बाद से इसका विरोध बढ़ गया था। उस दौरान कानून को खत्म करने की मांग को लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने कई साल प्रदर्शन किया था।